Book Title: Jain_Satyaprakash 1942 11
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
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सागरगच्छाय साधुआकी उपस्थापना-दिनावली संग्राहक व सम्पादक-पूज्य पंन्यासजी महाराज श्री कल्याण विजयजी गणो.
जन पुस्तक-भण्डारोंमें विचित्र प्रकारकी ऐतिहासिक सामग्री भरी पड़ी है यह बात अब सर्वविदित हो चुकी है। आप पुराने भण्डारोंकी ग्रन्थसूचियां देख कर ही संतुष्ट न हूयिये, उनके त्रुटक ग्रन्थ और रद्दी समझे जानेवाले लिखित पत्रसंग्रहका भी सूक्ष्म दृष्टिसे निरीक्षण करें, आपको उनमेंसे कइ उपयोगी चीजोंका पता लगेगा। विशेष करके ऐतिहासिक घटनावलियां, वैद्यकके ' बहुमूल्य नुस्खे और ज्योतिषके सुगम तथा चुटकुले बहुमूल्य आम्नाय हाथ लगेंगे जिनका पढकर आपका चित्त फडक उठेगा।
हमने अपने अन्वेषणमें अनेक बहुमूल्य चीन प्राप्त की हैं। जो इन विषयोंमें रुचि रखनेवाले विद्वानोंके लिये पर्याप्त रूपसे उपयोगी हो सकती हैं।
___ 'सागरच्छीय साधुओंकी उपस्थापना-दिनावली' का पन्ना जिसका यहां परिचय दिया जा रहा है, हमें इसी प्रकारके रद्दी पत्रोंको टटोलते हुये हाथ लगा था।
यह पत्र १९४५। ईच लम्बा चौडा है । इस लम्बे पत्र में कुल १५८ पंक्तियां हैं और १२५ सवासौ साधुओंकी उपस्थापना (बडी दीक्षा) होने की संवत् मितियां हैं। किसकी उपस्थापना किसके हाथसे हुई इसका क्वचित् निर्देश हुआ है, सर्वत्र नहीं । इससे यह मालूम होता है कि जहां उपस्थापना करनेवाले का नामोल्लेख नहीं है, वे सब उपस्थापनायें तत्कालीन गच्छपति आचार्य के हाथमे हुई होगी। उपस्थापना लेनेवाले साधुके नामके पहले बहुधा उसके गुरुका नाम भी लिख दिया है, इससे यह भी सुगमतासे जाना जा सकता है कि कौन साधु किसका शिष्य था।
जहां उपस्थापना दी गई है कहीं कहीं उन गांवका भी नामनिर्देश किया गया है, इसी तरह क्वचित् उपस्थापना करनेके समयका भी सूचन किया गया है। . वर्तमान समयमें बहुधा वर्षाकालको छोड़कर दिनके पूर्वभागमें उपस्थापना कराते हैं, परन्तु इस पत्रस्थित सूचीसे ज्ञात होता है कि उस समय आश्विन शुक्ल १० को और इसके बाद वर्षाकालमें भी और अपराह्णमें भी उपस्थापना दी जाती थी।
___ आजकल दोक्षा, प्रतिष्ठा आदिके मुहूर्तोंमें मंगलवारको सर्वथा त्याच्य गिनते हैं जैसाकि ज्योतिष शास्त्रमें लिखा है, परन्तु इस उपस्थापनावलीको देखनेसे जाना जाता है कि उस समय मंगलवारको भी उपस्थापना दे देते थे ।
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