Book Title: Jain_Satyaprakash 1942 12
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
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[ ८२]
શ્રી જેન સત્ય પ્રકાશ
[वर्ष ८
लाहनगढ मझि प्रवर प्रासाद करायउ। (कृष्णदासकृत दुर्जनसाल
बावनी,छंद ५४)
६. “जैन विद्या" प्रथम अंक, हिन्दी पृ० ३१. जटमल कृत " लाहोरकी गजल"की श्रीयुत अगरचंद नाहटाकी प्रतिमें 'लाहानूर” शब्द आता है।
ब्राह्मण पंडित इसे " लवपुर" कहते हैं।
अकबरके समयसे जैनोंमें इसका नाम लाहौरके साथ २ " लाभपुर" भी पड़ गया। जैसे, भानुचन्द्रचरित्र' आदिमें।
राजपूतों के इतिहासमें इसे " लोहगढ "भी कहा है। अंग्रेजी स्पेलिंग Lahore के प्रभावसे गुजराती, मराठीमें ' लाहोर' लिखते हैं।
स्थापना-दंतकथा तो यह चली आती है कि श्री रामचन्द्रजीके बेटे लवने लबपुर अर्थात् लाहौर बसाया, और कुशने कुशपुर अर्थात कसूर । लेकिन इस दंतकथाके तथ्यातथ्य जाननेका कोई साधन नहीं है। लाहोरके किलेमें लोहका मन्दिर है और अमृतसरमें लोहगढ़ दरवाजा है। इनका संबन्ध लवस है या राजा लोहसे, यह निश्चय पूर्वक नहीं कहा जा सकता।
किसी २ को खयाल है कि ग्रीक लेखक टालमीने जिस “लाबोकल" नगरका उल्लेख किया है, वह लाहौर है। ऐसा प्रतीत होता है कि लाहौरको विक्रमकी दूसरी तीसरी शताब्दीमें किसी राजा लोहने बसाया और थोड़े ही समयमें यह बड़ा भारी नगर बन गया।
अवशेष यद्यपि पंजाबमें जैनधर्मका इतिहास बड़ा उञ्चल और महत्त्वपूर्ण रहा है, तथापि लाहौर में इसके अवशेष कुछ बहुत पुराने नहीं मिलते। सबसे प्राचीन अवशेष सम्राट अकबरके समयके हैं। संभव है कि खोज करने पर इनसे भी पुराने अवशेष मिल जाय । लाहौरके पुराने जैन घराने श्वेताम्बर संप्रदाय के मानने वाले ओसवाल हैं जिनको यहां आम बोलचालम "भाबड़े " कहते हैं। दिगम्बर जैन तो ब्रिटिश राज्यकी स्थापना होने पर यहां आए और वे अधिकतर अग्रवाल जातिके हैं। नगरके जिस भागमें ओसवालोंकी बसती है, उसे "थडियां भाबडयान" कहते हैं। अब इसे “जैन स्ट्रीट" भी कहने लग गये हैं। यहां अकबर के समयका मन्दिर और उपाश्रय अब तक विद्यमान है।
४. इससे पहले लाहौरमें उपाश्रय नहीं था। भानुचन्द्रने चाल चली। एक दिन अकबर दर्बारम देग्मे पहुंचे। कारण पूछने पर कहा कि दुग्मे आना पड़ता है। तब अकबरने भूभिप्रदान की और श्रावकोंने उस पर उपाश्रय बनवा दिया। [भानुचन्द्रगणि चरित, प्रकाश २, लोक १२२-३०]
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