Book Title: Jain Ramayana
Author(s): Krushnalal Varma
Publisher: Granthbhandar Mumbai

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Page 11
________________ (१०) बोलनेवाले अपने पूर्वजोंके चरित्रोंसे परिचित होकर अपना चारि उन्नत बना सकें इस लिए; हमने यह साहस किया है । अगर हम हिन्दी भाषी भाइयोंने इससे लाभ उठाया तो हम अपने साहसर शुभ और अपने परिश्रमको सफल समझेंगे। __ अनुवादमें कई त्रुटियाँ होंगी। हम इसको स्वीकार करते हैं। भी उनके लिए क्षमा माँगना नहीं चाहते, क्योंकि हमने अपने अयोग्य समझते हुए भी जब साहस किया है, तब उसमें होनेवाल भूलोंकी क्षमा कैसी ? हाँ विद्वान सज्जन इस भूल भरे अनुवादव देखकर यदि कोई नवीन उत्तम अनुवाद करेंगे या हमारी भूलें ह बतानेकी कृपा करेंगे, तो हम उनके बहुत कृतज्ञ होंगे। हमारे हिन्दी भाषी जैन भाई इस अनुवादसे लाभ उठावें या आशा रखनेवाला ३४ डालमिया बिल्डिंग लेडी हार्डिंज रोड, माटूंगा-बम्बई । विनीत. कृष्णलालवर्मा प्रेम'

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