Book Title: Jain_Satyaprakash 1946 05 06
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भ७८-८ રાજગચ્છ પટ્ટાવલી [२४१ आदि १०५ मन्दिरों को प्रतिष्ठा की थी और ब्राह्मण क्षत्रिय व माहेश्वरी वैश्यों को प्रतिवोध दे कर ओसवालों में १०५ गोत्र स्थापित किए। इसी प्रकार श्रीमालों में ३५ गोत्र किये। इन धर्मघोषसूरि से राजगच्छ की धर्मघोष शाखा प्रसिद्ध हुई। सागरचन्द्रमरि-इनके उपदेश से राजा कल्हण जैन धर्मानुरागो हुए । आप के पट्टधर श्री मलयचंद्रसूरि विद्या, कला, चमत्कार के लिये प्रख्यात थे । चित्रवाल शाखा में भद्रेश्वरसूरि ने गिरनार तीर्थ के मुख्य प्रासाद की प्रतिष्ठा की। दण्डनायक सज्जन को उपदिष्ट कर मन्दिरों का जीर्णोद्धार करवाया । वीर गणि से चैत्र गच्छ की कम्बोइया शाखा हुई । इन वीर गणिने तप व वालीनाह क्षेत्रपाल के सानिध्य से अष्टापद तीर्थ की यात्रा की। अतः इनको परम्परा अष्टापदशाखा नाम से प्रसिद्ध हुई। पट्टावली श्लोकों एवं अंतिम सूची के अनुसार परम्पराक्रम इस प्रकार है:.१ ननसूरि, २ अजितयशोवादि, ३ सर्वदेवसूरि, ४ प्रद्युम्नसूरि, ५ अभयदेवसूरि, ६ चत्रगच्छ धनेश्वरसूरि, ७ अजितसिंहमूरि, ८ वर्द्धमानसूरि, ९ शीलभद्रसूरि. १ धर्मसूरि, २ रत्नसिंहसूरि, ३ देवेन्द्रसूरि, ४ रत्नप्रभसूरि, ५ आणंदसुरि, ६ अमरप्रभसूरि, ७ ज्ञानचन्द्रसूरि, ८ मुनिशेखरसुरि, ९ सागरचन्द्रसूरि, १० मलयचन्द्रसुरि, ११ पद्मशेखरपुरि, १२ पद्मानंदसूरि, १३ नन्दिवर्द्धनसूरि, १४ नयचन्द्रसुरि. प्रस्तुत पट्टावली की प्रति १७ वीशती की लिखी हुई है। अतः इसके बाद के आचार्यों के नाम अन्प साधनों से संग्रह किये जा सकते हैं पर अभी हमारे पास वे साधन न होने से ऐसा कर सकना अशक्य है। धर्मघोषसरि के गुणानुवाद में कई अन्य स्तुति आदि भी प्राप्त होते हैं। वास्तव में ये प्रभावक आचार्य थे। इनकी परम्परा काफी विस्तृत हुई थी। कई वर्ष पूर्व हमने नागौर के गुरांसा (महात्मा) के पास और श्रीहरिमागरसरिजी के पास इस गच्छ के आचार्यों की विस्तृत नामावली देखी थी । इसको प्रतिलिपी हमारे संग्रह में भी है। नागपुरी लंका गच्छ की पट्टावली से ज्ञात होता है कि उन्होंने अपना प्राचीन संबन्ध इसी धर्मघोष गच्छ से मिलाया है। ऐतहासिक दृष्टि से यह कहां तक ठीक है विचार किया जाना आवश्यक है। उक्त पट्टावली के अनुसार ओसवाल जाति के सुराणा गोत्र के प्रतिबोधक आप ही थे। साधनाभाव से हम इस गच्छ के आचार्यों का विस्तृत वर्णन, उनके रचित ग्रन्थ, प्रतिष्ठित प्रतिमालेखों के सम्बन्ध में प्रकाश डालने की इच्छा रहते हुए भी ऐसा न कर सके। अन्य विद्वानों से अनुरोध है कि वे इस गच्छ के सम्बन्ध में अधिकाधिक ज्ञातव्य प्रकाशित करें। For Private And Personal Use Only

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