Book Title: Jain_Satyaprakash 1942 12
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुन्दकुन्द-श्रावकाचार (यानी-विवेकविलासका दूसरा भव) लेखक-पूज्य मुनिराज श्री दर्शन विजयजी जैनसंघमें आ. जिनदत्तसूरि नांमके २ आचार्य हुए हैं। १. आ. जिनवल्लभसूरिके पट्टधर, जो खरतरगच्छके प्रथम प्रधान आचार्य है। २. वायड़गच्छके आ. जीवदेवसरिके पट्टघर, जिन्होंने जाबालीके राजा उदयसिंहके मंत्री देवपालके पुत्र धनपालकी खुशीके लिए 'विवेकविलास' बनाया है। 'विवेकविलास में १२ उल्लास और १३२१ श्लोकप्रमाण संस्कृत-पद्य है। इसमें प्रधानतया गृहस्थ-व्यवहारका निरूपण है । वह अपनी ढंगका अद्वितीय ग्रंथ है। उस समय 'विवेकविलास' इतना लोकप्रीय और व्यापक हो गया था कि-वैदक धर्मावलम्बी माधवाचार्य ने अपने 'सर्वदर्शनसंग्रह-ग्रंथ में जैनदर्शनके परिचयके लिए इसीके ही श्लोक आ. जिनदत्तमूरिजीके हवालेसे उद्धृत किये है। किसी दिगम्बर विद्वानको अपने समाजमें इस ढंगके ग्रन्थका अभाव खटका, और विचार आते ही "श्रावकाचार" बना दिया । उसके निर्माताका नाम है “जिगचन्द्रमुरिके शिष्य कुन्दकुन्द आचार्य"ग्रन्थनिर्माताने भी ज्यादह तकलीफ ही न उठाई, कुछ संस्कार देकर सारेके मारे 'विवेक पिलास'का ही “श्रावकाचार" नाम रख दिया। बस, इस तरह एक अनूठा दिगम्बर शास्त्र तय हो गया। कुन्दकुन्द आचार्यने 'विवेकविलास'में जो २ संस्कार दिये हैं वे ये हैं १-दोनों ग्रंथके आदि मंगलाचरण, उल्लासकी संख्या विषयनिरूपण, विषयप्रतिपादक प्रलोक और अंतिम काव्य एकरूप हैं, परस्परमें सिर्फ २५-३० श्लोकोंका हेरफेर है। २. कुन्दकुन्द आचार्यजीने 'विवेकविलास के कई श्लोक उडा दिये हैं। उल्लास १ के ८४ से ९८ श्लोक, उ० २ का ३९ वा, उ०३ का ६० वा, उ०५ के १०-११-५७-१४२-१४३-१४४-१४६ १८८ से १९२ (१२) प्रलोक, और उ० ८ के ४९-६०-६१-७५-८५-२५५-२९३-३४३-३४४-६४६-३६७-४२०-ब ४२१ श्लोक में से पूरे पौने आधे या पाव श्लोक उडा दिये हैं। ३. कुन्दकुन्द आचार्यने 'श्रावकाचार' में कुछ नये श्लोक बढा दिये है। उ० १ में ६३ से ७०॥ श्लोक, उ० २ में ३३-३४ चे श्लोक और उल्लास * पं. जुगलकिशोर मुख्तारको ग्रन्थपरीक्षाके आधार पर । ___x श्री वेंकटेश्वर प्रैस -बम्बइसे मुद्रित वि. सं. १९२६ का संस्करण 'सर्व दर्शन मंग्रह आहत दर्शन "लो. २३ पृ. ३८-७२ । For Private And Personal Use Only

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