Book Title: Jain Swadhyaya Mala
Author(s): Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 385
________________ ३६८ बृहदालोयणा सिद्ध श्री परमात्मा अग्गिजन अरिहत । इष्टदेव वद् सदा, भयभजन भगवंत ।११ अनत चौवीशी जिन' नमु, सिद्ध अनंता कोड़। वर्तमान जिनवर सवे, केवली दो कोड़ी नव कोड़ ।। गणधरादिक सर्व साधजी, समकित व्रत गुणधार । यथायोग्य वदन करूँ, जिन आज्ञा अनुसार ।३। यहां एक बार नमस्कार मन्त्र का-स्मरण करना चाहिए। पच परमेष्टी देवनो, भजन पुर पचान । कर्म अरि भाजे सभी, शिव सुख मगल थान १४१ अरिहंत सिद्ध सुमरु सदा, आचारज उवझाय । साधु सकल के चरन को, वंदू शोश नमाय ।। शासन नायक सुमरिये, वर्धमान जिनचद । अलिय विघन दूरे हरे, आपे परमानंद ।६। अगुठे अमृत बसे, लधि तणा भडार। . जय गुरु गोतम सुमरिये, वाछित फल दातार ।७। श्रीजिन युगपद कमल में, मज मन अलिय वसाय । कव उगे वो दिन करूँ, श्रीमुख दरिसन पाय 11 प्रणमी पदपंकज भणी, अरिगंजन अरिहंतः। , कथन करूँ अव जीव को, किंचित मुझ विरतत 181 गाथा - हं अपराधी अनादि को, जनम जनम गुना- किया भरपूर के । लटिया प्राण छकाय नां, सेविया पाप अठारे करूर के । श्रीमुनिसुव्रत साहित्रा।

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