Book Title: Jain_Satyaprakash 1953 01 02
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४-५] પૂર્વ દેશ ચિત્યપરિપાટી भुवर्णमि वरवाउ किउ नयर सारि संसारि वासि कासिय । पुहवी नंदणतित्थयरु वंदउं मन धरि भाउ । सिरि सुपासु पंचहि फणहि मंडिओ सिरवर ठाउ ॥ १२ ॥ भास ईया सुरसरीए तीरसु विसाल नयर चंदावइ स लहिय ए। ईया तहि नमउं ए राय महसेणनंदण जिणवर करि हियए। ईय पूजउं ए नयर विहारमंडण सामिय वीरजिण । ईय पणमउं ए नयर नालिंद संठिउ वीर जिणेस पुण ॥ १३ ।। ईया हरषिउ ए हियडां रंगि रगमग नयण निहालतउ ए । ईया चालतउ ए चमकिय चित्ति पाजइ पहुचइ माल्हतउ ए। ईया पेखउ ए मण आणंदि वेभारह गिरिसिहरि सामि । ईया जिणवर ए नीलसरीर सिरिमुणिसुत्रय पवरनामि ॥ १४ ॥ ईय निम्मवउं ए अप्पणउ जम्म सहलउ समिय देखि तुह । ईया भवियण ए लोयण ताह पुन्निमाचंदसु विसाल मुह । ईया इणि खणि ए दूरि पलाहि तिहुयणबंधव सयलदुह । ईया पाचउं ए तयणु सिरिनेमिजिणवर सुंदर सयलसुह ॥१५॥ ईया विरवउ ए विमलनीरण मणउ लल्लासहि वर न्हवणु। ईया अह करउं ए जगगुरु अंगि रंगि विलेवणु हर तयणु । इया पूजउ ए सुरहि कुसुमेहि वउलसिरि पमुहेहि तणु। ईया गाउं ए मुहर सरेण देह रोमंचिय नाहगुण ॥ १६ ॥ ईया नाचउं ए फरफर पाय काय विलासिहि जिणभुवणि । ईया उल्हवउं ए भवदुहं दाह भावण भावउं निययमणि । ईया इणि परी ए अवर वणेसु बिंब जुहारउं मण रलीय । ईय पेरवउं ए गणधर थुभ दुख न पामउं जिम वलीय ॥ १७॥ इय महमणि ए लगिय खंति जाएवउ हिव विपुलगिरे। इय भागिय ए भवभयभंति पासजिणेसर पेखि करे॥ इय अन्नवि ए जिणहर तुंग चंग निहालउ तहि नमउं ए। जिणवर ए बिंब सुरंग सिद्धिरमणि सउं जिम रमउं ए॥१८॥ For Private And Personal Use Only

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