Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ व्यावहारिक कार्य उन्हें सौंप दिया। इस प्रकार निवृत्त होकर आप वृद्धावस्था में निश्चिन्त होकर शान्तिपूर्ण धार्मिक जीवन बिताने लगे। समाज में शिक्षा की कमी को आपने महसूस किया । अपने लघु भ्राता के साथ आपने इस सम्बन्ध मे विचार किया। फलस्वरूप दोनों भाइयो की ओर से 'श्री अगरचन्द भैरोदान सेठिया जैन पारमार्थिक संस्था' की स्थापना हुई । संस्था की व्यवस्था एवं कार्य संचालन के लिए आपने अपने छोटे भाई साहेब को तथा चिरंजीव जेठमलजी को प्राज्ञा प्रदान की। तदनुसार दोनों साहेबान सुचारु रूप से संस्था का संचालन कर रहे हैं । संस्था के अन्तर्गत अभी बाल-पाठशाला, कन्या-पाठशाला, विद्यालय, कॉलेज, लायब्ररी, पुस्तक प्रकाशन-समिति, ये विभाग कार्य कर रहे हैं । संस्था का सन् १९४१ ई० का कार्य विवरण पाठक आगे पढ़ेंगे। इस प्रकार सुखी और धार्मिक जीवन बिता कर चैत बदी ११ सम्बत् १९७८ को सेठ साहेब शुद्धभाव से प्रालायणा और खमत खामणा करके इस असार देह का त्याग कर स्वर्ग पधारे । ता. १५-८-४२ बीकानेर मास्टर शिवलाल देवचन्द सेठिया अध्यापक सेठिया जैन पारमार्थिक संस्था

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 529