Book Title: Jain Satyaprakash 1936 02 SrNo 08
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૧૯૯૨ સમીક્ષા બ્રમાવિષ્કરણ २४८ कहेवामां आवे के चर्म पापी विगेरेथी भांजाइ शुं करशो? तेनो जेबो जवाब तेवो आनो गयुं होय त्यारे तेने मुलापर्बु पग पडे अने जवाब छे । नीचोववू पण पडे ! आना जवाबमां जणाव- यत्रोभयलमो दोषः परिहारोऽपि वा समः। वार्नु जे कदाच मोरपिच्छी दिगेरे पाथी नैकः पर्यन्यज्यः स्यात्तादशार्थविचारणे।।१॥ भीजाइ जाय त्यार तेने पण सुकाववं अने । सारांश-७, साधुको अपने चमडे या नीचोवq पडशे त्यां असंयम थशे तेनु शुं जूतेका चोर आदि द्वारा चोरी होजाने पर करशो? पार्छ तेवू करवामां अने फाडवामां या लुटजाने पर साधुका मन मलिन होगा। जे असंयम बताव्यो तेना जवाबमां जगाववानुं । जे तहकरवामां अने फाडवामां जो असंयम आना जवाबमां जणाबवानुं जे, अमारा गणवामां आवतो होय तो पस्तकना पानाने । श्वेतांबर गुनिओ चर्म राखता नथी, अने न भेगां करवामां तथा चोटी गयेल ने जुदा राखq ए ज राज मार्ग छे, परन्तु कोइ करवामा पण तमाग दिगम्बर मुगिने असंयम प्रबल कारणे कदाचित् अपवाद मार्गे राखवा मां आवे छे । अने सामान्य रीते गृहस्थ थइ जशे। लोको जे जोडा वापरे छे ते तो अमारा ___ कदाच एम कहेवामां आवे के वर्म मुनिओने वापरवा कल्पता नथी, अपवाद जीववाळु छे माटे तेमां उपर्युक्त क्रिया करती मार्गे पग तलियां अने खल्लको ज छ । हवे बखते असंयम थाग, अने मोरपिच्छी विगेरे मुनिनी पासे रहेली वस्नी चोरी श्रवाथी निर्जीव छे माटे तेमां असंयम न थाग। तमारा दिगम्बर मुन्नुि मन पर मलिन थशे आना जवाबमां जाववानुं जे, आ प्रस्तुत न शुं करशो: वन्तुतः, उपकर मां राग चर्म पण निर्जीव छे आ वात अमो पूर्वे न राखनो ए मुनिनो धर्म छे, कदाच कोइ अनेक वार कही आव्या छीए । चोरी जाय तो पा प्रथम राग न हतो माटे सारांश-६, मुनिको इच्छानुसार चमडा मन मलिन थवानु कांइ कारण ज नथी। मिलजाने पर हर्ष, और वैसा न मिलने पर सारांश--८, हिंसा तथा अपवित्रतासे शोक होगा। बचनेके लिये जब कि गृहस्थ मनुष्य भी आना जबाबमां जमाववानुं जे, मुनिने पहनने, बिछाने के लिये अपने पास चमड़ा इच्छानुसार चर्म मलवाथी जो हर्ष थतो होय नहीं रखता है तो महाव्रतधारी साधु उसका अने तेवू न मलवाथी जो शोक थतो होय प्रयोग करे यह निन्दनीय एवं पापजनक जो तमारा दिगम्बर मुनिने इच्छानुसार मोर- बात है। पिच्छी अने कमण्डलु विगैरे मलबाथी हर्ष आमांथी नीचे प्रमाणे चार वस्तुओ थशे, अने तेवु न मलवाथी शोक थशे तेनुं तरी आवे छे: For Private And Personal Use Only

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