Book Title: Jain_Satyaprakash 1953 01 02
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir '४ : ४-५] पूर्वदेश येत्य परिपाटी [७७ अज्जवि साज्झय दोष सयल मणवंछिय पामिय। गयइ अणेगय कम्मरसि सामिय महलामिय ॥ असुह चिटू मण-वयणि काइ जे जिण मइ किज्जय। तुह दंसणि जगनाह ताह जलअंजलि दिज्जइ ॥२७॥ कूड़ कवड़ि पाखंडि संड जिम जिणमण मेरउ । मोह चरडि संताविय ए सेवक जिण तेरउ ॥ चोर जेम विषएण पुन्न धण किज्जइ हेरउ । सार करि हिव राखि सामि तीह वसि फेरउ ॥२८॥ अज्ज नयण कयपुन्न जेहि दिदउ जगनायक । अज्ज वयण मह धन्न जेहि थुणिउ शिवदायक ।। अज वरिस कयहरिस मास सुविलास मणोहर । अज पाउ संताउ नटु जय भेटिउ सुहयर ।। २९॥ अज दिवसु मह धन्नु अज सुरभूरुह अंगणि। ऊगिय अज्ज विसज्ज हत्थि आविय चिन्तामणि ।। कामकुंभ सुरघेणु अज अज मह सेवइ पाया। जं पूरवदेसहि पवित्त थुणिया जिणराया ॥ ३० ॥ धात नाह लद्वउ नाह लदउ मणुफल अजकुलनिम्मल अन्ज मह दुकिय कम्मतरु अन्ज मूलिय । निय सामिय संथुणिय मइ सग्गि उवरि ए अन्ज चूलिय ॥ उवसमरसभर भरिय मणु रोमंचिय महकाय । भावि रंगि जउ भेटिया पुत्रदेस जिणपाय ॥ ३१॥ इय जम्म ठाणइ सिरिनिहाणइ गाम नयरहि संसिया । सिरि सकल जिणवर धनगुणालय लक्खराय नमंसिया । जिणबिंब सग्गि पयालि महियलि जे असासय सासया । ते नमउं पूयउ थुणउ भत्तहि सिद्धिमग्ग पयासया ॥ ३३ ॥ ॥ इति श्रीपूर्वदेशचैत्यपरिपाटी समाप्ता श्रीजिनबद्धनसूरिभिः कृता ॥ ( हमारे संग्रहके १४९३ की प्रति परसे) For Private And Personal Use Only

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