Book Title: Jain Satyaprakash 1936 08 SrNo 14
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
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૫૬. શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
ભાદ્રપદ गमन थवाथी महापर्यवसानवाळा थाय छ। प्रदर्शित थाय छ। आ वगेरे अनेक गुणोने आना ज विशेष विवेचनमा भाष्यकार भगवान् लईने ते मोक्षफलने आपनार थाय छे. नीचे प्रमाणे जणावे छे :
__ जेम कोइ वसन्तपुर वगैरे नगरमां ववहारे दसमए दसविहं साहुस्स जुत्तजोगस्स। जवाना बे रस्ता होय छे, तेमां एक रस्तो तो एगंतनिजरा से न हु नवरि कयम्मि सञ्झाए सुन्दर फलफुलवाळा वृक्षनी घटावळो मनोहर
॥१३७ ॥ होय अने बीजो मार्ग तेनाथी विपरीत होय । [ व्यवहारे दशमके दशविधं साधोयुक्तयोगस्य । तेवी ज रीते मोक्षनगरमा जवाना बे रस्ता छः एकान्तनिर्जरा तस्य न खलु केवले कृते जेमां वेयावञ्चयुक्त जे मार्ग ने प्रथम मार्गसमान स्वाध्याये ॥१३७ ॥]
छे, अने वेयावच्चरहित पोताना काममां परायण
जीवोनो बीजो मार्ग छे । ___व्यवहारसूत्रना दशमा उद्देशामां कहेल । जे दश प्रकारनुं वेयावच्च तेमा जोडायेला ते तपस्या करतां वेयावञ्चगुणने अधिक मुनिने एकान्त कर्मनी निर्जरा थाय छे, जे मानवो पडे छे ते नीचेनी वातथी सूचित थाय कर्मनी निर्ज। केवल स्वाध्याय करवाथी थई छे:-- शकतो नथी।
बे मुनिराजो कोई स्थाने रहेला छे, ए पञ्चवस्तुमां पण वेयावच्चने माटे नीचे बेमाथी कोई एक मुनिराजनी निमित्तवशात प्रमाणे प्रतिपादन करे छे :--
तबीयत असाधारण नरम पड़ी गई छे, तेनुं सारांश----पूर्व भवनी अन्दर भरतमहा
तमाम काम साथै रहेला मुनिराजने करवानुं छे । राजे मुनिराजोनी वेयावच्च करी हती, जेने
आ तमाम कार्य अने तपस्या ए बे साथे बनी लईने ते छ खण्डना अधिपतिपणाने पाम्या,
शके तेम नथी। हवे अहीया तपस्या छोड़ी राज्यसुख भोगव्या, उत्तम मुनिपणुं पाळ्यु
दईने ग्लानमुनिनी वेयावच करवी के मान्दाने अने आठे कर्मनो क्षय करीने यावत् मोक्षमा
हलवलतो मुकी तपस्या करीन बेसी जावू ? गया। रायदिक तो वेयावञ्चना आनुषङ्गिक
आना जबाबमा जणावयु पडशे के तप छोडीने फल छे, परम्परानुं फल तो मोक्ष छे, कारण
वेयावध करवी। कोई पुछशे के शाथी वेयायच के वेयावच्च करवाथी तीर्थङ्करदेवनी आज्ञानुं
करवी अने तपने छोडवो ! तो तेना जवाबमां आराधन थाय छे; अन्यनी अनुकम्पा थाय छे. जणाव पडशे के भाई, तप करतां वेयावञ्चमा ज्ञानादिक गुणना आधारनी भक्ति करवाथी वधार लाभ जणाय छे । तेथी कबुल थई ज्ञानादिक गुगनी पण भक्ति थाय छे. कर्मनी गयुं के तपस्या करतां वेयावच अधिक छे. निर्जरा थाय छे अने पोतानुं निरभिमानपणुं
( अपूर्ण)
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