Book Title: Jain_Satyaprakash 1953 01 02
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८०] શ્રી. જૈન સત્ય પ્રકાશ [वर्ष : १८ इंडिका आदिसे जैन इतिहास सम्बन्धी सामग्रीकी इनमें नकल की गइ होंगो। जैन तीर्थोके प्रतिमालेखोंकी नकलोंवाले ४७ पत्र हम प्रकाशित लेखोंसे मिलानेके लिए साथ ले आये और प्रकाशित जैन लेख संग्रहोंसे मिला कर देखने पर इनमें से कई लेख श्रीजिनविजयजी संपादित 'प्राचीन जैन लेख संग्रह में मिले। कई लेख नाहरजीके जैन लेख संग्रह' भा०१-२ में एवं कई 'आबूगिरि लेख संदोह में प्रकाशित नजर आये, कई लेखोंमें पाठभेद भी है पर संभव है वे लेख उस समय ठीक पढ़े नहीं गये हों । इसीसे अन्तर रह गया हो। जो लेख अप्रकाशित प्रतीत हुए उन्हें अलासे नकल कर लिये गये जिन्हें यहाँ प्रकाशित किये जाते हैं। ___ इन लेखोंमें राणकपुरके ७ (२ का उल्लेख मात्र, पूर्ववत् होनेसे) तारंगाके २, व नडुलाईके ३ और नडूलका १ है। ___ कुछ वर्ष पूर्व कई इतिहासप्रेमियोंने प्रतिमालेखोंके कई संग्रह निकाले थे जिनमें श्रीजिनविजयजीके २ भाग, नाहरजोके ३ भाग, बुद्धिसागरसूरिके २ भाग, विजयधर्मसूरिजीका १ भाग काफी वर्षों पूर्व प्रकाशित हुए हैं। इनमें से किसी में भी एक स्थानके पूरे लेख नहीं दिये गये थे। तब मुनि जयंतविजयजीने आबू एवं उसके निकटवर्ती स्थानोंके जैन लेखौका पूरा संग्रह कर सानुवाद प्रकाशित कर महत्त्वको बढ़ाया है। ___ हमारे संग्रहित 'बीकानेर जैन लेख संग्रह' छप रहा है जिनमें बाकानेर व इस रियासतके समस्त जैन मन्दिरोंके समस्त जैन लेख संग्रहित है। हमारी प्रेरणासे जयपुर राज्यके कतिपय स्थानोंके लेख मुनि विजयसागरजीने संग्रहित किये हैं पर अभी वह कार्य पूर्ण नहीं हो पाया। जेसलमेरके अप्रकाशित लेख हमने लिये थे उन्हें अपने बीकानेर जैन लेख संग्रहके साथ ही दे दिये गये हैं। ___इसी प्रकार हमारी प्रेरणासे स्व० जिनहरिसागरसूरिजीने कई स्थानोंके प्रतिमालेखोंका संग्रह किया था। साहित्यालंकार मुनि कांतिसागरजीका एक लेख संग्रह हालमें ही प्रकाशित हुआ है। कलकत्तेके समस्त लेखोंका संग्रह भी हमने किया है । इसी तरह अन्य अनेक स्थानोंके लेख संग्रहित कर रखे हैं । कवि दौलतसिंह लोढा संपादित 'लेख संग्रह ' अभी निकल रहा है। यतीन्द्रविहार दिग्दर्शन' आदि ग्रन्थोंमें 'जैन सत्य प्रकाश' 'जैनयुग' आदिमें भी प्रतिमालेख छपे हैं। आ० विजयधर्मसूरिजी व विजयेन्द्रसूरिजी आदिके संग्रहित जैन प्रतिमा लेख संग्रहका द्वितीय भाग वर्षोंसे प्रकाशनकी प्रतिक्षामें पड़ा है। जिसे शीघ्र ही प्रकाशित करनेकी ओर मुनि श्रीविद्याविजयजी व यशोविजय जैन ग्रन्थमालाका ध्यान आकर्षित किया जाता है। For Private And Personal Use Only

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