Book Title: Jain Purano ka Sanskrutik Aavdan
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 19
________________ परिशिष्ट ९. साधु १० : जैन पुराणकोश रूपकवर पर्वत की विद्युत्कुमारी देवियाँ १. पूर्व में चित्रादेवी २. दक्षिण में कनकचित्रा ३. पश्चिम में त्रिशिरस् देवी ४. उत्तर में सूत्रामणि देवी हपु० ५.७१८-७२१ रुचकवर पर्वत बासिनी विक्कुमारी देवियों की प्रधान देवियाँ १. ऐशान रुचका देवी २. आग्नेय रुचकोज्ज्वला देवी ३.नैऋत्य रुचकाभा ४. वायव्य रुचकप्रभा हपु० ५.७२२-७२४ तप-भेद बाह्यतप १. अनशन २. अवमौदर्य ३. वृत्तिपरिसंख्यान ४. रसपरित्याग ५. तन-सन्ताप ६. विविक्तशयनासन मपु० १८.६७-६८ आभ्यन्तर तप १. प्रायश्चित्त २. विनय ३. वैयावृत्य ४. स्वाध्याय ५. व्युत्सर्ग ६. ध्यान मपु० १८.६९, २०.१९०-२०४ प्रायश्चित्त के भेद वैयावृत्य तप के भेद १. प्राचार्य ६. गण २. उपाध्याय ३. तपस्वी ८. संघ ४. शैक्ष्य ५. ग्लान १०. मनोज इन दस प्रकार के मुनियों की सेवा । हपु ६०.४२-४५ देव-भेद १. भवनवासी देव २. व्यन्तर देव ३. ज्योतिष्क देव ४. वैमानिक देव वीवच १४.६४ भवनवासी देव-भेव १. असुरकुमार २. नागकुमार ३. सुपर्णकुमार ४. द्वीपकुमार ५. उदधिकुमार ६. स्तनितकुमार ७. विद्युत्कुमार ८. दिक्कुमार ९. अग्निकुमार १०. वायुकुमार हपु० ४.६३-६५ ज्योतिष्क देव-भेव १. चन्द्र २. सूर्य ३. ग्रह ४. नक्षत्र ५. तारागण हपु. ६.७, वीवच० १४.५२ व्यन्तर देव-भेव १. किन्नर २. किंपुरुष ३. महोरग ४. गन्धर्व ५. यक्ष ६. राक्षस ७. भूत ८.पिशाच मपु०, ६३.१८५-१८६ (इनका एक साथ पुराणों में नामोल्लेख नहीं है)। १. आलोचना ५. व्युत्सर्ग ९. उपस्थान २. प्रतिक्रमण ६. तप ३. तदुभय४. विवेक ७. छेद ८. परिहार हपु० ६४३२-३७ विनय तप के भेद २. दर्शनविनय ३. चारित्रविनय २.ज्ञानविनय ४. उपचारविनय हप०६ स्वाध्याय तप के भेद १. वाचना २. पृच्छना ३. अनुप्रेक्षा ४. आम्नाय ५. उपदेश हपु० ६०.४६-४८ व्युत्सर्ग तप के भेद १. आभ्यान्तरोपाधि त्याग २. बाह्योपाधि त्याग हपु० ६०.४९-५० वैमानिक कल्पोपपन्न देव-भेद १. सौधर्म २. ईशान ३. सनत्कुमार ४. माहेन्द्र ५. ब्रह्म ६. ब्रह्मोत्तर ७.लान्तव ८. कापिष्ठ ९.शुक्र १०. महाशुक्र ११. सतार १२. सहस्रार १२. आनत १४.प्राणत १५. आरण १६ अभयत हपु० ६.३६-३८ वैमानिक कल्पातीत देव-भेद १. नौ ग्रेवेयक- अधोवेयक- सुदर्शन, अमोध, सुप्रबुद्ध मध्य अवेयक-- यशोधर, सुभद्र, सुविशाल ऊर्ध्व वेयक सुमन, सौमनस्य, प्रीतिकर २. नौ अनुदिश- आदित्य, अचिं, अचिमालिनी, वज, वेरोचन, सौम्य, सौम्यरूपक, अंक, स्फुटिक । ३. पांच अनुत्तर- विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित, सर्वार्थसिद्धि । हपु० ६.३९-४०, ५२-५३, ६३-६५ Jain Education Intemational Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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