Book Title: Jain Ramayana Author(s): Krushnalal Varma Publisher: Granthbhandar Mumbai View full book textPage 6
________________ (५) प्रस्तावना। wwwrooroom कलिकाल सर्वज्ञके नामसे ख्यात प्रातःस्मरणीय श्रीमद हेमचंद्राचार्यके नामसे जैन समाजका बहुत बड़ा भाग परिचित है। बच्चा बच्चा परिचित है, यह कहनेका हम साहस नहीं कर सकते। क्योंकि गजपूतानामें, वराड प्रान्तमें और मुगलाईमें हजारों, लाखोंकी -संख्या ऐसे लोगोंकी है कि, जो अपने सब तीर्थंकरोंकी बात तो दूर रही मगर वर्तमानमें जिनका शासन है, उन महावीरस्वामीका, काम की कौन कहे, नाम भी नहीं जानते । नाम और काम तो दूर रहा हजारों, ऐसे हैं जो यह भी नहीं जानते कि, वे जैनी हैं। ऐसी दशा होनेपर भी हिन्दी भाषा बोलनेवाले श्वेतांबर समाजमें हजारों ऐसे हैं जो हेमचंद्राचार्यका नाम जानते हैं; तीर्थकरोंका भी, नाम जानते हैं; परन्तु वे उनके कार्योंसे सर्वथा अजान हैं । वे चाहते हैं कि उन्हें अपने पूर्व पुरुषोंके चरित्र जाननेको मिलें । जिससे वे भी उनके समान अपने चरित्रोंको संगठन कर सकें । मगर अपनी मातृभाषा हिन्दीमें उनके लिए कोई साधन नहीं । जितने भी ग्रंथ हैं वे सब संस्कृतमें मागधीमें या गुजरातीमें हैं । इसलिए हिन्दी भाषी भाइयोंकी इच्छा; जिज्ञासा; पूर्तिके लिए हमने यह प्रयत्न किया है । — मूल ग्रंथ श्रीमद हेमचंद्राचार्य द्वारा लिखा गया है । हेमचंद्राचार्यने त्रिपष्ठिशलाका-पुरुष-चरित्र, नामा ग्रंथ लिखा है । उसमें दस पर्व हैं । प्रत्येक पर्वमें निम्न प्रकारसे चरित्र आये हैं । १-२४ तीर्थकर; १२ चक्रवर्ती; ९ बलदेवः ९ वासुदेव; और ९ प्रति वासुदेव; इनकी जोड़ ६३ होती है । इन्हींके चरित्रोंका इसमें वर्णन है । इनको शलाका पुरुष कहते हैं। इसी लिए इस ग्रंथका नाम 'त्रिषष्टिशलाका-पुरुषचरित्र रक्खा गया है।Page Navigation
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