Book Title: Jain_Satyaprakash 1946 05 06
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४० ] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ वर्ष ११ श्री जिनविजयजी और मुनि दर्शनविजयजीने इस प्रकार का प्रशंसनीय प्रयत्न किया है । सिंघी जैन ग्रंथमाला से और भी दो ग्रंथ निकट भविष्य में प्रकाशित होने वाले हैं जिनसे विविध गच्छों के इतिहास में नवीन प्रकाश पडेगा । मुनि विनयसागरजी के पास राजगच्छ पट्टावली की एक प्रति है जिसके अधिकाश भाग में औपदेशिक प्रासंगिक और भिन्न २ गच्छ के प्रभावक आचार्यों के गुणानुवाद और अंत में इस गच्छ के आचार्यों का वृत्तान्त दिया है । यहां केवल राजगच्छ के आचार्यो का परिचय दिया जाता है । । एक बार शिकार में मारी हुई नन्नसूरि — आप पहले तलवाड़ देश के राजा थे सगर्भा हरिणो के बालक को तड़पते हुए देखकर वैराग्य प्राप्त हुआ और आरण्यक साधु के पास दोक्षित हो गए। उनके अन्वय में अजितयशोवादिसरि आदि सात आचार्य वादियों को जीतनेवाले एवं न्याय व्याकरण ग्रन्थों के रचयिता हुए। इनसे राजगच्छ प्रसिद्ध हुआ । धनेश्वरसूरि - आप छत्तीस लक्ष कान्यकुब्ज देश के स्वामी कर्द्दमराज के पुत्र धनेश्वरकुमार थे । एक बार शिकार में आठ पैरों वाले सरम (अष्टापद ?) को देख कर वृक्ष पर स्थित हो कुमार ने भाले से प्रहार किया । सरभने क्रुद्ध हो कर स्वनिरोधमिश्रित मट्टी शुण्डादण्ड से कुमार के ऊपर उछाली जिससे कुमार के शरीर में फोड़े ही फोड़े हो गए । अनुचरों के साथ घर आने पर नाना प्रकार के उपचार किये गए परन्तु शान्ति न होने से राजर्षि अभयदेवसूरि के चरण प्रक्षालित जल छिडका गया | राजकुमार एकदम स्वस्थ होने के साथ ही वैराग्यवासित हो गया और उन्हीं गुरुदेव के पास संयमधर्म स्वीकार कल लिया । ये राजकुमार धनेश्वरसूरि हुए। एक वार चैत्र नामक स्थान में सर्प के से हुए ब्राह्मणकुमार को जीवित करके १८००० ब्राह्मण कुटुंबों को प्रतिबोधित किया । महावीर प्रभु के मन्दिर का निर्माण हुआ । इन्होंने १८ आचार्य बनाए जिनकी १८ शाखाएं हुई। 1 शीलभद्रसूरि - आप राज गच्छ के शृंगार थे । १२ वर्ष की उमर से आजीवन छः विगयों का त्याग किया । ये अक्षीण लब्धिधारो प्रभावक थे । धर्मघोषसूरि- आप शीलभद्रसूरि के शिष्य थे, सं. ११७६ में आचार्य पदारूढ हुए। अम्बिका देवी की सहायता से ४ राजाओं को प्रतिबोध दिया। और दो बार वादि गुणचन्द्र को शास्त्रार्थ में परास्त किया । इन सूरि महाराज ने अल्हण नरेश की सभा में सांख्य ग्रंथ की व्याख्या की; महाराजा आनल के यहां वादि के गर्व को चूर किया; जैनों की अवज्ञा करने में आसक्त विग्रहराज को जैनधर्म में सुदृढ़ किया । इनके उपदेश से शाकंभरीश्वर वीसलदेवने अजमेर में श्री शान्तिनाथ प्रभु का जिनालय बनवा कर प्रतिष्ठामहोत्सव किया । राजमाता सूहवदेवीने सूहवपुर में पार्श्वनाथ भगवान का मन्दिर बनवाया । इन्होंने श्री फलवद्धिं पार्श्वनाथ For Private And Personal Use Only

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