Book Title: Jain_Satyaprakash 1942 12
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'जेन त-त्वसार' का रचनास्थल अमरसर कहाँ है ? (एक विचारणा) लेखक:-श्रीयुत अगरचन्दजी भंवरलालजी नाहटा. श्री जैन आत्मानंद सभा भावनगर द्वार 'जैन तत्त्वसार' नामक ग्रंथ गुजराती भाषान्तर सहित प्रकाशित हुआ है, उसके उपोद्घात में प्रवर्तक मुनिराज श्री कान्तिविजयजी महाराज ने उक्त ग्रंथ के रचनास्थान की टिप्पणी में लिखा है कि-'अमरसर, ए पंजाब मां सिक्ख धर्मानुयायिओर्नु पवित्र स्थान छे' । जबसे यह उल्लेख हमारे अवलोकन में आया तभीसे हमें यह टिप्पन संदेहास्पद प्रतीत हुआ। क्योंकि पंजाब वाला अमरसर न होकर अमृतसर सुप्रसिद्ध है। इसके बाद उपाध्याय समयसुन्दरजी रचित 'चार प्रत्येक बुद्ध चौपाई' एवं 'चातुर्मासिक व्याख्यान' की प्रशस्ति पर विचार करने पर हमारा यह संदेह और भी दृढ हो गया। क्योंकि 'चार प्रत्येक बुद्ध चौपाई' का दूसरा खंड सं. १६६४ चैत्र वदि १३ आगरे, में विरचित है। उन्होंने सं. १६६५ चैत्र सुदि १० को अमरसर में 'चातुर्मासिक व्याख्यान पद्धति' को रचना करके सं. १६६५ ज्येष्ठ शुक्ला १५ को 'चार प्रत्येक बुद्ध चौपाई' के चौथे खण्ड को आगरे में ही पूर्ण किया है। इस से स्पष्ट है कि चैत्र वदि १३ तक कविवर आगरे में ही थे और चैत्र शुक्ल १० के पहिले अमरसर पहुंच चुके थे। इसके बीचके दिनों का अन्तर केवल १२-१३ दिनों का है, इतने थोड़े समय में आगरे से पंजाब के अमृतसर पहुंचना संभव नहीं है और न इतनी दूर जाने पर ज्येष्ठ महीने में पुनः आगरे लौट आना ही संभव है। अंतः प्रस्तुत अमरसर और ही कोई स्थान होना चाहिए। इसके बाद हमारा ध्यान जैस. लमेर के अमरसागर' की ओर गया पर वह भी सुदूर देश में और पीछे का बता हुआ होने के कारण समस्या को हल करने में समर्थ न हो सका । और कई वर्षों से यह गुत्थी ज्यों की त्यों उलझी पड़ी रही। अभी कुछ मास पूर्व 'चाद' का सन १९३५ सितम्बर का अंक हमारी नजरों में आया। उसमें प्रकाशित 'शेखावत राजपूत वंश की जन्मभूमि अमरसर' को पढने पर हमें यह निश्चय हो गया कि 'जैन तत्वसार' एवं 'चतुर्मासिक व्याख्यान' आदि का रचनास्थल प्रस्तुत अमरसर यही है, जो कि जयपुर से उत्तर की ओर ३४ मील और जयपुर रेलवे के गोविन्दगढ नामक स्टेशन से १५ मील पर अवस्थित है। इसका एक कारण यह भी है कि अमरसर के श्री निनकुशलसरिजी के गुणगर्भित स्तवन उपलब्ध हैं और प्रस्तुत अमरसर में स्थित श्री निनकुशल १ फास गुजराती सभा, बम्बइ के मुखपत्र 'त्रैमासिक' में प्रकाशित मुनि श्री कांतिसागरजी के 'मुगलकालमा लखायेल जैन साहित्य' लेखमें भी अमृतसर एवं अमरसागर की अमरसर होनेकी संभावना की गई है, पर वह ठीक नहीं है। For Private And Personal Use Only

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