Book Title: Jain Swadhyaya Mala
Author(s): Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
वृहदालोयणा
वृहदालोयणा
दोहा सिद्ध श्री परमात्मा, अरिंगजन अरिहंत । इष्टदेव वंदू सदा, भयभंजन भगवत ।११ मरिहंत सिद्ध समरू सदा, प्राचारज उवज्झाय । साध सकल के चरन को, वदू शीश नमाय ।२। शासन नायक सुमरिये, भगवंत वीर जिनंद । अलिय विधन दूरे हरे, प्रापे परमानंद ।३। अगुठे अमृत वसे, लब्धि तणा भंडार । श्रीगुरु गौतम सुमरिये, वाछित फल दातार ४ श्रीगुरुदेव प्रसाद से, होत मनोरथ सिद्ध । ज्यू धन वरसत वेलि तरु, फूल फलन की वृद्ध ।५। पच परमेष्ठी देव को, भजनपुर पंचान । कर्म अरि भाजे सभी, होवे परम कल्याण ।६। श्रीजिन युग पद कमल में,मुझ मन भमर बसाय । कव ऊगे वो दिन करूँ, श्रीमुख दरिसन पाय ।७। प्रणमी पद पंकज भणी, अरिगजन अरिहंत । कथन करूँ अव जीव को, किंचित मुझ विरतत 101 आरंभ विषय कपाय वस, भमियो काल अनंत । लख चोराशी योनि से, अव तारो भगवंत ।।। देव गुरु धर्म सूत्र मे, नवतत्वादिक जोय । अधिका पोछा जे कह्या, मिच्छा दुक्कडं मोय ।१०।

Page Navigation
1 ... 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408