Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 04 Author(s): Bhairodan Sethiya Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner View full book textPage 8
________________ पृष्ठ ३८५ ३८६ ३६० ४०० ४२६ ૪૨૨ ४२६ ૪૩૦ ૩૭ ४३७ ४४१ ૪૪૩ ૪૪૪ ४४४ ४४६ ४४६ ४४६ ४४५ * ૨ ૪૬ ४६६ ४७१ ४७२ ४७७ ४८१ ४८२ ૪૩ ४८४ ४८८ पक्ति १ ४ ११ १ १२ E २३ १ ७ 5 १३ १०. २२ २३ ७ १८ १३ * २ १२ १८ २२ १६ ६ २६ १० E २ घ ऋशुद्ध अराधना स्वमणा एकन्द्रिय कया वृन्तान्त सामन लित ग्रहवित्र शौच रक्ष पुते जाहि सत्थवाहव्य पात्र, यादि कर भगवान् भगवान् ! तियंड उनका भगवान् ! परिक्षा भूमी परिक्षा कुका गुरू बंध बारह गया शुद्ध आराधना था. खमण एकेन्द्रिय क्या वृत्तान्त समान लिए अपवित्र शौच रक्षा हे पु चाहिए सत्यवाहव्व पात्र श्रादि का भगवन् ! भगवन् ! तियंट् उसका भगवन् । परीक्षा भूमि परीक्षा चुका गुरु बन्द बाहर गयेPage Navigation
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