Book Title: Jain_Satyaprakash 1941 08
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
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दीवान राव शाह लक्ष्मीचन्दजी सुराणा
लेखक : श्रीयुत हजारीमलजी यांठिया शाह लक्ष्मीचंदजी, शाह ताराचंदजी के ज्येष्ठ पुत्र थे। आपका राव अमरचंदजी की तरह सैनिक क्षेत्र विशाल है, जो सर्वथा प्रशंसनीय है ।
वि० सं० १८७३ [ई. स. १८१६ ] में शाहजी हुकुचंदजी के साथ आप भी रतनगढ सर करने के लिए भेजे गये थे। इस खिदमात में महाराजा सरतसिंहजी ने लक्ष्मीचंदजी को रावका खिताब प्रदान किया।
वि० सं० १८८१ [ई० स० १८२४ ] में देवा के ठाकुर सूरजमल बीकाने अंग्रेजी इलाके में गांव थाणा आदि लूटे और उत्पात किया । अंग्रेजी सेनाने उस पर चढाई की तो वह भाग कर बीदावतों के गांव सेला की गढ़ी में चला गया । इस पर बीकानेर से रावजी लक्ष्मीचंदजी सुराणा की अध्यक्षता में उस पर सेना भेजी गई । आपके साथ मेहता सालमसिंहजी भी थे । १० दिन तो वह रावजी का सामना करता गया, अंत में वह गढ़ छोडकर गांव लावडिया की गढ़ी में चला गया । इस प्रकार वह आठ गढ़ीयों में भागता रहा पर रावजीने ससैन्य उसका पीछा छोडा नहीं और सूरजमल का निवास स्थान नष्ट कर दिये।
वि. सं. १८८७ [इ. स. १८३० ] में महाजन के ठाकुर वैरिशालने भावलपुर से निकल कर-जैसलमेर जाकर वहाँ के रावल से मिलकर एवं सहायता लेकर ज्येष्ठ मास में पूगल से लडाई करनेकी तैयारी की । इधर महाराजा रत्नसिंहजीने अपने दीवान रात्र लक्ष्मीचंदजी सुराणा को महाजन
वि० सं० १८८७ [ ई० स० १८३० ] के लगभग फाल्गुन मास में चुरु के सरदारों का उपद्रव बढने पर महाराजा रत्नसिंहजी ने उस उपद्रव को शांत करके सुप्रबन्ध करने के लिये लक्ष्मीचंदजी सुराणा को चुरु भेजा। आपके साथ खवास गुलाबसिंह भी था। उन्हीं दिनो में दिल्ली से एक खरीता आया, उसमें यह लिखा था कि कर्नल लॉकेट शेखावटी के लुटेरे सरदारों का प्रबन्ध करने जा रहे हैं । इस खरीते को पाकर महाराजा रत्नसिंहजीने रावजी लक्ष्मीचंदजी को उसकी सेवामे भेजा।
बागी बख्तावरसिंह अभी तक बीकानेर के इलाके में लूटमार किया करता था । उसे पकड़ने के लिए एक खरीता कर्नल सदरलैंडके पास से वि० सं०
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