Book Title: Jain Satyaprakash 1936 08 SrNo 14
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir HBHEEBERRIEDHEERRBEHARGHACHTERTE श्री गिरिनारतीर्थपति श्री नेमिनाथ-स्तोत्रम् कर्ता-आचार्य महाराज श्रीविजयपद्ममूरिजी WHETHEREIEHEREMIEREHEREFERTEREETHEREHEEEEEEEEE ॥ आर्यावृत्तम् ॥ सिरि सरिमंतसरणं-किचा गुरुणेमिमूरिपयणमणं ।। रेवयसामित्थवणं-करेमि कल्लाणवीयघणं ॥१॥ विज्झापाहुडमज्जे-वृत्तंतं जस्स रेवयणगम्स ॥ तयहीसरणेमिपहं-समुदतणयं सया वंदे ॥२॥ अवराजियसुक्खं जो-भोच्चा चविओ सिवाइ कुक्खिम्मि ॥ कत्तियभासे किण्हे-पक्खे वरवारसीदियहे ॥ ३ ॥ चित्ताचंदे जाओ, जो सावणसुकपंचमीदियहे ॥ कण्णा रासी तइया-तं जेमिजिणेसरं वंदे ॥ ४ ॥ सावणसियछट्टदिणे-छट्टेण तवेण सुद्ध भावेणं ॥ छत्तसिलाइ समीवे-पवणदिववं पहुं वंदे ॥ ५ ॥ सहसंबवणे जेणं-अस्सिणपजंतवासरे सिट्टे ।।। केवलनाणं लद्धं-तं मिपहुं सया वंदे ॥ ६॥ ॥ शार्दूलविकीडितवृत्तम् ॥ रुक्रवज्झाणसुया तहेव पुरिसा चत्तारि सिद्धा सुया । भासाजायसुधम्मवत्थदुलहा चत्तारि ते कोरवा ॥ सण्णाकोहनिबंधणाइ पडिमा चत्तारि णेया तहा । एवंणिम्मलदेसणं पथुणिमो संखंकणेमिप्पहुं ।।७।। साणुप्पेहणलक्रवणाइ चउहाऽऽलंबा वि भेया तहा। णायन्बो विणओ गुरूण भविया ! अट्टाइयाणं य भे॥ गेज्झाइं चरमाइ दोणि पढमाई संति वे णो तहा । एवंणिम्मलदेसणं पथुणिमो संखंकणेमिप्पहुं ॥ ८॥ मज्जाया चउहा सुराण तह संवासो वि संभासिओ । दारिद्दाइदुहप्पयाणपवणा णेया कसाया समे ॥ For Private And Personal Use Only

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