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શ્રી જેન સત્ય પ્રકાશ
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१२. श्वेताम्बर संप्रदाय की आवश्यक नियुक्ति ।
भद्रबाहु द्वारा नियुक्ति-संकलन ।
भद्रबाहु को नियुक्ति का आधार और पूर्वगामी कृतियां । १३. दो भद्रबाहु ।३ १४. आवश्यक-नियुक्ति की चार वाचनाएं ।४ १५. जिनभद्र का विशेषावश्यक भाष्य ।
जिनभद्र का सत्ता-काल और सत्ता-स्थान । १६. विशेषावश्यक भाष्य का मूल रूप । उस पर शीलाकाचार्य और हेमचन्द्र
की टीकाएं। १७. आवश्यक-नियुक्ति, मूल भाष्य और हेमचन्द्र की टीका का परस्पर समन्वय । १८. आवश्यक-नियुक्ति और विशेषावश्यक भाष्य का श्लोकवार समन्वय । १९. विशेषावश्यक भाष्य में वैदिक और दार्शनिक उल्लेख । जैसे-गणधरवाद में
उपनिषद् वाक्य । २०. मनोविज्ञान और गणित संबन्धी उल्लेख । २१, काल और आकाश (Time and Space) विषयक विचार । २२. विशेषाव यक भा'य की पूर्ण विषय।। २३. भाष्य पर जिनभद्र को स्वोपज्ञ टोका। २४. जिनभद्र के अन्य ग्रन्थ ।
विषय-सूचि से इस ग्रन्थ की महत्ता का अनुमान हो सकता है। जिन-प्रवचन के भक्त आचार्य, यति, संघ, और श्रावकों का ध्यान इसकी ओर आकर्षित किया जाता है कि वे इस अत्यन्त उपयोगी ग्रन्थ का अनुवाद कराके साहित्यिक चातकों की प्यास बुझावें
और स्वयं अपने लिये पुण्योपार्जन करें। इसके अनुवाद से पता लगेगा कि पाश्चात्य विद्वानों ने जैन साहित्य का कैसी सूक्ष्स दृष्टि से अनुशीलन किया है। यदि इसके या अन्य ग्रन्थों के अनुवाद कराने में किसी प्रकार के परमर्श की जरूरत हो तो-मूलराज जैन, मन्त्री, जैन विद्या भवन, ६ नेहरु स्ट्रीट, कृष्णनगर, लाहौर को लिखें ।। ... ३. दो भद्रबाहु होने के विषय में देखिये श्री आत्मानंद जन्म शताब्दि स्मारक ग्रन्थ, भाग १ गुजराती पृ. २०-२६ ।
१. प्रो. कापडिया की जैन-ग्रन्थ-सची पृ० ३७३ ।
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