Book Title: Jain Purano ka Sanskrutik Aavdan
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अवदान सम्पादक प्रो० प्रवीणचन्द्र जैन डॉ० दरबारोलाल कोठिया सह सम्पादक डॉ० कस्तूरचन्द सुमन पाणुज्जीवी जोवो अनविताना प्रकाशक जैनविद्या संस्थान दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी ( राजस्थान ) wwwsainali Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अवदान सम्पादक प्रो० प्रवीणचन्द्र जैन डॉ० दरबारोलाल कोठिया सह सम्पादक डॉ० कस्तूरचन्द सुमन AFREN प्रकाशक जैनविद्या संस्थान दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी ( राजस्थान) Jain Education Intemational Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ D प्रकाशक जैनविद्या संस्थान दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी श्रीमहावीरजी (राज.) ३२२२२० - प्राप्ति स्थान १. जनविद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी २. अपभ्रंश साहित्य अकादमी दिगम्बर जैन नसिया भट्टारकजी सवाई रामसिंह रोड, जयपुर-३०२००४ 10 प्रथम बार, १९९३ ० मूल्य : १ 10 मुद्रक वर्द्धमान मुद्रणालय, १९, जवाहरनगर कॉलोनी, वाराणसी-१० Jain Education Intemational Jain Education Intermational Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रास्ताविक 'जैन पुराणों का सांस्कृतिक अवदान' पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है । जैन पुराणों में प्रेसठ शलाका पुरुषों का जोवन-चरित चर्चित है । महापुराण में इन सभी श्रेसठ पुरुषों का वर्णन है। पद्मपुराण में बलभद्र पद्म (राम) और नारायण लक्ष्मण तथा प्रतिनारायण रावण का जीवन-चरित दर्शाया गया है । हरिवंशपुराण में नारायण कृष्ण तथा प्रतिनारायण जरासन्ध का जीवनवृत्त निबद्ध है। पाण्डवपुराण में प्राचीन दो प्रमुख राजवंशों के मध्य नारायण कृष्ण की भूमिका और वीरवर्द्धमानचरित में तीर्थंकर महावीर की जीवनी है । इन शलाका पुरुषों के माध्यम से सांस्कृतिक मूल्यों को जैन पुराणों में अभिव्यक्ति की गई है। प्रस्तुत पुस्तक में १. दार्शनिक एवं धार्मिक सामग्री, २. भौगोलिक सामग्री एवं ३. ऐतिहासिक सामग्री का संकलन किया गया है। इस प्रकार से यह पुस्तक जैन पुराणों को सांस्कृतिक सामग्री को समझने में सहायक सिद्ध होगी। इससे शोधकर्ताओं को समस्त सामग्रो एक स्थान पर उपलब्ध हो सकेगी। प्रो० प्रवीणचन्द्रजो जैन एवं डॉ० दरबारीलालजी कोठिया ने अथक परिश्रम कर इसका सम्पादन किया है, उनके हम आभारी हैं । जैनविद्या संस्थान में कार्यरत विद्वान् डॉ० कस्तूरचन्द 'सुमन' का सहयोग अत्यन्त प्रशंसनीय रहा । जनविद्या संस्थान के पूर्व संयोजक डॉ. गोपीचन्दजी पाटनी एवं श्री ज्ञानचन्द्रजी खिन्दूका तथा वर्तमान संयोजक डॉ. कमलचन्दजी सोगाणी ने इस योजना को साकार करने में सदैव उत्साह दिखाया है अतः हम उनके आभारी है। कपूरचन्द पाटनी मंत्री प्रबन्धकारिणी कमेटी दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी नरेशकुमार सेठी अध्यक्ष प्रबन्धकारिणी कमेटी दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय जैन संस्कृति के सम्यक्ज्ञान के लिए जैन-पुराण साहित्य एक महत्वपूर्ण साधन है । जैन पुराणों में तिरेसठ शलाका पुरुषों के माध्यम से सांस्कृतिक मूल्यों को अभिव्यक्त किया गया है । संस्कृति के भौतिक और आध्यात्मिक पक्षों को उजागर करना जैन-पुराणों को अभीष्ट रहा है । भौतिक समृद्धि की सीमाओं को दर्शाते हुए आध्यात्मिक समृद्धि की उच्चता दर्शायी गई है । अतः मोक्ष परम पुरुषार्थ है। मोक्ष पुरुषार्थ की सिद्धि के लिए जैन पुराणों की देन अनुपम है । प्रस्तुत पुस्तक 'जैन पुराणों का सांस्कृतिक अवदान' में दार्शनिक एवं धार्मिक सामग्री संकलित की गई है। संस्कृति का उत्कर्ष या अपकर्ष भौगोलिक स्थिति पर भी आश्रित होता है । अतः ऐसी सामग्री का संकलन भौगोलिक सामग्री के अन्तर्गत किया गया है। अपने अतीत के जाने बिना वर्तमान को दिशा प्राप्त नहीं होती है । अतः इस पुस्तक में ऐतिहासिक सामग्री भी प्रस्तुत की गई है। यह निःसन्देह कहा जा सकता है कि उच्चतम जीवन मूल्यों की प्राप्ति में सहायक जैन-पुराणों के सांस्कृतिक अवदान के महत्त्व से जब तक समाज अपरिचित रहेगा नर से नारायण बनने के भाव उसमें कभी उत्पन्न नहीं हो सकेंगे। आशा है प्रस्तुत रचना के अध्ययन मनन और अनुशीलन से समाज लाभान्वित होगा। प्रसन्नता का विषय है कि जैन संस्कृति को जानने समझने के लिए एक ऐसी पुस्तक के सृजन की आवश्यकता अनुभव की गई जिसमें जैन संस्कृति के दार्शनिक, धार्मिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक सभी पक्षों की आवश्यक जानकारी संकलित हो । संस्थान के इसी प्रयल का फल है प्रस्तुत पुस्तक-जैन पुराणों का सांस्कृतिक अवदान । यह पुस्तक 'जैन पुराण कोश' का एक अंश है। इसके सम्पादन में प्रो० प्रवीणचन्द्रजी जैन एवं डॉ० दरबारीलालजी कोठिया ने अथक परिश्रम किया है, उनके हम आभारी हैं । जैनविद्या संस्थान में कार्यरत विद्वान् डॉ. कस्तूरचन्द सुमन का सहयोग अत्यन्त प्रशंसनीय रहा है । डॉ० गोपीचन्द पाटनी पूर्व संयोजक जैन विद्या संस्थान समिति श्रीमहावीरजी ज्ञानचन्द्र खिन्दका पूर्व संयोजक जनविद्या संस्थान समिति श्रीमहावीरजी डॉ० कमलचन्द सोगाणी संयोजक जैनविद्या संस्थान समिति श्रीमहावीरजी Jain Education Intemational Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय जैन पुराण साहित्य जैन संस्कृति का दर्पण है । जैन आचार्य जिनसेन ने "पुरातनं पुराणं स्यात्" कहकर प्राचीन आख्यानों को पुराण माना है।' “इति इह आसीत्" यहाँ ऐसा हुआ पुराण में ऐसी कथाओं का निरूपण होने से उसे 'इतिहास, इतिवृत्त' और 'ऐतिह्य' भी कहा है। एक परिभाषा में क्षेत्र, काल, तीर्थ, सत्पुरुष और उनकी चेष्टाएँ ऐसे पंचलक्षण-युक्त साहित्य को 'पुराण' बताया गया है। इस परिभाषा में ऊर्ध्व, मध्य और पाताल-रूप तीन लोकों को क्षेत्र; भूत, भविष्यत् और वर्तमान तीनों समयों को काल; मोक्ष प्राप्ति के उपायभूत सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र को तीर्थ तथा तीर्थसेवियों को सत्पुरुष और उनका न्यायोपेत् आचरण उनको चेष्टाएं मानी गयो है। पुराण की परिभाषा और वर्ण्य-विषय पर एक साथ विचार करते हुए निष्कर्षरूप में पुराण में-लोक, देश, नगर, राज्य, तीर्थ, दान, तप, गति और फल इन आठ विषयों को पुराण का वर्ण्य-विषय बताया गया है । इनमें लोक का नाम, व्युत्पत्ति, दिशा तथा उसके अन्तरालों को, लम्बाई-चौड़ाई आदि को वर्णन लोकाख्यान, लोक के किसी एक भाग में स्थित देश, पहाड़, द्वीप तथा समुद्रादि का सविस्तार वर्णन देशाख्यान, राजधानी का वर्णन पुराख्यान, नगरपति का वैभव, विलास और राज्यविस्तार वर्णन राजाख्यान, जो संसार से पार करे वह तीर्थ ऐसे तीर्थकर के चरित का वर्णन तीर्थाख्यान, अनुपम फल प्राप्ति में सहायक तप-दान का कथन तपोदान कथा, चारों गतियों को विभिन्न अवस्थाओं का निरूपण गत्याख्यान और पुण्य-पाप-फल का मोक्ष-प्राप्ति-पर्यन्त वर्णन करना फलाख्यान कहा है। पुराण को सत्कथा संज्ञा भी दी गयी है तथा ऐसी कथा के सात अंग बताये हैं । वे हैं-द्रव्य, क्षेत्र, तोर्थ, काल, भाव, महाफल और प्रकृत । इनमें द्रव्य छ: है-जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म आकाश और काल । त्रिलोक-क्षेत्र है । तीर्थकर का चरित तीर्थ, भूत-भविष्यत् और वर्तमान ये तीन काल, क्षायोपशमिक और क्षायिक ये दो भाव, तत्त्वज्ञान का होना फल और कथावस्तु प्रकृत अंग कहा है। पुराण की पंचलक्षण परिभाषा में प्रयुक्त 'सत्पुरुष' शब्द यहाँ ध्यातव्य है । सत्पुरुषों को रत्नत्रय तीर्थ का सेवी बताये जाने से ज्ञात होता है कि पुराण में सत्पुरुष का अभिप्राय उन पुरुषों से है जिन परुषों के आश्रय से पुराणों की रचना हुई है। वे पुरुष तिरेसठ हैं। उनकी गणना निम्न प्रकार है-चौबीस तीर्थकर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलभद्र, नौ नारायण और नौ प्रतिनारायण । इन तिरेसठ सत्पुरुषों को 'शलाका पुरुष' कहा गया है । पुराणों में इन्हीं शलाका पुरुषों का जीवनचरित चचित है। महापुराण में इन सभी का उल्लेख है। पदमपुराण में बलभद्र पद्म (राम) और नारायण लक्ष्मण तथा प्रतिनारायण रावण का जीवन चरित दर्शाया गया है। हरिवंशपुराण में नारायण कृष्ण तथा प्रतिनारायण जरासन्ध का जोवनवृत्त है । इसी प्रकार पाण्डवपुराण में प्राचीन दो प्रमुख राजवंशों के मध्य नारायण कृष्ण की भूमिका और वीरवर्द्धमानचरित में तीर्थंकर महावीर की जीवनी का उल्लेख है। इन महापुरुषों के जीवनवृत्त में उनके पूर्वभवों का उल्लेख भी है, जिसमें उनको धार्मिक अधार्मिक, नैतिक अनैतिक भावनाओं का प्रदर्शन और उन शुभाशुभ भावनाओं से उत्पन्न पुण्य-पाप-फल भी दर्शाया गया है। यह भी स्पष्ट बता दिया गया है कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थों में मोक्ष साध्य और धर्म, अर्थ तथा काम उसके साधन है। पुरुष का परम पुरुषार्थ है साधनों के माध्यम से साध्य को ओर बढ़ना/अपने लक्ष्य को प्राप्त करना। इसके लिए आवश्यक है शारीरिक या मानसिक शक्तियों का प्रशिक्षण, दृढ़ीकरण या विकास अथवा उससे उत्पन्न अवस्था। इसी का नाम है 'संस्कृति' ।' यह दो प्रकार की होती है-भौतिक संस्कृति और आध्यात्मिक संस्कृति । जैन पुराणों में दोनों संस्कृतियां समाहित है। इनमें आध्यात्मिक संस्कृति का उद्देश्य आत्मा को परमात्मा बनाना है। इसके लिए पुराणों में आत्मा का अस्तित्व सिद्ध किया गया है। मुनियों के उपदेश दर्शाए गये हैं। उपदेशों में धर्म-दर्शन और तत्त्वज्ञान की महत्त्वपूर्ण बातों का उल्लेख किया गया है। शलाका पुरुषों और शलाकेतर पुण्य-पुरुषों के जीवन में घटित-घटनाओं को देकर बताया गया है कि जीव कर्माबद्ध होकर दुःख भोगता है। वह चाहे तो रत्नत्रयपूर्वक तप करके कर्मों को भस्म कर सकता है और पा सकता है-शिव-सुख । आराधना से अहंन्त और सिद्ध होकर आराध्य बन सकता है । पतित से पावन बनने के लिए निर्ग्रन्थ होकर सहर्ष परोषह सहते हुए धर्म धारण करना होता है। महाव्रत, समिति, गुप्ति धारणकर आत्मच्यान करना होता है। इसके पश्चात् ही परम शुक्लध्यान से केवलज्ञान प्रकट होता है और मिकता है शाश्वत सुख । Jain Education Intemational Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन पुराणों में कथा के माध्यम से इन समस्त बातों का समावेश हुआ है । मोक्ष पुरुषार्थ की सिद्धि के लिए जैनपुराणों को यह अनुपम देन है। इस सामग्री का प्रस्तुत ग्रन्थ में 'दार्शनिक एवं धार्मिक सामग्री' शीर्षक में संकलन किया गया है। संस्कृति का उत्कर्ष या अपकर्ष भौगोलिक स्थिति पर आश्रित होता है। भौगोलिक ज्ञान के अभाव में संस्कृति को यथार्थ स्थिति को जानना असंभव है । जैन पुराणों में द्वीप, सागर, देश, नगर, ग्राम, नदी, पर्वत, वन, सरोवर के न केवल नामोल्लेख है अपितु उनका संक्षिप्त परिचयात्मक वर्णन भी उपलब्ध है। भूकम्प, ज्वालामुखी, वर्षा या अन्य कारणों से भौगोलिक स्थिति परिवर्तित होती रही है। जहाँ अतीत में नगर थे वहाँ आज उनके खण्डहर भी नहीं है। अतः अतीत में कहाँ क्या था ? या वर्तमान में उनकी स्थिति कहाँ हो सकती है ? इस शोध-खोज के सन्दर्भ में जैन पुराणों का सांस्कृतिक अवदान सदैव स्मरणीय रहेगा । ऐसी सामग्री का संकलन भौगोलिक सामग्री शीर्षक में द्रष्टव्य है। अपने अतीत को जानने, पहिचानने के लिए हमें इतिहास देखना होता है । हमारे पूर्वज कौन थे? उन्होंने किस वंश को अलंकृत किया था। जीवन-मूल्यों की सुरक्षा के लिए वे क्या करते थे? युद्ध के समय कौन अस्त्र-शस्त्र व्यवहृत होते थे? कौन से वाद्य कब बजाये जाते थे? पुरुष और स्त्रियाँ आभूषण किन अंगों में धारण करते तथा आभूषणों के क्या नाम थे? विद्याओं का क्या स्थान था ? आदि प्रश्नों का समाधान आज पौराणिक संस्कृति से सरलतापूर्वक प्राप्त हो जाता है। वषभदेव के १००८ नाम और घृतराष्ट्र के १०० पुत्रों के नाम भी पुराण ही अपने भीतर संजोए हुए हैं । इस प्रकार पराणों के इस सांस्कृतिक अवदान के सन्दर्भ में ध्यातव्य है ऐतिहासिक सामग्री। इस सम्पूर्ण विवेचना से ज्ञात होता है कि शरीर, मन और आत्मा इन तीनों को सुसंस्कृत-अलंकृत कर उच्चतम जीवन मल्यों को प्राप्त करना सांस्कृतिक जीवन का लक्ष्य है और भोजन-पान, आहार-विहार, वस्त्राभूषण, क्रिया-कलाप आदि को सुसंस्कृत कर जीवनयापन करना सांस्कृतिक प्रेरणा का प्रतिफल है। अतः कहा जा सकता है कि उच्चतम जीवन-मल्यों की प्राप्ति में सहायक जैन पुराणों के सांस्कृतिक अवदान के महत्त्व से जब तक समाज अपरिचित रहेगा, नर से नारायण बनने के भाव उसमें कभी उत्पन्न नहीं होंगे। आशा है प्रस्तुत रचना के अध्ययन-मनन और अनुशीलन से समाज लाभान्वित होगा। जैनविद्या संस्थान के पूर्व संयोजक डॉ० गोपीचन्दजी पाटनी, पूर्व संयोजक श्री ज्ञानचन्द्रजी खिन्दूका, संयोजक 1. कमलचन्दजी सोगाणी और साहित्यानुरागी डॉ० नवीनकुमारजी बज के सुझाव से इस सांस्कृतिक सामग्री को स्वतन्त्र पुस्तक का स्वरूप प्राप्त हो सका । अतः मैं इन सभी के प्रति आभार प्रकट करता हूँ। प्रो० प्रवीणचन्द्र जैन सम्पादक १. आचार्य जिनसेन, महापुराण-भाग प्रथम, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, मार्च १९५१ ईसवी, पर्व १, श्लोक २१ । २. इतिहासं इतीष्टं तद् इतिहासीदिति श्रुतेः । इतिवृत्तमथतिहमाग्नायञ्चामनन्ति तत् ।। वही, १-२५ । ३. स च धर्मः पुराणार्थः पुराणं पञ्चधा विदुः । क्षेत्र कालश्च तोर्थश्च सत्पुंसस्तद्विचेष्टितम् ।। क्षेत्र त्रैलोक्यविन्यासः कालस्त्रकाल्यविस्तरः। मुक्त्युपायो भवेत्तीर्थ पुरुषास्तन्निषेविणः ॥ न्याप्यमाचरितं तेषां चरितं दुरितच्छिदम् । इति कृत्स्ना पुराणार्थः प्रश्ने संभावितस्त्वया ॥ वही, २/३८-४० Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ७ ४. लोको देशः पुरं राज्यं तीथं दानतपोऽन्वयम् । पुराणेष्वष्टधारव्येयं गतयः फलमित्यपि ॥ लोकोद्दे शनिरुक्त्यादिवर्णनं यत्विस्तरम् । लोकाख्यानं तदाम्नातं विशोधितदिगन्तरम् ॥ तदेकदेशदेशाद्रि द्वीपाब्ध्यादि प्रपञ्चनम् । देशाख्यानं तु तज्ज्ञयं तज्जैः सज्ञानलोचनः ॥ भरतादिषु वर्षेषु राजधानी प्ररूपणम् । पुराख्यानमितीष्टंतत् पुरातनविदांमते ॥ अमुष्मिन्नधिदेशोऽयं नगरञ्चेति तत्पतेः । आख्यान यत्तदाख्यातं राजाख्यानं जिनागमे ।। संसाराब्धेरूपारस्य तरणे तीर्थमिष्यते । चेष्टितं जिननाथानां तस्योक्तिस्तीर्थसंकथा ।। यादृशं स्यातपोदानमनीदृश गुणोदयम् । कथनं तादृशशयास्य तपोदानकथोच्यते ।। नरकादिप्रभेदेन चतस्त्रो गतयो मताः । तासां संकीर्तनंयद्धि गत्याख्यानं तदिष्यते ॥ पुण्यपापफलावाप्तिर्जन्तूनां यादृशी भवेत् । तदाख्यानं फलाख्यानं तच्च निःश्रेयसावधि ॥ वही, ४/३-११ द्रव्य क्षेत्र तथा तीर्थ कालो भावः फलं महत् । प्रकृतं चेत्यमून्याहुः सप्ताङ्गानि कथामुखे ॥ द्रव्यं जीवादि षोढा स्यात्क्षेत्रं त्रिभुवनास्थितिः । जिनेन्द्रचरितं तीर्थ कालस्त्रेधा प्रकोर्तितः ॥ प्रकतं स्यात् कथावस्तु फलं तत्त्वावबोधनम् । भावः क्षयोपशमजस्तस्य स्यात्क्षायिकोऽथवा ॥ इत्यमुनि कथाङ्गानि यत्र सा सत्कथा मता। यथावसरमेवैषां प्रपञ्चो दर्शयिष्यते ॥ वही, १/१२२-१२५ पुराणं संग्रहीष्यामि त्रिषष्टि पुरुषाश्रितम् । तीर्थेशामपि चक्रेशां हलिनामर्धचक्रिणाम् । त्रिषष्टि लक्षणं वक्ष्ये पुराणं तदद्विषामपि ॥ वही, १/१९-२० ७. चउवोसवारतिघणं तित्ययरा छत्तिखंडभरहवई । तुरिए काले होतिहु तेवट्ठि सलागपुरिसा ते ॥ त्रिलोकसार, गाथा ८०३ । तित्थयर चक्कबलहरि पडिसत्तुणाम विस्सुदा कमसो। विउणियबारस बारस पयत्यणिघिरंध्रसंखाए ।। ५११ ।। तिलोयपण्णत्ति, जैनेन्द्र सिद्धान्तकोश, भाग ४, प्रकाशन ई० १९७३, पृ०९। ८ संस्कृति के चार अध्याय, राजपाल एण्ड सन्स, दिल्ली, प्रथम संस्करण, प्रस्तावना, पं. जवाहरलाल नेहरू, पृष्ठ १ । .. आदिपुराण में प्रतिपादित भारत, पृ० १९२ । Jain Education Intemational Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट विषय-सूची धार्मिक एवं दार्शनिक सामग्री १. अनागत-पुण्यपुरुष, कुलकर, तीर्थकर, अनागत तीर्थपुर जीव, चक्रवर्ती, बलभद्र, नारायण, प्रतिनारायण, रुद्र २. अर्हन्त-मूलगुण ३. सव-क्रियाएँ ५. ऋद्धियाँ ६. कर्म-प्रकृतियाँ ७. गणघर ८. गर्भान्वय क्रियाएँ ९. गुणस्थान, मार्गणा, प्रमाद, भाषा, सत्य-भेद १०. छप्पन देवियाँ ११. तप-भेद १२. देव-भेद १३. ध्यान-भेद १४. परीषह और धर्मभेद १५. पुद्गल, मंगल द्रव्य, नय और नरकभूमियाँ १६. भरतेश द्वारा स्तुत वृषभदेव के १०८ नाम १७. भावनाएं १८. मिथ्यादृष्टियाँ १९. मुक्त जीव के गुण २०. योग और प्रतिमा-भेद २१. व्रत और अतिचार २२. वर्तमान शलाका-पुरुष : तीर्थकर, चक्रवर्ती, बलभद्र नारायण, प्रतिनारायण २३. शलाकेतर पुण्यपुरुष : वर्तमान कुलकर, रुद्र, नारद २४. श्रुत-भेद २५. श्रोता-भेद एवं गुण २६. संसारी जीव के गुण २७. सम्यक्त्व-भेद एवं अंग २८. सहस्रनाम २९. साधु-मूलगुण ३०. सिद्ध-मूलगुण ३१. सूत्रपद भौगोलिक सामग्री १. कुलाचल २. क्षेत्र ३. गजदन्त पर्वत ४. ग्राम ५. देश ६. द्वीप-सागर ७. नगर ८. नदियाँ ९. पर्वत १०. महा नदियाँ ११. वक्षारगिरि १२. बत्तीस विदेह देश और राजधानियाँ १३. वन १४. विभंग नदियाँ १५. सरोवर ऐतिहासिक सामग्री ___ १. अस्त्र-शस्त्र २. आभूषण ३. इक्ष्वाकु वंश ४. कौरव-वंश ५. गान्धर्व-भेद ६. धृतराष्ट्र के सौ पुत्र ७. राक्षस वंश १६ ८. वाद्य ९. वानर-वंश १०. विद्या १८ ११. विद्याधर-जातियाँ १८ १२. विद्याधर-वंश १८ १३. समवसरण तृतीय कोट द्वार-नाम २५ १४. सूर्यवंश २५ १५. सोमवंश २५ १६. हरिवंश Jain Education Intemational Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनागत पुण्य पुरुष अनागत कुलकर महापुराण के अनुसार हरिवंशपुराण के अनुसार कनक मपु०७६.४६३ हपु० ६०.५५५ मपु०७६.४६४ 3 हपु० ६०.५५६ मपु०७६.४६५ ८. कनक कनकप्रभ कनकराज कनकध्वज कनकपुंगव नलिन नलिनप्रभ नलिनराज नलिनध्वज नलिनपुंगव पद्मप्रभ पद्मराज पद्मध्वज पद्मपुंगव कनकप्रभ कनकराज कनकध्वज कनकपुंगव नलिन नलिनप्रभ नलिनराज नलिनध्वज नलिनपुंगव पद्म पद्मप्रभ पद्मराज पद्मध्वज पद्मपुंगव महापद्म १०. ११. हपु० ६०.५५७ १२. मपु० ७६.४६६ १३. : अनागत तीर्थकर महापुराण के अनुसार हरिवंशपुराण के अनुसार नाम तीर्थकर माम तीर्थकर सन्दर्भ मपु० ७६.४७७ हपु० ६०.५५८ महापदम सुरदेव सुपाव स्वयंप्रभ सर्वात्मभूत मपु० ७६.४७८ हपु० ६०.५५९ देवपुत्र कुलपुत्र उदंक महापद्म सुरदेव सुपार्श्व स्वयंप्रभ सर्वात्मभूत देवदेव प्रभोदय उदंक प्रश्नकीर्ति जयकीति सुव्रत अर पुण्यमूर्ति निष्कषाय विपुल १०. मप० प्रोष्ठिल जयकीति मुनिसुव्रत अरनाथ अपाप निष्कषाय विपुल १२. हपु० .५६० Jain Education Intemational Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २: जैन पुराणकोश परिशिष्ट निर्मल " मपु० ७६.४८० ४८० १८. हपु० ६०.५६१ चित्रगुप्त समाधिगुप्त स्वयंभू अनिवर्ती विजय १९. २०. २०. निर्मल चित्रगुप्त समाधिगुप्त स्वयंभू अनिवर्तक जय विमल दिव्यपाद अनन्तवीर्य २१. २२. २३. २१. २२. विमल देवपाल अनन्तवीर्य मपु० ७६.४८१ २४. हपु० ६०.५६२ अनागत-तीर्थकर-होनेवाले जीव मपु०७६.४७१ मपु०७६.४७३ ७६.४७२ १. श्रणिक २. सुपाव ३. उदंक ४. प्रोष्ठिल ५. कटत ६. क्षत्रिय ७. श्रेष्ठी ८. शंख ९. नन्दन १०. सुनन्द ११. शशांक १२. सेवक १३. प्रेमक १४. अतोरण १५. रैवत १६. वासुदेव १७. बलदेव १८. भगलि १९. वागलि २०. द्वैपायन २१. कनकपाद २२. नारद २३. चारुपाद २४. सात्यकिपुत्र ७६.४७४ मपु० ७६.४७३ अनागत चक्रवर्ती महापुराण के अनुसार मपु०७६.४८२ ०६०.५६३ मपु०७६.४८३ १. भरत २. दीर्घदन्त ३. मुक्तदन्त ४. गूढ़दन्त ५. श्रीषेण ६. श्रीभूति ७. श्रीकान्त ८. पद्म ९. महापद्म १०. विचित्रवाहन ११. विमलवाहन १२. अरिष्टसेन हरिवंशपुराण के अनुसार १. भरत २. दीर्घदन्त ३. जन्मदत्त ४. गूढदन्त ५. श्रीषण ६. श्रीभूति ७. श्रीकान्त ८. पद्म ९. महापद्म १०. चित्रवाहन ११. विमलवाहन १२. अरिष्टसेन हपु० ६०.५६४ मपु०७६.४८४ हपु०६०.५६५ Jain Education Intemational Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट जैन पुराणकोश : ३ अनागत बलभद्र महापुराण के अनुसार हरिवंशपुराण के अनुसार १. चन्द्र १. चन्द्र २. महाचन्द्र २. महाचन्द्र ३. चक्रधर ३. चन्द्रधर ४. हरिचन्द ४. सिंहचन्द्र ५. सिंहचन्द्र ५. हरिचन्द्र ६. वरचन्द्र ६. श्रीचन्द्र ७. पूर्णचन्द्र ७. पूर्णचन्द्र ८. सुचन्द्र ८. सुचन्द्र ९. श्रीचन्द्र ९. बालचन्द्र मपु० ७६.४८५-४८६ हपु० ६०.५६८-५६९ अनागत नारायण महापुराण के अनुसार हरिवंशपुराण के अनुसार १. नन्दि मपु० ७६.४८७ १. नन्दी हपु० ६०.५६६ २. नन्दिमित्र , २. नन्दिमित्र ३. नन्दिषेण , ३. नन्दिन ४. नन्दिभूति मपु० ७६.४८८ ४. नन्दिभूतिक ५. महाबल ६. महाबल ६. अतिबल ७. अतिबल ७. बलभद्र ८. त्रिपृष्ठ मपु० ७६.४८९ ८. द्विपृष्ठ हपु० ६०.५६७ ९. द्विपृष्ठ ९. त्रिपृष्ठ अनागत प्रतिनारायण १. श्रीकण्ठ ४. अश्वकण्ठ ७. अश्वग्रीव २. हरिकण्ठ ५. सुकण्ठ ८. हयग्रीव ३. नीलकण्ठ ६. शिखिकण्ठ ९. मयूरग्रीव हपु ६०.५६९-५७० अनागत रुद्र ५. बल " अनन्त-चतुष्टय १. अनन्त दर्शन २. अनन्त ज्ञान ३. अनन्त सुख ४. अनन्त वीर्य मपु० ४२.४४ अष्ट प्रातिहार्य १. अशोक वृक्ष का होना। २. देवकृत पुष्प-वृष्टि । ३. देवों द्वारा चौंसठ चमर दुराया जाना। ४. प्रभामण्डल का होना। ५. दुन्दुभि ध्वनि का होना। ६. सिर पर त्रिछत्र होना। ७. सिंहासन का रहना। ८. दिव्यध्वनि का होना। हपु० ३.३१-३८ अतिशय जन्मकालीन १० अतिशय १. मल-मूत्र रहित शरीर का होना । २. स्वेद रहित शरीर का होना। ३. श्वेत रुधिर का होना। ४. वज्रवृषभनाराचसंहनन का होना । ५. समचतुत्रसंस्थान का होना। ६. अत्यन्त सुन्दर रूप । ७. शरीर का सुगन्धित होना। ८. शरीर का १००८ लक्षणों से युक्त होना । ९. अनन्तवीर्य का होना। १०. हितमितप्रिय वचन बोलना । हपु० ३.१०-११ केवलज्ञानकालीन १० अतिशय १. नेत्रों की पलकें नहीं झपकना। २. नख और केशों का नहीं बढ़ना । ३. कवलाहार का अभाव होना । ४. वृद्धावस्था का अभाव । ५. शरीर को छाया का अभाव । ६. चतुर्मुख दिखाई देना। ७. दो सौ योजन तक सुभिक्ष रहना । ८. उपसर्ग का अभाव । ९. प्राणि-पीड़ा का अभाव । १०. आकाशगमन । ११. सर्व विद्याओं का स्वामीपना । नोट-हरिवंशपुराणकार ने केवलज्ञान के समय प्रकट होनेवाले दस अतिशयों के स्थान में ग्यारह अतिशय बताये है । उन्होंने 'वृद्धावस्था का अभाव' नामक अतिशय अधिक बताया है। इसी प्रकार सुभिक्षिता में सौ योजन के स्थान में दो सौ योजन का उल्लेख किया है। हपु० ३.१२-१५ १. प्रमद २. सम्मद ३. हर्ष ४. प्रकाम १०. काम ५. कामद ८. मनोभव ११. अंगज ६. भव ९. मार हपु० ६०.५७१-५७२ अर्हन्त-गुण अनन्त चतुष्टयप्रातिहार्यअतिशय ३ योग = ४६ मपु०४२.४४-४६ Jain Education Intemational Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ : जेन पुराणकोश देवकृत चौदह अतिशय १. अर्द्धमागधी भाषा का होना । २. समस्त जीवों में पारस्परिक मित्रता का होना । ३. सभी ऋतुओं के फल-फूलों का एक साथ फलना-फूलना । ४. पृथिवी का दर्पण के समान निर्मल होना । ५. मन्द-ति वायु का बहना। ६. सभी जीवों का आनन्दित होना । ७. पवनकुमार देवों द्वारा एक योजन भूमि का कीट रहित एवं निष्कंटक किया जाना । ८. स्तनितकुमार देवों का सुगन्धित बुष्टि करना । ९. चलते समय चरणतले कमल का होना । १०. आकाश का निर्मल होना । ११. दिशाओं का निर्मल होना । १२. आकाश में जय-जय ध्वनि होना । १३. धर्मचक्र का आगे रहना । १४. पृथ्वी का नान्यादि से सुशोभित होना । हरिवंशपुराणकार ने अर्हन्त को ध्वजादि अष्ट मंगल द्रव्यों से युक्त तो बताया है किन्तु देवकृत चौदह अतिशियों में इसे सम्मिलित नहीं किया है । आवकारी क्रियाएँ हपु० ३.१६-३० साम्परायिक आसयकारी २५ क्रियाएँ १. सम्यक्त्व क्रिया २. मिथ्यात्व क्रिया ५. ईर्यापथ क्रिया ४. समादान क्रिया ७. कायिकी क्रिया ८. क्रियाधिकरणी क्रिया ९ पारितापिकी क्रिया १०. प्राणातिपातिकीक्रिया ११. दर्शन क्रिया १२. स्पर्शन क्रिया १२. प्रत्याविकी क्रिया १४ सन्तानुपातिनी क्रिया १५ जनाभोग क्रिया १६. स्वहस्त क्रिया १७. निसर्ग क्रिया १८. विदारण क्रिया १९. आज्ञाव्यापादिकी क्रिया २०. अनाकांछा क्रिया २१. प्रारम्भ क्रिया २२. पारिग्रहिकी क्रिया २३. माया क्रिया २४. मिथ्यादर्शन क्रिया २५. अप्रत्यख्यान क्रिया हपु० १० ५८.५८-८२ ३. प्रयोग किया ६. प्रादोषिकी क्रिया पापाखावकारी १०८ क्रियाएँ समरम्भ, समारम्भ और आरम्भ ये तीनों कृत, कारित और अनुमोदना पूर्वक होने से प्रत्येक के १३ होते हैं इस प्रकार तीनों के कुछ ९ भेद हो जाते हैं । ये भेद क्रोध, मान, माया और लोभ इन चारों कषायों के योग से उत्पन्न होने के कारण प्रत्येक के चार-चार भेद हो जाते हैं । इस प्रकार समरम्भ, समारम्भ और आरम्भ तीनों के पृथक्-पृथक् बारहबारह भेद करने के पश्चात् चूँकि ये क्रियाएएँ मन, वचन और काय से सम्पन्न होती है । अतः प्रत्येक के बारह भेदों को इन तीन से गुणित करने पर प्रत्येक के छत्तीस भेद और तीनों के कुल एक सौ आठ भेद होते हैं । जीव प्रतिदिन ऐसे एक सौ आठ प्रकार से आस्रव करता है । हपु० ५८.८५ १. चमर ५. देव ९. जलप्रभ इन्द्र भवनवासी देवों के इन्द्र २. वैरोचन ३. भूतेश ६. वेणुधारी ७. पूर्ण १०. जलकान्ति ११. हरिषेण १४. अग्निवाहन १५. अमितगति १८. महाघोष १९. वेलांजन प्रतीन्द्र भवनवासी देवों के इन्हीं नामों के बीस प्रतीन्द्र होते हैं। वीवच० १४.५४-५८ १२. अग्नि १७. घोष १. किन्नर ५. अतिकाय ९. मणिभद्र १३. सुरूप १. सौधर्मेन्द्र ५. बामेन्द्र ९. आनतेन्द्र १. सूर्य १. राजा ७. ८. ९. व्यन्तर देवों के इन्द्र २. किम्पुरुष ३. ६. महाकाय १०. पूर्णभद्र १४. प्रतिरूप प्रतीन्द्र व्यन्तर देवों के सोलह इन्हीं नामों के प्रतीन्द्र होते हैं । वीवच० १४.५९-६३ क्र० सं० नाम ऋद्धि १. २. ३. उग्र कल्पवासी देवों के इन्द्र २. ऐशानेन्द्र ६. सातवे १०. प्राणतेन्द्र अक्षीर्णोद्ध अक्षीण-पुष्पद्ध सी-महान अक्षीण संवास सत्पुरुष ७. गीतरति ११. भीम १५. काल प्रतीन्द्र कल्पवासी देवों के इन्हीं नामों के बारह प्रतीन्द्र भी होते हैं । वोवच० १४.२५, ४०-४८ ज्योतिष देवों के इन्द्र २. चन्द्र अमृतसाविणी अम्बरचारण आमर्ष षष ऋि कुल १०० होते हैं। ऋद्धियाँ इतर दो इन्द्र परिशिष्ट ४. धरणानन्द ८. अवशिष्ट १२. हरिकान्त १६. अमितवाहन २०. प्रभंजन ४. महापुरुष ८. रतिक्रीति ७. शुक्रेन्द्र ११. आरणेंन्द्र ३. सनत्कुमारेन्द्र ४. माहेन्द्र ८. शतारेन्द्र १२. अच्युतेन्द्र २. सिंह १२. महाभीम १६. महाकाल वीवच० १४.५२-५३ सन्दर्भ मपु० ११.८८ मपु० ६.१४९ मपु० ३६.१५५ मपु० ३६.१५५ मपु० २.७२ मपु० २.७३ मपु० २.७१ मपु० ११.८२ मपु० ३६.१५३ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट जैन पुराणकोश : ५ १४. १७. १८. २०. २७, कायबल मपु० २.७२ कोष्ठबुद्धि मपु० १४.१८२ १२. क्षीरस्राविणी मपु० २.७२ क्ष्वेल मपु०२.७१ घृतस्रावी मपृ० २.१२ घोरद्धि मपु० ११.८२ जंघाचारण म्पु० २.७३ जलचारण मपु० २.७३ जल्ल मपु० २.७१ तन्तुचारण मपु० २.७३ तप मपु० ३६.१३९-१४१ २१. तप्त मपु० ११.८२ २२. तप्ततप्त मपु० ३६.१५० दीप्त मपु० ११.८२ २४. पदानुसारिणी मपु० २.६७ पुष्पचारण मपु० २.७३ प्राकाम्य मपु० ३८.१९३ प्राप्ति मपु० ३८.१९३ फलचारण मपु० २.७३ बलद्धि मपु० ११.८७ ३०. बीजबुद्धि मपु० ११.८० मधुस्राविणी मपु० २.७२ रसद्धि मपु० ३६.१५४ वाग्विपुट मपु० २.७१ ३४. विक्रिद्धि मपु० २.७१ श्रेणीचारण मपु०२.७३ संभिन्नश्रोत्रबुद्धि मपु० २.६७, ११.८० ३७. सर्पिरास्राविणी मपु० २.७२ सर्वोषधि मपु० २.७१ कर्मों की उत्तर प्रकृतियाँ १. ज्ञानावरण-५ १. मतिज्ञानावरण २. श्रुतज्ञानावरण ३. अवधिज्ञानावरण ४. मनःमर्ययज्ञानावरण ५. केवलज्ञानावरण हपु०५८.२२३ २. वर्शनावरण-९ १. चक्षुर्दर्शनावरण २. अचक्षुर्दर्शनावरण ३. अवधिदर्शनावरण ४. केवलदर्शनावरण ५. निद्रा ६. निद्रानिद्रा ७. प्रचला ८. प्रचलाप्रचला ९. स्त्यानगृद्धि हपु० ५८.२२६-२२९ ३. वेदनीय-२ १. साता वेदनीय २. असातावेदनीय हपु० ५८.२३० ४. मोहनीय-२८ दर्शन मोहनीप-३ १. सम्यक्त्व २. मिथ्यात्व ३. सम्यक्मिथ्यात्व हपु० ५८.२३१ चारित्रमोहनीय-२५ १. नो कषाय-हास्य, रति, अरति, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद । हपु० ५८.२३४-२३७ २. कषाय-अनन्तानुबन्धी-क्रोध, मान, माया, लोभ अप्रत्याख्यानावरण संबंधी-क्रोध, मान, माया, लोभ प्रत्याख्यानावरण संबंधी-क्रोध, मान, माया, लोभ संज्वलन-संबंधी-क्रोध, मान, माया, लोभ । हपु० ५८.२३८-२४१ ५. आयु-४ देव आयु, मनुष्य आयु, तिर्यच आयु और नरकायु । हपु० ५८.२४२ ६. नाम कर्म-९३ गति नाम कर्म ४-नरक, तिर्यच, मनुष्य और देवगति । जाति नाम कर्म : ५-एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक । शरीर नाम कर्म : ५-औदारिक, वैक्रियक, आहारक, तैजस और कार्माण । . अंगोपांग नाम कर्म : ३-औदारिक, वैक्रियक, आहारक । निर्माण नाम कर्म : २-स्थान निर्माण, प्रमाण निर्माण । बन्धन नाम कर्म : ५-औदारिक, वैक्रियक, आहारक, तेजस और कार्माण । संघात नाम कर्म : ५-औदारिक, वैक्रियक, आहारक, तेजस और कर्माण । संस्थान नाम कर्म : ६-समचतुन, न्यग्रोधपरिमण्डल, स्वाति, कुब्जक, वामन, हुण्डक । संहनन नाम कर्म : ६-वजर्षभनाराच, वजनाराच, नाराच, अर्धनाराच, कीलक, असंप्राप्तसृपाटिका । स्पर्श नाम कर्म : ८-कड़ा, कोमल, गुरु, लघु, स्निग्ध, रुक्ष. शीत, उष्ण । रस नाम कर्म : ५–कटक, तिक्त, कषायला, आम्ल, मधुर । गन्ध नाम कर्म : २-सुगन्ध, दुर्गन्ध । वर्ण नाम कर्म : ५-कृष्ण, नोल, रक्त, पीत और शुक्ल । आनुपूर्व्य नाम कर्म : ४-देव, मनुष्य, तिर्यच, नारक । अगुरुलघु-१, उपघात-१, परघात-१, आताप-१, उद्योत-१, उच्छ्वास-१, विहायोगति-१, प्रत्येक शरीर१, साधारण-१, त्रस-१, स्थावर-१, सुभग-१, दुर्भग-१, सुस्वर-१, दुःस्वर-१, शुभ-१, अशुभ-१, सूक्ष्म-१, बादर-१, पर्याप्ति-१, अपर्याप्ति-१, स्थिर-१, आदेय-१, अनादेय-१, यश कीर्ति-१, अपयशस्कीति-१ ३१. ३२. ३५. Jain Education Intemational Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६:बैन पुराणकोश परिशिष्ट तीर्थकर-१, सन्दर्भ सन्दर्भ नाम गणवर वृषभसेन कुम्भसेन दृढ़रथ शतधनु देवशर्मा देवभाक् नन्दन सोमदत्त सूरदत्त वायुशर्मा यशोबाहु देवाग्नि अग्निदेव अग्निगुप्त मित्राग्नि हलभृत् महोधर ७. गोत्र२-उच्च और नोच । हपु० ५८.२७९ ८. अन्तरायाय ५-दानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय, हपु० ५८.२४३-१७८ वीर्यान्तराय । हपु० ५८.२८०-२८२ वृषभदेव के क्रमानुसार चौरासी गणधर महापुराण के अनुसार हरिवंशपुराण के अनुसार नाम गणधर मपु० ४३.५४ वृषभसेन हपु० १२.५५ कुम्भ दृढ़रथ शत्रुदमन देवशर्मा धनदेव हपु० १२.५६ मपु० ४३.५५ नन्दन सोमदत्त सुरदत्त वायुशर्मा २.५७ सुबाहु १२. देवाग्नि अग्निदेव १४. अग्निभूति तेजस्वी हपु० १२.५८ अग्निमित्र हलधर १८. महीधर माहेन्द्र वसुदेव वसुन्धर अचल हपु० १२.५९ २३. मेरु १४. मपु० ४३.५६ १५. महेन्द्र वसुदेव वसुन्धर अचल २०. २१. ४३.५७ २२. मेरु भूति ir r ४३.५८ २७. सर्वसह यज्ञ सर्वगुप्त सर्वप्रिय सर्वदेव २८. मेरुधन मेरुभूति सर्वयश सर्वयज्ञ सर्वगुप्त सर्वप्रिय सर्वदेव सर्वविजय विजयगुप्त विजयमित्र विजयिल अपराजित हपु० १२.६० २९. n ३०. ३०. विजय m ३१. ४३.५९ m विजयगुप्त विजयमित्र विजयश्री पराख्य ३३. m हपु० १२.६१ ३४. Jain Education Intemational Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट जैन पुराणकोश : ७ ३५. ३५. . हपु० १२.६२ ४०. ४३.६१ हपु० १२.६३ ४८. ४८. ४३.६२ हपु० १२.६४ वसुमित्र विश्वसेन साधुसेन सत्यदेव देवसत्य सत्यगुप्त सत्यमित्र निर्मल विनीत सम्बर मुनिगुप्त मुनिदत्त मुनियज्ञ मुनिदेव गुप्तयज्ञ मित्रयज्ञ स्वयम्भू भगदेव भगदत्त भगफल्गु गुप्तफल्गु मित्रफल्गु प्रजापति सर्वसन्ध वरुण धनपालक मघवान् तेजोराशि महावीर महारथ विशालाक्ष महाबाल शुचिशाल वज़ वज्रसार ५२. अपराजित वसुमित्र वसुसेन साधुसेन सत्यदेव सत्यवेद सर्वगुप्त मित्र सत्यवान विनीत संवर ऋषिगुप्त ऋषिदत्त यज्ञदेव यज्ञगुप्त यज्ञमित्र यज्ञदत्त स्वायंभुव भागदत्त भागफल्गु गुप्त गुप्तफल्गु मित्रफल्गु प्रजापति सत्ययश वरुण धनवाहिक महेन्द्रदत्त तेजोराशि महारथ विजयश्रुति महाबल सुविशाल वन वैर चन्द्रचूड मेघेश्वर कच्छ महाकच्छ सुकन्छ अतिबल भद्रावलि नमि मपु० ४३.१३ ५७. हपु० १२.६५ हपु. १२.६६ ६३. म ४३.६४ हपु० १२.६७ मपु० ४३.६५ ७१. ७२. ७१. ७२. हपु० १२.६८ ७३. जय महारस कच्छ महाकच्छ नमि विनमि बल ७४. ७५. ७७. ७७. Jain Education Intemational Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८:जैन पुराणकोष परिशिष्ट सन्दर्भ सम्पर्भ क. ७८. ७९. मपु० ४३.६६ ७९. हपु० १२.६९ नाम गणपर अतिवल भद्रबल नन्दी महाभागी नन्दिमित्र कामदेव अनुपम ८०. नाय गणपर विनमि भद्रबल नन्दी महानुभाव नन्दिमित्र कामदेव अनुपम ८१. ८३. हपु० १२.७० ८४. शेष तीर्थंकरों के प्रमुख गणधर सन्दर्भ श्रेयांसनाथ महापुराण के अनुसार नाम तीर्थकर गणधर नाम व संख्या अजितनाथ सिंहसेन आदि नब्वे गणघर, मपु० ४८.४३ संभवनाथ चारुषेण आदि १०५ गणधर मपु० ४९.४३ अभिनन्दननाथ वचनाभि आदि १०३ मपु० ५०.५७ सुमतिनाथ चामर आदि ११६ मपु० ५१.७६ पद्मप्रभ वजचामर आदि ११० मपु० ५२.५८ सुपाश्वनाथ बल आदि ९५ मपु० ५३.४६ चन्द्रप्रभ दत्त आदि ९३ मपु० ५४.२४४ पुष्पदन्त विदर्भ आदि ८८ मपु० ५५५२ शीतलनाथ अनगार आदि ८१ मपु० ५६.५६ कुन्थु आदि ७७ मपु० ५७.५४ वासुपूज्य धर्म आदि ६६ मपु० ५८.४४ विमलनाथ मन्दर आदि ५५ मपु० ५९.४८ अनन्तनाथ जय आदि ५० मपु० ६०.३७ धर्मनाथ अरिष्टसेन आदि ४३ मपु० ६१.४४ शान्तिनाथ चक्रायुध आदि ३६ मपु० ६३.४८९ कुन्थुनाथ स्वयंभू आदि ३५ मपु० ६४.४४ अरनाथ कुम्भायं आदि ३० मपु० ६५.३९ मल्लिनाथ विशाख आदि २८ यपु० ६६.५४ मुनिसुव्रत मल्लि आदि १८ मपु० ६७.४९ नमिनाथ सुप्रभार्यादि १७ मपु० ६९.६० नेमिनाथ वरदत्तादि ११ मपु० ७१.१८२ पार्श्वनाथ स्वयंभू आदि १० मपु० ७३.१४९ महावीर के गणधर हरिवंशपुराण के अनुसार गणधर नाम एवं संख्या सिंहसेन आदि नब्बे गणघर, चारुदत्त आदि १०५ गणधर वज आदि १०३ चमर आदि ११६ वज्रचमर आदि १११ बलि आदि ९५ दत्तक आदि ९३ वैदर्भ आदि ८८ अनगार आदि ८१ कुन्थु आदि ७७ सुधर्मादि ६६ मन्दरार्य आदि ५५ जय आदि ५० अरिष्टसेन आदि ४३ चक्रायुध आदि ३६ स्वयंभू आदि ३५ कुन्थु आदि ३० विशाख आदि २८ मल्लि आदि १८ सोमक आदि १७ वरदत्तादि ११ स्वयंभू आदि १० सन्दर्भ हपु० ६०.३४६ हपु० ६०.३४६ मपु. ६०.३४७ हपु०६०.३४७ हपु०६०.३४७ हपु० ६०.३४७ हपु० ६०.३४७ हपु० ६०.३४७ हपु० ६०.३४७ हपु० ६०.३४७ हमु० ६०.३४७ हपु० ६०.३४८ हपृ० ६०३४८ हपु० ६०.३४८ हपु० ६०.३४८ हहु०६०.३४८ हपु० ६०.३४८ हपु० ६०.३४८ हपु० ६०.३४८ हपु० ६०.३४८ हपु० ६०.३४९ हपु० ६०.३४९ १२. २०. २१. २२. १. इन्द्रभूति ५. मौर्य ९. अकम्पन महापुराण के अनुसार २. वायुभूति ३. अग्निभूति ६. मौन्द्रय ७. पुत्र १०. अन्धवेल ११. प्रभास ४. सुधर्म ८. मैत्रेय १. इन्द्रभूति ५. सुधर्म ९. अचल हरिवंशपुराण के अनुसार २. अग्निभूति ३. वायुभूति ६. माण्डव्य ७. मौर्यपुत्र १०. मेदार्य ११. प्रभास ४. शुचिदत्त ८. अकम्पन मपु० ७४.३५६,३७४ हपु० ३.४१-४४ Jain Education Intemational Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट मैन पुराणकोश : ९ गर्भान्वय क्रियाएँ ७. उपाषिवाक् भाषा ८. निकृति भाषा ९. अप्रणति भाषा १०. मोघ (मोष) भाषा ११. सम्यग्दर्शन भाषा १२. मिथ्यादर्शन१. आधान २. प्रीति ३. सुप्रीति ४. धृति भाषा ५. मोद ६. प्रियोद्भव ७. नामकर्म ८. बहिर्यान हपु० १०.९१-९७ ९. निषद्या १०. प्राशन ११. केशवाप १२. लिपि सत्य-भेद १३. संख्यानसंग्रह १४. उपनोति १५. व्रतचर्या १६. व्रतावतरण १७. विवाह १८. वर्णलाभ १९. कुलचर्या २०. गृहीशिता २. रूप सत्य ३. स्थापना सत्य २१. प्रशान्ति २२. गृहत्याग २३. दीक्षाघ २४. जिनरूपता ४. प्रतीत्यसत्य ५. संवृत्तिसत्य ६. संयोजना सत्य २५. मौनाध्ययनवृत्तत्व २६. तोर्थकृतभावना २७. गुरुस्थानाभ्युपगम ७. जनपद सत्य ८. देश सत्य ९. भाव सत्य २८. गणोपग्रह २९. स्वगुरुस्थानसंक्रान्ति ३०. निःसंगत्वात्मभावना १०. समय सत्य ३१. योगनिर्वाण संप्राप्ति ३२. योगनिर्वाणसाधन ३३. इन्द्रोपपाद हपु० १०.९८-१०७ ३४. इन्द्राभिषेक ३५. विधिदान ३६. सुखोदय छप्पन-दिक्कुमारी-देवियाँ ३७. इन्द्रत्याग ३८. इन्द्रावतार ३९. हिरण्योत्कृष्टजन्मता ४०. मन्दरेन्द्राभिषेक ४१. गुरूपूजोपलम्भन मेरु पर्वत के चारों पर्वतों के मध्य विद्यमान आठकूटों में क्रीडा ४२. यौवराज्य ४३. स्वराज्यप्राप्ति ४४. चक्रलाभ ४५. दिग्विजय __ करने वाली देवियाँ ४६. चक्राभिषेक ४७. साम्राज्य ४८. निष्क्रान्ति १. भोगंकरा २. भोगवती ३. सुभोगा ४. भोगमालिनी ४९. योगसन्मह ५०. आर्हन्त्य ५१. तद्विहार ५. वत्समित्रा ६. सुमित्रा ७. वारिषणा ८. अचलावती ५२. योगत्याग ५३. अग्रनिर्वृत्ति हपु० ५.२२६-२२७ मपु० ३८.५५-६३ मेरु की पूर्वोत्तर दिशा में विद्यमान कूटों को देवियाँ गुणस्थान, मार्गणा, प्रमाद, भाषा और सत्य भेद १. मेघंकरा २. मेघवती ३. सुमेघा ४. मेधमालिनी गुणस्थान-सूची ५. तोयधारा ६.विचित्रा ७. पुष्पमाला ८. अनिन्दिता १. मिथ्यादृष्टि २. सासादन ३. सम्यग्मिथ्यात्व ४. असंयत सम्यग्दृष्टि हपु० ५.३३२-३३३ ५. संयतासंयत ६.प्रमत्तसंयत ७. अप्रमत्तसंयत ८. अपूर्वकरण रुचकवर पर्वत के पूर्व में विद्यमान कूटों को देवियां ९. अनिवृत्तिकरण १०. सूक्ष्मसाम्पराय ११. उपशान्तकषाय १२. क्षीणमोह १३ सयोगकेवली १४. अयोगकेवली १. विजया २. वैजयन्ती ३. जयन्ती ४. अपराजिता हपु०, ३.८०-८३ ५. नन्दा ६. नन्दोत्तमा ७. आनन्दा ८. नान्दीवधना मार्गणा-सूची हपु० ५.७०५-७०६ १. गति २. इन्द्रिय ३. काय ४. योग ५. वेद रूचकवर पर्वत के दक्षिण विशावर्ती कूटों की वासिनी देवियाँ ६. कषाय ७. ज्ञान ८. संयम ९. सम्यक्त्व १०. लेश्या १. स्वस्थिता २. सुप्रणिधि ३. सुप्रबुद्धा ४. यशोधरा ११. दर्शन १२. संज्ञित्व १३. भव्यत्व १४. आहार ५. लक्ष्मीमती ६.कीर्तिमती ७. वसुन्धरा ८ चित्रदिवा हपु० ५८.३६-३७ हपु० ५.७०८-७१० प्रमाव-भेव रुचकवर पर्वत के पश्चिम में विद्यमान कूटों को देवियाँ इंद्रिय १. इलादेवी २. सुरादेवी ३. पृथिवीदेवी कषाय ४ ४. पद्मावती देवी ५. कांचनादेवी ६. नवमिका देवी विकथा ४ ७. सीता देवी ८. भद्रिका देवी प्रणय (स्नेह) १ हपु० ३. ८८ हपु० ५.७१२-७१४ रुचकवर पर्वत के उत्तर में विद्यमान कटों की वासिनी देवियाँ भाषा-भेद १. लम्बुसा २. मिश्रकेशी ३. पुण्डरीकिणी ४. वारुणी १. अभ्याख्यान भाषा २. कलह भाषा ३. पैशुन्य भाषा ५. आशा ६.ह्रो ७.श्री ८. श्रुति ४. बद्धप्रलाप भाषा ५. रति भाषा ६. अरति भाषा हपु० ५.७१५-७१७ निन्द्रा Jain Education Intemational Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ९. साधु १० : जैन पुराणकोश रूपकवर पर्वत की विद्युत्कुमारी देवियाँ १. पूर्व में चित्रादेवी २. दक्षिण में कनकचित्रा ३. पश्चिम में त्रिशिरस् देवी ४. उत्तर में सूत्रामणि देवी हपु० ५.७१८-७२१ रुचकवर पर्वत बासिनी विक्कुमारी देवियों की प्रधान देवियाँ १. ऐशान रुचका देवी २. आग्नेय रुचकोज्ज्वला देवी ३.नैऋत्य रुचकाभा ४. वायव्य रुचकप्रभा हपु० ५.७२२-७२४ तप-भेद बाह्यतप १. अनशन २. अवमौदर्य ३. वृत्तिपरिसंख्यान ४. रसपरित्याग ५. तन-सन्ताप ६. विविक्तशयनासन मपु० १८.६७-६८ आभ्यन्तर तप १. प्रायश्चित्त २. विनय ३. वैयावृत्य ४. स्वाध्याय ५. व्युत्सर्ग ६. ध्यान मपु० १८.६९, २०.१९०-२०४ प्रायश्चित्त के भेद वैयावृत्य तप के भेद १. प्राचार्य ६. गण २. उपाध्याय ३. तपस्वी ८. संघ ४. शैक्ष्य ५. ग्लान १०. मनोज इन दस प्रकार के मुनियों की सेवा । हपु ६०.४२-४५ देव-भेद १. भवनवासी देव २. व्यन्तर देव ३. ज्योतिष्क देव ४. वैमानिक देव वीवच १४.६४ भवनवासी देव-भेव १. असुरकुमार २. नागकुमार ३. सुपर्णकुमार ४. द्वीपकुमार ५. उदधिकुमार ६. स्तनितकुमार ७. विद्युत्कुमार ८. दिक्कुमार ९. अग्निकुमार १०. वायुकुमार हपु० ४.६३-६५ ज्योतिष्क देव-भेव १. चन्द्र २. सूर्य ३. ग्रह ४. नक्षत्र ५. तारागण हपु. ६.७, वीवच० १४.५२ व्यन्तर देव-भेव १. किन्नर २. किंपुरुष ३. महोरग ४. गन्धर्व ५. यक्ष ६. राक्षस ७. भूत ८.पिशाच मपु०, ६३.१८५-१८६ (इनका एक साथ पुराणों में नामोल्लेख नहीं है)। १. आलोचना ५. व्युत्सर्ग ९. उपस्थान २. प्रतिक्रमण ६. तप ३. तदुभय४. विवेक ७. छेद ८. परिहार हपु० ६४३२-३७ विनय तप के भेद २. दर्शनविनय ३. चारित्रविनय २.ज्ञानविनय ४. उपचारविनय हप०६ स्वाध्याय तप के भेद १. वाचना २. पृच्छना ३. अनुप्रेक्षा ४. आम्नाय ५. उपदेश हपु० ६०.४६-४८ व्युत्सर्ग तप के भेद १. आभ्यान्तरोपाधि त्याग २. बाह्योपाधि त्याग हपु० ६०.४९-५० वैमानिक कल्पोपपन्न देव-भेद १. सौधर्म २. ईशान ३. सनत्कुमार ४. माहेन्द्र ५. ब्रह्म ६. ब्रह्मोत्तर ७.लान्तव ८. कापिष्ठ ९.शुक्र १०. महाशुक्र ११. सतार १२. सहस्रार १२. आनत १४.प्राणत १५. आरण १६ अभयत हपु० ६.३६-३८ वैमानिक कल्पातीत देव-भेद १. नौ ग्रेवेयक- अधोवेयक- सुदर्शन, अमोध, सुप्रबुद्ध मध्य अवेयक-- यशोधर, सुभद्र, सुविशाल ऊर्ध्व वेयक सुमन, सौमनस्य, प्रीतिकर २. नौ अनुदिश- आदित्य, अचिं, अचिमालिनी, वज, वेरोचन, सौम्य, सौम्यरूपक, अंक, स्फुटिक । ३. पांच अनुत्तर- विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित, सर्वार्थसिद्धि । हपु० ६.३९-४०, ५२-५३, ६३-६५ Jain Education Intemational Jain Education Intemational Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट जेन पुराणकोश : ११ प्रत्येक निकाय में होनेवाले विशिष्ट देव-भेद १. इन्द्र २. सामानिक ३. त्रायस्त्रिश ४.पारिषद ५. आत्मरक्ष ६. लोकपाल ७. अनीक ८. प्रकीर्णक ९. आभियोग्य १०. किल्विषिक मपु० २२.१४-२९, वीवच० १४.२५-४१ ध्यान-भेद आर्तध्यान के भेद १. इष्ट वियोगज २. अनिष्ट संयोगज ३. निदानप्रत्यय ४. वेदनोद्गमोद्भव मपु० २१.३४-३५ रौद्रध्यान के भेद १. हिंसानन्द २. मृषानन्द ३. स्तेयानन्द ४. संरक्षणानन्द मपु० २१.४३ धर्मध्यान के भेद १. अपायविचय २. उपाय विचय ३. जीवविचय ४. अजीवविचय ५. विपाकविचय ६. विरागविचय ७. भवविचय ८. संस्थानविचय ९. आज्ञाविचय १०. हेतुविचय मपु० २१.१४०-१६०, हपु० ५६.४०-५० शुक्लध्यान १. पृथकत्ववितर्कवीचार २. एकत्ववितर्कवीचार मपु० २१.१६८ परमशुक्लध्यान १. सूक्ष्मक्रियापाति २. समुच्छिन्नक्रियानिवर्ति मपु० २१.१९५-१९६ परीषह तथा धर्म-भेद परीषह १. क्षुधा २. तृषा ३. शीत ४. उष्ण ५. दंश मशक ६. नाग्न्य ७. अरति-रति ८. स्त्री ९. चर्या १०. भू-शय्या ११. निषद्या १२. आक्रोश १३. वध १४. याचना १५. अलाभ १६. अदर्शन १७. रोग १८. तुणस्पर्श १९. प्रज्ञा २०. अज्ञान २१. मल २२. सत्कार पुरस्कार मपु०११.१००-१०२ धर्म १. उत्तम क्षमा २. उत्तम मार्दव ३. उत्तम आर्जव ४. उत्तम शौच ५. उत्तम सत्य ६. उत्तम संयम ७. उत्तम तप ८. उत्तम त्याग ९. उत्तम आकिंचन्य १०. उत्तम ब्रह्मचर्य मपु०११.१०३-१०४ शौच धर्म को पाँचवाँ धर्म भी कहा है मपु० ३६.१५७-१५८ पुद्गल, मंगल द्रव्य, नय और नरक भूमियाँ पुद्गल के छः भेद १. सूक्षमसूक्ष्म २. सूक्ष्म ३. सूक्ष्मस्थूल ४. स्थूल-सूक्ष्म ५. स्थूल ६. स्थूल-स्थूल मपु० २४.१४९ अष्ट मंगल-द्रव्य १. छत्र २. ध्वजा ३. कलश ४. चमर ५. सुप्रतिष्ठक/ठोना। ६. झारी ७. दर्पण ८. ताड़-पंखा मपु० १३.३७,९१ नय १.नेगम २. संग्रह ३. व्यवहार ५. शब्द ६. समभिरूढ ७. एवंभूत हपु० ५८.४१ नरक-भूमियाँ नरक-भूमियों के रुदनाम १. रत्नप्रभा धर्मा २. शर्कराप्रभा ३. बालुकाप्रभा शिला (मेघा) ४. पंकप्रभा अंजना ५. धूमप्रभा अरिष्टा ६. तम-प्रभा माधवी ७. महातम प्रभा माधवी मपु० १०.३१-३२ वंशी भरतेश द्वारा स्तुत वृषभदेव के १०८ नाम (महापुराण पर्व २४.३०-४५) क्रमांक नाम श्लोक क्रमांक नाम कोक १. अक्षय्य ३५ १५. अनश्वर २. अक्षर ३५ १६. अनादि ३. अग्रय ३७ १७. अनित्वर ४. अच्युत ३४ १८. अपार ५. अज ३० १९. अपारि ६. अजर ३४ २०. अमध्योपिमध्यम ७. अणीयान् ४३ २१. अयोनिज ८. अर्धमारि २२. अरज ९. अधिज्योति ३४ २३. अरहा १०. अधिदेव ३० २४. अरिहा ११. अध्वर २५. अर्हत् १२. अनक्ष ३५ २६. आज्य १३. अनक्षर ३५ २७. आत्मभू १४. अनन्त ३४ २८. आदिदेव Jain Education Intemational Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ : जैन पुराणकोश परिशिष्ट क्रमांक नाम २९. आदिपुरुष ३०. आद्यकवि ३१. इज्य ३२. इन ३३. ईश ३४. ईशान ३५. उत्तमोऽनुत्तर ३६. कंजसंजात ३७. कारातिनिशुम्भन ३८. कामजिज्जेत्ता ३९. गरिमास्पद ४०. गरिष्ठ ४१. गुणाकर ४२. छन्दोविद् ४३. छन्दकर्ता ४४. जगभर्ता ४५. जित्वर ४६. जिन ४७. जिनकुंजर ४८. जिष्णु ४९. ज्येष्ठ ५०. तमोरि ५१. धर्मध्वज ५२. धर्मनायक ५३. धर्मपति २४. धर्मादि ५५. ध्येय ५६. नित्य ५७. निरंजन ५८. निरुद्ध ५९. परंज्योति ६०. परमतत्त्व ६१. परमात्मा ६२. परमेष्ठी ६३. पुण्यनायक ६४. पुण्यगण्य ६५. पुमान ६६. पुराण ६७. पुरु ६८. पूत ६९. प्रभूष्णु कोक क्रमांक नाम श्लोक क्रमांक नाम श्लोक क्रमांक नाम श्लोक ३१ ७०. बुद्ध ३८ १११. शंभव ३६ १२३. स्येष्ठ ३७ ७१. ब्रह्मपदेश्वर ४५ ११२. शम्भु ३६ १२४. स्रष्टा ७२. ब्रह्मविद्ध्येय ४५ ११३. शंयु ३६ १२५. स्वयंप्रभ ७३. ब्रह्मा ३० ११४. शंवद ३६ १२६. स्वयंभू ७४. भगवान् ३३ ११५. शरण्य ३७ १२७. हर ७५. भवान्तक ४४ ११६. शान्त ४४ १२८. हरि ७६. भव्यभास्कर ३६ ११७. शिव ४४ १२९. हवि ३८ ७७. भव्यान्जिनीबन्धु ४१ ११८. सयोगी ३८ १३०. हविर्भुक् ४० ७८. भूष्णु ४४ ११९. सिद्ध ३८ १३१. हव्य ४० ७९. मखज्येष्ठ ४१ १२०. सूक्ष्म ३८ १३२. हिरण्यगर्भ ८०. मखांग ४१ १२१. स्थवीयान् ४३ १३३. होता ८१. महान् ४४ १२२. स्थास्तु ८२. महीयान् महापुराण के पर्व २४ श्लोक ३० से ४५ का अध्ययन करने से ज्ञात ८३. महीयित होता है कि चक्रवर्ती भरतेश ने १३३ नामों से वृषभदेव की स्तुति की है ८४. महेश्वर जबकि श्लोक ४६ में उनके द्वारा वृषभदेव के १०८ नामों का हृदय से ८५. मह्य स्मरण कर स्तुति किया जाना बताया गया है । ८६. मोहसुरारि नामों का अर्थ-साम्य की दृष्टि से अध्ययन किए जाने पर ऐसा ८७. यज्वा प्रतीत होता है कि १०८ नामों से अधिक आये २५ नामों की पुनरावृत्ति ८८. योगविदांवर ८९. योगात्मा ३८ भिन्न-भिन्न माम होते हुए भी जो नाम समान अर्थ में आये हैं, वे ४३ ९०. योगी ३७ निम्न प्रकार है९१. वदतांवर ३९ क्रमांक सामान्य नाम श्लोक समान अर्थ में व्यवहृत नाम श्लोक ९२. वरेण्य १. अक्षय्य ३५ नित्य ९३. वाचस्पति ३९ २. अक्षर ३५ अनश्वर ९४. विजिष्णु ३५ ३. अच्यत ३४ स्थेष्ठ ९५. विधाता अनित्वर स्थवीयान् ९६. विभु अपारि अरिहा ४४ ९७. वियोनिक अयोनिज वियोनिक ३८ ९८. विश्वतोमुख अरिहा मोहसुरारि ३८ ९९. विश्वतोऽक्षिमयज्योति आज्य ३० १००. विश्वदृक् ३२ ९. इज्य मह्म ३३ १०१. विश्वभुक् इन ३३ १०२. विश्वयोनि ईश ईशान ३३ १०३. विश्वराड् परमज्योति अधिज्योति ३७ १०४. विश्वव्यापी ३२ १३. परमात्मा ४२ १०५. विश्वेट पुण्यनायक पुण्यगण्य ३१ १०६. विष्णु ३५ १५. प्रभूष्णु भूष्णु ३७ १०७. वृषभ ३३ १६. ब्रह्मा ब्रह्मपदेश्वर ३१ १०८. वृषभध्वज ३३ १७. ब्रह्मा हरिण्यगर्भ ३७ १०९. वेदविद् ३९ १८. महान् महीयान् ३० ११०. शंकर यज्वा होता ३२६. हव्य ३२ १०. ३२ ११. विभु भगवान् Jain Education Intemational Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट به २३. ज्येष्ठ २०. विधाता स्रष्टा ३१ २१. विश्वतोमुख विश्वदृक् विष्णु हरि वृषभ २४. शिव २५. सूक्ष्म अणीयान् ___ इस प्रकार दाई ओर दर्शाए गये नाम उनके सामने दर्शाए गये नामों के समानार्थी हैं। ये नाम २५ है। ऊपर दर्शाए १३३ नामों में ये २५ नाम कम कर देने से शेष १०८ वे नाम ज्ञात होते हैं जिनके द्वारा चक्री भरतेश ने वृषभदेव की स्तुति की थी। भावनाएं महाव्रत-भावनाएं 'महापुराण के अनुसार हरिवंशपुराण के अनुसार अहिंसाव्रत-भावनाएं अहिंसाव्रत-भावनाएं १. मनोगुप्ति १. सुवाग्गुप्ति २. वचनगुप्ति २. सुमनोगुप्ति ३. ईर्यासमिति ३. स्वकालेवोक्ष्य भोजन ४. कायनियन्त्रण ४. ईर्यासमिति ५. विष्वाणम मिति ५. आदाननिक्षेपणसमिति मपु० २०.१६१ हपु० ५८.११८ सत्यवत-भावनाएं १. क्रोध त्याग १. स्वक्रोध त्याग २. लोभ त्याग २. स्व लोभ त्याग ३. भय त्याग ३. स्व भीरुत्व त्याग ४. हास्य त्याग ४. स्व हास्य त्याग ५. सूत्रानुग वाणी बोलना ५. उद्धभाषण (प्रशस्त्र वचन बोलना) मपु० २०.१६२ हपु०५८.११९ अचौर्यवत-भावनाएं १. मिताहार १. शून्यागारवास २. उचिताहार २. विमोचितागारवास ३. अभ्यनुज्ञातग्रहण ३. अन्यानुपरोधित (परोपरोधाकरण) ४. अग्रहोऽन्यथा ४. भैक्ष्यशुद्धि ५. संतोषभक्तपान ५. (सधर्मा) विसंवाद मपु० २०.१६३ हपु० ५८.१२० ब्रह्मचर्यव्रत-भावनाएँ १. स्त्रीकथा त्याग १. स्त्रीराग कथा श्रवण त्याग २. स्त्री आलोकन त्याग २. स्त्री-रम्यांग-निरोक्षण त्याग ३. स्त्री संसर्ग त्याग ३. अंग संस्कार का त्याग ४. प्राग्रतस्मृतयोजनवर्जन ४. वृष्य रस त्याग बेन पुराणकोश : १३ ५. वृष्यरस वर्जन ५. पूर्वरतस्मृति त्याग मपु० २०.१६४ हपु० ५८.१२१ परिग्रहपरिमाणवत इन्द्रिय-विषयभूत, सचित्त, इन्द्रियों के इष्ट-अनिष्ट विषयों में अचित्त, पदार्थों में आसक्ति राग-द्वेष का त्याग करना । का त्याग । मपु० २०.१६५ हपु० ५८.१२२ सोलह कारण-भावनाएं १. दर्शनविशुद्धि ९. वैयावृत्य २. विनयसम्पन्नता १०. अहंद भक्ति ३. शीलवतेष्वनतीचार ११. आचार्य भक्ति ४. अभीक्ष्णज्ञानोपयोग १२. बहुश्रुतभक्ति ५. संवेग १३. प्रवचनभक्ति ६. शक्तितस् त्याग १४. आवश्यकापरिहाणि ७. शक्तिस् तप १५. मार्ग प्रभावना ८. साधु-समाधि १६. प्रवचनवात्सल्य मपु० ७.८८,११.६८-७८, पपु० २.१९२, हपु० ३४.१३१-१४९ धर्मध्यान को दस भावनाएं १. उत्तम क्षमा ६. उत्तम संयम २. उत्तम मार्दव ७. उत्तम तप ३. उत्तम आर्जव ८. उत्तम त्याग ४. उत्तम सत्य ९. उत्तम आकिंचन्य ५. उत्तम शौच १०. उत्तम ब्रह्मचर्य मपु० ३८.१५७-१५८ सम्यक्त्व भावनाएं १. संवेग ५. अस्मय २. प्रशम ६. आस्तिक्य ३. स्थैर्य ७. अनुकम्पा ४. असंमूढता मपु० २१.९७ सामान्य चार भावनाएं १. मैत्री ३. कारुण्य २. प्रमोद ४. माध्यस्थ हपु० ५८.१२५ मिथ्या-दृष्टियाँ मूलतः दृष्टियाँ चार प्रकार की होती हैं । वे हैं-क्रियादृष्टि, अक्रियादृष्टि, अज्ञानदृष्टि और विनयदृष्टि । इनमें क्रियादृष्टि के एक सौ अस्सी, अक्रियादृष्टि के चौरासी, अज्ञानदृष्टि के सड़सठ और विनयदृष्टि के बत्तीस भेद होते हैं। चारों को कुल दृष्टियाँ तीन सौ तिरेसठ होती है। इन दृष्टियों का विवरण निम्न प्रकार है Jain Education Intemational Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ जैन पुराणकोश क्रियावादी नियति, स्वभाव, काल, देव और पौरुष इन पाँच को स्वतः, परतः, नित्य और अनित्य इन चार से गुणित करने पर बीस भेद होते हैं तथा इन बीस भेदों को जीवादि नौ पदार्थों से गुणित करने पर इसके एक सौ अस्सी भेद होते है। अक्रियावादी जीवादि सात तत्त्व-नियति, स्वभाव, काल, देव और पौरुष की अपेक्षा न स्वतः हैं और न परतः । अतः सात तत्त्वों में नियति आदि पाँच का गुणा करने पर पैंतीस और पैंतीस में स्वतः परतः इन दो का गुणा करने पर सत्तर भेद हुए । जीवादि सात तत्त्व नियति और काल की अपेक्षा नहीं है अतः सात में दो का गुणा करने पर चौदह भेद हुए । इन चौदह भेदों को पूर्वोक्त सत्तर भेदों में मिला दिये जाने पर अक्रियावादियों के चौरासी भेद होते हैं । हपु० १०.५२-५३ अज्ञानवादी जीवादि नो पदार्थों को सत्, असत् उभय, अवक्तव्य, सद् अवक्तव्य, असद् अवक्तव्य और उभय अवक्तव्य इन सात भंगों से कौन जानता है इस अज्ञानता के कारण नौ पदार्थों में सात भंगों का गुणा करने से त्रेसठ भेद होते है। इनमें जीव की सत् उत्पत्ति को जाननेवाला कौन है ? जीव असत् उत्पत्ति को जाननेवाला कौन है ? जीव की सत्-असत् उत्पत्ति को जाननेवाला कौन है ? और जीव की अवक्तव्य उत्पत्ति को जाननेवाला कौन है ? भाव की अपेक्षा स्वीकृत इन चार भेदों के अज्ञानवादियों के कुल सड़सठ भेद होते हैं । हपु० १०.५४-५८ विनयवादी माता, पिता, देव, राजा, ज्ञानी, बालक, वृद्ध और तपस्वी इन आठों में प्रत्येक की मन, वचन, काय और दान से विनय किये जाने से इसके बत्तीस भेद होते है। हपु० १०.५९-६० मुक्त जीव की विशेषताएँ क्र० १. २. ३. ४. नाम अनश्वरता अचलता अक्षयपना हपु० १०.४९-५१ अव्याबाधपना ९. नीरज सपना अनन्तज्ञानीपना १०. निर्मलपना १. दर्शन - प्रतिमा २. व्रत- प्रतिमा ६. अनन्तदर्शनपना ११. अच्छेद्यपना ७. अनन्तवीर्यपना १२. अभेद्यपना ८. अनन्तसुखपना १३. अक्षरपना १४. अप्रमेयपना मपु० ४२.९५-१०३ योग और प्रतिमाएँ प्रतिमाएँ ७. ब्रह्मचर्य - प्रतिमा ८. आरम्भत्याग - प्रतिमा ३. सामायिक प्रतिमा ४. प्रोषधोपवास-प्रतिमा ५. सचित्तत्याग- प्रतिमा ६. राविभुत्तित्याग प्रतिमा ४. अनुभयमनोयोग ५. सत्यवचनयोग ६. असत्यवचनयोग ७. उभयवचनयोग वीवच० १८.३६-३७, ६०-७० योग-भेव 1 हरिवंशपुराणकार ने चार मनोयोग चार वचनयोग और पाँच काययोग मिलकर तेरह प्रकार का बताया है। टीकाकार ने इनके निम्न नामों का उल्लेख किया है १. सत्यमनोयोग २. असत्यमनोयोग ३. उभयमनोयोग १. अहिंसाणुव्रत ४. स्वदार संतोषव्रत ९. परित्याग प्रतिमा १०. अनुमतित्याग- प्रतिमा ११. उद्दिष्टत्याग-प्रतिमा १. दिग्व्रत २. अनोपदेश दुःश्रुति । १. सामायिक २. प्रोषधोपवास ८. अनुभवचनयोग ९. औदारिक काययोग प्रमसंवत गुणस्थान में आहारक काययोग और आहारकमिष काययोग की संभावना रहने से योग के पन्द्रह भेद भी माने गये हैं । हपु० ५८.१९७. १०. औदारिकमिश्रकाययोग ११. वैक्रियक काययोग १२. वैक्रियकमिश्रकाययोग १३. कार्मणकाययोग व्रत और उनके अतिचार व्रत पंचाणुव्रत २. सत्याणुव्रत ५. इच्छापरिमाणव्रत गुणवत परिशिष्ट अतिचार अहिंसा के अतिचार १. बन्ध-गतिरोध करना । २. वध दण्ड आदि से पीटना । ३. छेदन - कर्ण आदि अंगों का छेदना । २. सीत २. देशव्रत अपध्यान, प्रमादाचरित हिमादान और हपु० ५८.१४४-१४७. शिक्षावत ३. उपभोग- परिभोगपरिमाण ४. अतिथिसंविभाग ०५८.१३८-२४e ४. अतिभारारोपण अधिक भार लादना । ५. अन्नपान निरोध- समय पर भोजन-पानी नहीं देना । हपु० ५८.१५३-१५८ हपु० ५८.१६४-१६५. Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट जैन पुराणकोश : १५ सत्याणुव्रत के अतिचार १. मिथ्योपदेश २. रहोभ्याख्यान ३. कूटलेख क्रिया ४. न्यासापहार ५. साकारमन्त्रभेद हपु० ५८.१६६-१७० अचौर्याणुव्रत के अतिचार १. स्तेनप्रयोग २. तदाहृतादान ३. विरुद्ध राज्यातिक्रम ४. हीनाधिकमानोन्मान ५. प्रतिरूपक व्यवहार हपु० ५८.१७१-१७३ ब्रह्मचर्याणुव्रत के अतिचार १. परविवाहकरण २. अनंगक्रीडा ३. गृहीतेत्वरिकागमन ४. अगृहीतेत्वरिकागमन ५. कामतीवाभिनिवेश हपु० ५८.१७४-१७५ परिग्रहपरिमाणवत के अतिचार १. हिरण्य-सवर्ण-प्रामाणातिक्रम २. वास्तु-क्षेत्र-प्रामाणातिक्रम ३. धन-धान्य-प्रामाणातिक्रम ४. दासी-दास-प्रामाणातिक्रम ५. कुप्य-प्रामाणातिक्रम ___मपु० २०.१६५, हपु० ५८.१७६ दिव्रत के अतिचार १. अधोव्यतिक्रम २. तिर्यग्व्यतिक्रम ३. कलव्यतिक्रम ४. स्मृत्यन्तराधान ५. क्षेत्रवृद्धि हपु०५८.१७७ देशवत के अतिचार १. प्रेष्य-प्रयोग २. आनयन ३. पुद्गल क्षेप ४. शब्दानुपात ५. रूपानुपात हपु० ५८.१७८ अनर्थदण्डवत के अतिचार अनर्थवण्डव्रत के भेद १. कन्दर्प १. पापोपदेश २. कौत्कुच्य २. अपध्यान ३. मौखर्य ३. प्रमादाचरित ४. असमीक्ष्याधिकरण ४. हिंसादान ५. उपभोगापरिभोगानर्थक्य ५. दुःश्रुति हपु० ५८.१७९ हपु० ५८.१४६ सामायिक शिक्षावत के अतिथिसंविभागवत के अतिचार अतिचार १, मनोयोग दुष्प्रणिधान १. सचित्त-निक्षेप २. वचनयोग दुष्प्रणिधान २. सचित्तावरण ३. काययोग दुष्प्रणिधान ३. पर-व्यपदेश ४. अनादार ४. मात्सर्य ५. स्मृत्यनुपस्थान ५. कालातिक्रम हपु० ६८.१८० हपु० ५८.१८३ प्रोषधोपवास व्रत के अतिचार सल्लेखना के अतिचार १. अनवेक्ष्य मलोत्सर्ग १. जीविताशंसा २. अनवेक्ष्यादान २. मरणाशंसा ३. अनवेक्ष्यसंस्तरसंक्रम ३. निदान ४. अनैकाग्रता ४. सुखानुबन्ध ५. अनादर ५. मित्रानुराग हपु० ५८.१८१ हपु० ५८.१८४ उपभोगपरिभोग परिमाणवत के अतिचार १. सचित्ताहार ४. अभिषवाहार २. सचित्त संबंधाहार ५. दुष्पक्वाहार ३. सचित्त सन्मियाहार हपु० ५८.१८२ शलाका-पुरुष वर्तमान चौबीस तीर्थङ्कर १. ऋषभदेव १३. विमलनाथ २. अजितनाथ १४. अनन्तनाथ ३. सम्भवनाथ १५. धर्मनाथ ४. अभिनन्दननाथ १६. शान्तिनाथ ५. सुमतिनाथ १७. कुन्थुनाथ ६. पद्मप्रभ १८. अरनाथ ७. सुपार्श्वनाथ १९. मल्लिनाथ ८. चन्द्रप्रभ २०. मुनिसुव्रतनाथ ९. पुष्पदन्त २१. नमिनाथ १०. शीतलनाथ २२. नेमिनाथ ११. श्रेयांसनाथ २३. पार्श्वनाथ १२. वासुपूज्य २४. महावीर पपु० ५.२१२-२१६, हपु०६०.१३८-१४१ वर्तमान बारह चक्रवर्ती १. भरत २. सगर ३. मघवा ४. सनत्कुमार ५. शान्तिनाथ ६. कुन्थुनाथ ७. अरनाथ ८. सुभूम ९. महापद्म १०. हरिषेण ११. जयसेन १२. ब्रह्ममदत्त हपु० ६०.२८६-२८७, वीवच० १८.१०९-११० वर्तमान ९ नारायण १. त्रिपृष्ठ ३. स्वयम्भू ४. पुरुषोत्तम ५. पुरुषसिंह ६. पुण्डरीक ७. दत्त ८. लक्ष्मण ९. कृष्ण हपु०६०.२८८-२८९ २. द्विपृष्ठ Jain Education Intemational Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ : जैन पुराणकोश. १. अश्वग्रीव ४. निशुम्भ ७. प्रहरण ऋ० नाम तीर्थंकर १. वृषभनाथ २. अजितनाथ ३. संभवनाथ ४. अभिनन्दननाथ ५. सुमतिनाथ ६. पद्मप्रभ ७. सुपार्श्वनाथ ८. चन्द्रप्रभ ९. सुविधिनाथ १०. शीतलनाथ ११. श्रेयांसनाथ १२. १३. विमलनाथ १४. अनन्तजित् १५. धर्मनाथ १६. शान्तिनाथ १७. कुन्थुनाथ १८. अरनाथ १९. मल्लिनाथ २०. मुनिसुव्रत २१. नमिनाथ २२. नेमिनाथ २३. पार्श्वनाथ २४. महावीर १. प्रतिश्रुति २. सन्मति ३ कर ४. क्षेमंधर ५. सीमंकर ६. सीमंधर ७. मिलवान वर्तमान ९ प्रतिनारायण २. तारक ५. मधुकैटभ ८. रावण जन्म नगरी अयोध्या श्रावस्ती अयोध्या अयोध्या कौशाम्बी काणी चन्द्रपुरी काकन्दी मपु० भद्रपुरी सिंहनादपुर चम्पापुरी काम्पिल्य अयोध्या रत्नपुर हस्तिनापुर ار मिथिला कुशाग्रनगर मिथिला सूर्यपुर वाराणसी कुण्डपुर मपु० ३.६३ मपु० ३.७७ मपु० ३.९० ० ३.१०३ मपु० ३.१०७ मपु० ३.११२ मपु० ३.११७ ३. मेरुक ६. बलि ९. जरासन्ध माता मरुदेवी विजया सेना सिद्धार्थों सुमंगला सुसीमा हपु० १० ६०.२९१-२९२ वर्तमान तीर्थङ्कर - सामान्य परिचय पिता चैत्यवृक्ष पृथिवी लक्ष्मणा रामा सुनन्दा विष्णुश्री जया शर्मा सर्वयशी सुप्रता ऐस श्रीमती मित्रा रक्षिता पद्मावती वप्रा शिवा वर्मा १. विजय ४. सुप्रभ ७. हपु० ७.१२५ हपु० ७.१४९ हपु० ७.१५० हपु० ७.१५२ हपु० ७.१५४ हपु० ७.१५५ हपु० ७.१५६ नाभिराय जिया बितारि संवर मेघप्रभ धरण सुप्रतिष्ठ महासेन सुग्रीव नन्दिमित्र बुढ़रथ विष्णुराज वसुपूज्य कृतवर्मा सिरसेन भानुराज विश्वसेन सूर्य सुदर्शन कुम्भ सुमित्र विजय समुद्रविजय, अश्वसेन प्रियकारिणी सिद्धार्थ, शलाकेतर पुण्य-पुरुष वर्तमान कुलकर ८. चक्षुष्मान् ९. यशस्वान् १०. अभिचन्द्र ११. चन्द्राभ १२. मरुदेव १३. प्रसेनजित् १४. नाभिराय वट सप्तपर्ण शाल सरल प्रियंग " शिरीय नागवृक्ष शालि प्लक्ष तेंदू पाटला वर्तमान ९ बलभद्र २. अचल ५. सुदर्शन ८. राम जामुन पीपल दधिपर्ण नन्दी तिलक आम्र अशोक चम्पक वकुल मेषपंग धव शाल निर्माण भूमि कैलास सम्मेदगिरि 33 "3 "1 27 17 " 27 चम्पापुरी, सम्मेदगिरि, मपु० ३.१२० मपु० ३.१२५ मपु० ३.१२९ 33 12 33 13 अन्त मपु० ३.१३४ मपु० ३.१३९ मपु० ३.१४६ मपु० ३.१५२ 23 सम्मेदगिरि, पावापुरी, ३. सुप ६. नान्दी ९. पद्म माघ शु मार्ग, परिशिष्ट हपु० ६०.२९० जन्मतिथि चैत कृ० नवमी नवमी पूर्णिमा माघ, शु० द्वादशी श्रावण शु. एकादशी कार्तिक कृ० त्रयोदशी ज्येष्ठ शु०द्वादशी पौष, कृष्ण एकादशी मार्ग शुरु प्रतिपदा मार्ग कृ० द्वादशी फाल्गुन कृ० एकादशी फाल्गुन कृ० चतु० माघ, शु० चतुर्दशी ज्येष्ठ कृ० द्वादशी माघ शु० त्रयोदशी ज्येष्ठ कृ० चतुर्दशी वैशाख शु० प्रतिपदा मार्ग शु० चतुर्दशी मार्ग० शु० एकावणी आसोज, शु० द्वादशी आषाढ़ कृ० दशमी वैशाख, शु० त्रयोदशी पौष, कृ० एकादशी चैत्र पशु० त्रयोदशी ० ६०.१६९-२०५. हपु० ७.१५७ हपु० ७.१६० हपु० ७.१६१ हपु० ७.१६३ हपु० ७.१६४ हपु० ७.१६६ हपु० ७.१६९ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रुत-भेद अंग पूर्व परिशिष्ट जैन पुराणकोश : १७ वर्तमान रुद्र अग्रायणीयपूर्व के कर्मप्रकृति प्राभूत के योगद्वार १. भीमावलि २. जितशत्रु ३. रुद्र ४. विश्वानल १. कृति २. वेदना ३. स्पर्श ४. कर्म ५. सुप्रतिष्ठक ६. अचल ७. पुण्डरीक ८. अजितन्धर ५. प्रकृति ६. बन्धन ७. निबन्धन ८. प्रक्रम ९. अजितनाभि १०. पीठ ११. सात्यकिपुत्र ९. उपक्रम १०. उदय ११. मोक्ष १२. संक्रम हपु० ६०.५३४-५३६ १३. लेश्या १४. लेश्याकर्म १५. लेश्यापरिणाम १६. सातासात वर्तमान नारद १७. दीर्घह्रस्व १८. भवधारणा १९. पुदगलात्मा २०. निधत्ता१. भीम २. महाभीम ३. रुद्र ४. महारुद्र निधत्तक ५. काल ६. महाकाल ७. चतुर्मुख ८. नरवक्त्र २१. सनिकाचित २२. अनिकाचित २३. कर्मस्थिति २४. स्कन्ध ९. उन्मुख हपु०६०.५४८-५४९ हपु० १०.८२-८६ श्रुतज्ञान के भेद अंग-प्रविष्ट १. पर्याय २. पर्याय-समास ३. अक्षर ४. अक्षर-समास ५. पद ६. पद-समास ७. संघात १. आचारांग २. सूत्रकृतांग ३. स्थानांग ८. संघात-समास ९. प्रतिपत्ति ४. समवायांग ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति अंग ६. ज्ञातृधर्मकथांग १०. प्रतिपत्ति-समास ११. अनुयोग १२. अनुयोग-समास ७. श्रावकाध्ययनांग ८.अन्तकृदशांग ९. अनुत्तरोपपादिकदशांग १३. प्राभृत-प्राभृत १४. प्राभृत-प्राभृत-समास १५. प्राभूत १०. प्रश्नव्याकरणांग ११. विपाकसूत्रांग १२. दृष्टिवादांग १६. प्राभृत समास १७. वस्तु १८. वस्तु समास हपु० २.९२-९५ १९. पूर्व २०. पूर्व समास हपु० १०.१२-१३ चूलिका के भेद १. उत्पादपूर्व २. अग्रायणीयपूर्व ३. वीर्यप्रवादपूर्व १. आकाशगता हपु० १०.१२३-१२४ २. जलगता हपु० ६१.१२३ ४. अस्तिनास्तिप्रवादपूर्व ५. ज्ञानप्रवादपूर्व ३. मायागता हपु० १०.१२३ ४. रूपगता हपु० १०.६१,१२३ ६. सत्यप्रवादपूर्व ७. आत्मप्रवादपूर्व ८. कर्मप्रवादपूर्व ९. प्रत्याख्यानपूर्व ५, स्थलगता हपु० १०.१२३-१२४ १०. विद्यानुवादपूर्व ११. कल्याणपूर्व १२. प्राणावायपूर्व श्रोता-भेद एवं गुण १३. क्रियाविशालपूर्व १४. लोकबिन्दुपूर्व हपु० २.९७-१०० श्रोताओं की विविधता अंश बाह्यश्रुत १. सामायिक २. स्तवन ३. वन्दना ४. प्रतिक्रमण उपमानों का नाम निर्देश करके उनके समान स्वभाव-भेद दर्शाकर ५. वैनयिक ६.कृतिकर्म ७. दशवकालिक ८. उत्तराध्ययन श्रोता के चौदह भेद बताये गये हैं। उपमानों के नाम निम्न प्रकार है९. कल्पव्यवहार १०. कल्पाकल्प ११. महाकल्प १२. पुण्डरीक १. मिट्टी-शास्त्र श्रवण काल में कोमल परिणामी पश्चात् कठोर परिणामी। १३. महापुण्डरीक १४. निषद्यका हपु० २.१०२-१०५, १०.१२५-१२६ २. चलनी सारतत्त्व के परित्यागी, निःसार ग्राही । ३. बकरा-श्रृंगार का वर्णन सुनकर श्रृंणानरूप परिणामी । दृष्टिवादांग के भेव ४. विलाव-धर्मोपदेश सुनकर भी क्रूर-प्रवृत्ति-धारो । १. परिकर्म २. सूत्र ३. अनुयोग ४. पूर्वगत ५. तोता-धर्मोपदेश के शब्द-मात्र ग्राही । ५. चूलिका . हपु० १०.६१ ६. बगुला ब्राह्म से भद्र परिणामी अन्तरंग से कुटिल परिणामी । परिकर्म के भेद ७. पाषाण-उपदेश से अप्रभावित श्रोता । १. चन्द्रप्रज्ञप्ति २. सूर्यप्रज्ञप्ति ३. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ८. सर्प-सदुपदेश का भी जिन पर कुप्रभाव पड़ता है। ४. द्वीपसमुद्रप्रज्ञप्ति ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति हपु० १०.६२ ९. गाय-कम सुनकर अधिक लाभ लेनेवाली । अग्रायणीयपूर्व को चौवह वस्तुएं १०. हंस-सारग्राही । १. पूर्वान्त २. अपरान्त ३. ध्रुव ११. भैंसा-उपदेश ग्राह्यता कम, कुतर्को से सभा शोभित करने ४. अध्रुव ५. अच्यवनलब्धि ६. अध्रुव सम्प्रणधि वाला। ७. कल्प/महाकल्प ८. अर्थ ९. भौमावय १२. फूटा घड़ा-जिसके हृदय में उपदेश न ठहरे । १.० सर्वार्थकल्पक ११. निर्वाण १२. अतीतानागत १३. गंस-उपदेश ग्रहण न करके सभी को व्याकुलित करनेवाला । १३. सिद्धि १४. उपाध्याय हपु० १०.७७-८० १४. जॉक केवल अवगुण ग्राही। मपु० १.१३८-१३९ Jain Education Intemational Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट १८ / जैन पुराणकोश श्रोता के आठ गुण १. शुश्रुषा २. श्रवण ३. ग्रहण ५. स्मृति ६. ऊह ७. अपोह सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव के १००८ नामों की सूची ( महापुराण पर्व २५ श्लोक १०० से २१७ के अन्तर्गत ) ४. धारण ८. निर्णीति ० सं० नाम श्लोक सं० मपु० १.१४६ १९२ १५७, १८९ २०३ १८८ १७२, १८६ १७६ १७१ १५० १. अक्षय २. अक्षय्य ३. अक्षर ४. अक्षोभ्य ५. अखिलज्योति ६. अगण्य ७. अगति ८. अगम्यात्मा ९. अगाह्य १०. अगोचर ११. अग्रज १२. अग्रणी १३. अग्रय १४. अग्राह्य १५. अग्रिम १६. अचल १७. अचलस्थिति १८. अचिन्त्य १९. अचिन्त्यद्धि २०. अचिन्त्यवैभव २१. अचिन्त्यात्मा २२. अच्छेद्य २३. अच्युत २४. अज २५. अजन्मा संसारी जीव की विशेषतायें १. परतन्त्रता-कर्मबन्धन युक्त होना। मपु० ४२.८३ । २. चंचलता-सुख दुःख जनित वेदना से उत्पन्न व्याकुलता । मपु० ४२.८३-८४ ३. भयपना-देव आदि पर्यायों में प्राप्त ऋद्धियों का क्षय होना। मपु० ४२.८४ ४. बाध्यता-ताड़ना एवं अनिष्ट वचनों की प्राप्ति । मपु० ४२.८५ ५. परिक्षयत्व-इन्द्रियों से उत्पन्न ज्ञान, दर्शन, वीर्य सुख का क्षय होना । मपु० ४२.८५-८७ ६. रजस्वलत्व-कर्म-कलंकित होना । मपु० ४२.८७ ७. छेवत्व-शरीर के खण्ड-खण्ड हो सकना । मपु० ४२.८८ ८. भेद्यत्व-प्रहार आदि से शरीर का भेदा जा सकना। मपु० ४२.८९ ९. मृत्यु-प्राणी का परित्याग । मपु० ४२.८९ १०. प्रमेयत्व-चेतन का परिमित शरीर में रहना। मपु. ४२.९० ११. गर्भवास-माता के गर्भ में रहना । मपु० ४२.९० १२. विलीनता-एक शरीर से दूसरे शरीर में संक्रमण करना। मपु० ४२.९१ १३. क्षभितत्व-क्रोध आदि से आक्रान्त चित्त में क्षोभ उत्पन्न होना । मपु० ४२.९२ १४. विविषयोग-नाना योनियों में भ्रमना । मपु० ४२.९२ १५. संसारावास-चारों गतियों में परिवर्तन करते रहना। मपु० ४२.९३ १६. असिवता-प्रत्येक जन्म में ज्ञानादि गुणों का अन्य-अन्य रूप होते रहना। मपु० ४२.९३ १५० १२९ १०४ ११३ १८६ १५० २१५ . श्लोक सं० ऋ० सं० नाम ११४ ३९. अधिगुरु १७३ ४०. अधिदेवता १०१ ४१. अधिप ११४ ४२. अधिष्ठान २०९ ४३. अध्यात्मगम्य १३७ ४४. अध्वर ४५. अध्वर्यु ४६. अनर्घ ४७. अनणु ४८. अनत्यय ४९. अनन्त ११५ ५०. अनन्तग ५१. अनन्तजित् ५२. अनन्तदीप्ति १५० ५३. अनन्तधामर्षि १२८ ५४. अनन्तद्धि ११४ ५५. अनन्तशक्ति १६४ ५६. अनन्तात्मा १५० ५७. अनन्तौज १४० ५८. अनलप्रभ १०४ ५९. अनश्वर २१५ ६०. अनादिनिधन १०९ ६१. अनामय १०६ ६२. अनाश्वान् १०६ ६३. अनिद्रालु १०९ ६४. अनिन्द्रिय १०९ ६५. अनिन्द्य १७१ ६६. अनीदृक् १६९ ६७. अनीश्वर १२२ ६८. अनुत्तर १७६ ६९. अन्तकृत् २०७ ७०. अपारधी १४८ ७१. अपुनर्भव १४८ ७२. अप्रतात्मा १४८ ७३. अप्रतिघं १४० ७४. अप्रतिष्ठ १२६ ७५. अप्रमेयात्मा १७१ ७६, अबन्धन . १९८ १०१ १४७ ११४, २१७ १७१ २०७ १४८ २६. अजर ~ ~ ~ ~ सम्यक्त्व के भेद और अंग सम्यक्त्व के भेद - १. आज्ञा-मम्यक्त्व २. मार्ग-सम्यक्त्व ३. उपदेश-सम्यक्त्व ४. सूत्र-सम्यक्त्व ५. बीज-सम्यक्त्व ६. संक्षेप-सम्यक्त्व ७. विस्तार-सम्यक्त्व ८. अर्थोत्पन्न-सम्यक्त्व ९. अवगाढ-सम्यक्त्व १०. परमावगाढ-सम्यक्त्व वीवच० १९.१४१-१४२ सम्यक्त्व के आठ अंग १, निःशंकित - २. निःकांक्षित . ३. निर्विचिकित्सा ४. अमूढत्व ५. उपगूहन ६. स्थितिकरण . ७. धर्म-वात्सल्य ८.प्रभावना, "वीवच० ६.६३-७० २७. अजयं २८. अजात २९. अजित ३०. अणिष्ठ ३१. अणोरणीयान् ३२. अतन्द्रालु ३३. अतीन्द्र ३४. अतीन्द्रिय ३५. अतीन्द्रियार्थदृक ३६. अतुल ३७. अधर्मधक् ३८. अधिक ~ ~ M r १६३ १०४ Jain Education Intemational Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट बेन पुराणकोश : १९ श्लोक सं० १८८ १२२ १२२ १७६ १४९ १७९ १३६ १३७ १३५ १३५ १३५ १३६ १३७ १७८ १६० १९६ क्र० सं० नाम ७७. अभयंकर ७८. अभव ७९. अभिनन्दन ८०. अभीष्टद् ८१. अमेद्य ८२. अभ्यन ८३. अभ्यर्य ८४. अमल ८५ अमित ८६. अमितज्योति ८७. अमितशासन ८८. अमूर्त ८९. अमूर्तात्मा ९०. अमृत ९१. अमृतात्मा ९२. अमृतोद्भव ९३. अमृत्यु ९४. अमेय ९५. अमेद्धि ९६. अमेयात्मा ९७. अमोघ ९८. अमोघवाक् ९९. अमोघशासन १००. अमोघाज्ञ १०१. अमोमुह १०२. अयोनिज १०३. अरजा १०४. अरिजय १०५. अर्हत् १०६. अलेप १०७. अविज्ञेय १०८. अव्यय १०९. अशोक ११०. असंख्येय १११. असंग ११२. असंगात्मा ११३. असभूष्णु ११४. असंस्कृत-सुसंस्कार ११५. अहमिन्द्राज़ ११६. आत्मश ११७. आत्मभू श्लोक सं० ० सं० नाम श्लोक सं० ऋ० सं० नाम २११ ११८. आत्मा १६५ १५९. कान्तिमान् ११८ ११९. आदित्यवर्ण १९७ १६०. कामद १६७ १२०. आदिदेव १९२ १६१. कामधेनु १६८ १२१. आनन्द १६७ १६२. कामन १७१ १२२. आप्त २०९ १६३. कामहा १५० १२३. इज्याह १७४ १६४. कामारि १९० १२४. इत्य १३४ १६५. कामितप्रद ११२ १२५. इन १८२ १६६. काम्य १६९ १२६. ईशान ११२ १६७. कारण २०५ १२७. ईशिता १८२ १६८. कूटस्थ १६९ १२८. उत्तम १७१ १६९. कृत्कृत्य १८७ १२९. उत्सन्नदोष २११ १७०. कृतक्रतु १२८ १३०. उदारधो १७९ १७१. कृतक्रिय १२७ १३१. उद्भव १४९ १७२. कृतज्ञ १३० १३२. उपमाभूत १८७ १७३. कृतपूर्वागविस्तर १३० १३३, ऋत्विक १२७ १७४. कृतलक्षण १३० १३४. ऋषभ १४३ १७५. कृतान्तकृत् १५७ १३५. एक १८७ १७६. कृतान्तान्त १५० १३६. एकविद्य १४१ १७७. कृतार्थ १०४ १३७. क १३३ १७८. कृती २०१ १३८. कनकप्रभ १९७ १७९. कृपालु १८४ १३९. कनकांचनसन्निभ १९९ १८०. केवलज्ञानवीक्षण १८४ १४०. कर्ता १४९ १८१. केवली १८४ १४१. कर्मकाष्ठाशुशुक्षाण २१४ १८२. क्षम २०४ १४२. कर्मठ २१४ १८३. क्षमो १०६ १४३. कमव्य २१४ १८४. क्षान्त ११२ १४४. कर्मशत्रुघ्न २०६ १८५. क्षान्तिपरायण १६७ १४५. कर्महा १८३ १८६. क्षान्तिभाक् ११२ १४६. कलातीत १९४ १८७. क्षेत्रज्ञ १८५ १४७. कलाधर १९४ १८८. क्षेमकर १८० १४८. कलिन्न २०६ १८९. क्षेमकृत १०९ १४९. कलिलघ्न १९४ १९०. क्षेमधर्मपति १३३ १५०. कल्पवृक्ष २१३ १९१. क्षेमशासन १६३ १५१. कल्य १९३ १९२. क्षेमी १२४ १५२. कल्याण १९३ १९३. गणज्येष्ठ १२६ १५३. कल्याणप्रकृति १९४ १९४. गणाग्रणी ११० १५४. कल्याणलक्षण १९३ १९५. गणाधिप १६८ १५५. कल्याणवर्ण १९३ १९६. गण्य १४८ १५६. कवि १४३ १९७. गतस्पृह १६२ १५७. कान्त १६८ १९८. गति १०० १५८. कान्तगु १६८ १९९. गम्भीरशासन इलोक सं० ऋ० सं० नाम २०२ २००. गम्यात्मा १६७ २०१. गरिष्ठ १६७ २०२. गरिष्ठगी १७२ २०३. गरीयसामाद्यगुरु १६७ २०४. गहन १६५ २०५. गिरांपति २०२ २०६. गुण १६७ २०७. गुणग्राम १४९ २०८. गुणज्ञ ११४ २०९. गुणनायक १३० २१०. गुणाकर १३० २११. गुणादरी १३४ २१२. गणाम्भोधि १८० २१३. गुणोच्छेदी १९२ २१४. गुण्य १८० २१५. गुप्तिभृत् १२९ २१६. गुरु १२९ २१७. गुह्य १३० २१८. गढगोचर १३० २१९. गूढात्मा २१६ २२०. गोप्ता २१५ २२१. गोप्य ११२ २२२. ग्रामणी २०१ २२३. चतुरानन १७३ २२४. चतुरास्य १६१ २२५. चतुमुख १८९ २२६. चतुर्वक्त्र १२६ २२७. चराचरगुरु १२१ २२८. चिन्तामणि १७३ २२९. जगच्चूड़ामणि १६५ २३०. जगज्ज्येष्ठ १७३ २३१. जगज्योति १६५ २३२. जगत्पति १७३ २३३. जगत्पाल १३५ २३४. जगदग्रज १३५ २३५. जगदादिज १३५ २३६. जगद्गर्भ १३५ २३७. जगद्धित १८५ २३८. जगद्वितैषी १४२ २३९. जगद्योनि १८२ २४०. जगबन्धु १९६ १७८ १९६ ११५ १७४ १७४ १७४ १७४ १९६ १६८ २०६ १०३ ११४, २०७ १०४, ११८ २१७ १९५ १४७ १८१ १०८ १३४ Jain Education Interational Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ orrrrrrrrrrrrrrorww १३६ २०४ २० : जैन पुराणकोश परिशिष्ट क्र० सं० नाम श्लोक संख्या क्र० सं० नाम श्लोक सं० ऋ० सं० नाम श्लोक सं० ० सं० नाम श्लोक सं० २४१. जगद्विभु १९५ २८२. त्यागी १८४ ३२३. द्रढीयान् १८२ ३६४. निरम्बर २४२. जगन्नाथ १९५ २८३. त्राता १४२ ३२४. धर्मघोषर्ण १८३ ३६५. निरस्तैना २४३. जरन १२४ २८४. त्रिकालदर्शी १९१ ३२५. धर्मचक्रायुध १८३ ३६६. निराबाध ११३ २४४. जागरूक २०७ २८५. त्रिकालविषयार्थदृक् १८८ ३२६. धर्मचक्री १०६ ३६७. निराशंस २०४ २४५. जातरूप १४६ २८६. त्रिजगत्पतिपूज्यांघ्रि १९० ३२७. धर्मतीर्थकृत् ११५ ३६८. निरास्रव २४६. जातरूपाभ २०० फ८७. त्रिजगत्परमेश्वर ११० ३२८. धर्मदेशक २१६ ३६९. निराहार २४७. जितकामारि १६९ २८८. त्रिजगद्वल्लभ १९० ३२९. धर्मनेमि १८३ ३७०. निरुक्तवाक् २४८. जितक्रोध १६९ २८९. त्रिजगन्मंगलोदय १९० ३३०. धर्मपति ११५ ३७१. निरुक्तोक्ति २४९. जितक्लेश १६९ २९०. त्रिदशाध्यक्ष १८२ ३३१. धर्मपाल २१७ ३७२. निरुत्तर २५०. जितजेय १३४ २९१. त्रिनेत्र २१५ ३३२. धर्मयूप १८३ ३७३. निरुत्सुक २५१. जितमन्मथ २०८ २९२. त्रिपुरारि २१५ ३३३. धर्मराज २०७ ३७४. निरुद्धव २५२. जिताक्ष २०८ २९३. त्रिलोकाग्रशिखामणि १९० ३३४. धर्मसाम्राज्यनायक २१७ ३७५. निरुपद्रव २५३. जितानंग २१६ २९४. त्रिलोचन २१५ ३३५. धर्माचार्य २१६ ३७६. निरुपल्लव २५४. जितान्तक १६९ २९५. व्यक्ष २१५ ३३६. धर्मात्मा ११५ ३७७. निर्गुण २५५. जितामित्र १६९ २९६. त्र्यम्बक २१५ ३३७. धर्माध्यक्ष १११ ३७८. निर्ग्रन्थेश २५६ जितेन्द्रिय १८६ २९७. दक्ष १६६ ३३८. धर्माराम १३७ ३७९. निर्द्वन्द २५७. जिन १०४ २९८ दक्षिण १६६ ३३९. धर्म्य ११५ ३८०. निधूतागस् २५८. जिनेन्द्र १७० २९९. दमतीर्थेश १६४ ३४०. धाता १०२ ३८१. निनिमेष २५९. जिनेश्वर १०३ ३००. दमी १८९ ३४१. धातु १७४ ३८२. निर्मद २६०. जिष्णु १०४ ३०१. दमीश्वर १११, १७८ ३४२. विषण १७९ ३८३. निर्मल १२८, १८४ २६१. जेता १०६ ३०२. दयागर्भ १८१ ३४३. धीन्द्र १४८ ३८४. निर्मोह २६२. ज्ञानगर्भ १८१ ३०३. दयाध्वज १०६ ३४४. धीमान् १७९ ३८५. निलेप २६३. ज्ञानचक्षु २०४ ३०४. दयानिधि २१६ ३४५. धीर १८२ ३८६. निर्विघ्न २६४. ज्ञानधर्मदमप्रभु १३२ ३०५. दयायाग १८३ ३४६. धीरधी २१२ ३८७. निश्चल २६५. ज्ञाननिग्राह्य १७३ ३०६. दवीयान १७६ ३४७. धीश १४१ ३८८. निष्कलंक २६६. ज्ञानसर्वग १६४ ३०७. दान्त १८९ ३४८. धीश्वर १०९ ३८९. निष्कलंकात्मा २६७. ज्ञानात्मा ११३ ३०८. दान्तात्मा १६४ ३४९. धुर्य १५९ ३९०. निष्कल २६८. ज्ञानाब्धि २०५ ३०९. दिग्वासा २०४ ३५०. ध्यातमहाधर्म १६२ ३९१. निष्किचन २६९. ज्येष्ठ १२२ ३१०. दिव्य १११ ३५१. ध्यानगम्य १७३ ३९२. निष्क्रिय २७०. ज्योतिमूर्ति २०५ ३११. दिव्यभाषापति १११ ३५२. ध्येय १०८ ३९३. निष्टप्तकनकच्छाय २७१. ज्वलज्ज्वलनसप्रभ १९६ ३१२. दिष्टि १८७ ३५३. नन्द १६७ ३९४. निःसपत्न २७२. तनुनिमुक्त २१० ३१३. दीप्त २.६ ३५४. नन्दन १६७ ३९५. नीरजस्क २७३. तन्त्रकृत् १२९ ३१४. दीप्तकल्याणात्मा १९४ ३५५. नयोतुग १८० ३९६. नेता २७४. तपनीयनिभ १९८ ३१५. दुन्दुभिस्वन १७० ३५६. नानकतत्त्वदृक १८७ ३९७. नेदीयान् २७५. तप्तचामीकरच्छवि १९८ ३१६. दुराधर्ष १७२ ३५७. नाभिज १७१ ३९८. नैक २७६. तप्तजाम्बूनदद्युति २०० ३१७. दूरदर्शन १७६ ३५८ नाभिनन्दन १७० ३९९. नैकधर्मकृत् २७७. तमोपह २०५ ३१८. दृढव्रत १९१ ३५९. नाभेय १७१ ४००. नैकरूप २७८. तीर्थकृत् ११२ ३१९. देव १८३ ३६०. नित्य १३० ४०१. नैकात्मा २७९. तुंग १९८ ३२०. देवदेव १९५ ३६१. नियमितेन्द्रिय २१३ ४०२. न्यायशास्त्रकृत् २८०. तेजोमय २०५ ३२१. दैव १८७ ३६२. निरंजन ११४ ४०३. पंचब्रह्ममय २८१. तेजोराशि २०५ ३२२. द्युम्नाभ २०० ३६३. निरक्ष १४४ ४०४. पति १४१ १३८ १३८ २११ २११ १८५ ११५ १७६ Jain Education Intemational Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट क्र० सं० नाम ४०५ ४०६. पद्मनाभ ४०७ पद्मयोनि ४०८. पद्मविष्ठर ४०९ पद्मसम्भूति ४१०. पद्मेश ४११. परंज्योति ४१२ परंब्रह्म ४१३. पर ४१४. परतर ४१५. परम ४१६. परमात्मा ४१७. परमानन्द ४१८. परमेश्वर ४१९. परमेष्ठी ४२०. परमोदय ४२१. परात्मज्ञ ४२२. परापर ४२३. परार्ध्य ४२४. परिवृढ ४२५. पवित्र ४२६. पाता ४२७. पापापेत ४२८. पारग ४२९. पावन ४३०. पिता ४३१. पितामह ४३२. पुण्य ४३३. पुण्यकृत् ४३४. पुण्यगी ४३५. पुण्यधी ४३६. पुण्यनायक ४२७. पुष्पराधि ४४३. पुराण ४४४. पुराणपुरुष ४४५ पुराणपुरुषोत्तम श्लोक सं० क्र० सं० नाम १८१ ४४६. पुराणाद्य १३३ ४४७. पुरातन ४३८. पुण्यकाक्ष ४३९. पुण्यवाक् पूत ४४०. पुण्यशासन ४४९. पुण्यापुण्यनिरोधक ४४२. पुमान् १३४ ४४८. पुरु १३३ ४४९. पुरुदेव १३३ ४५०. पुरुष १३३ ४५१. पुष्करेक्षण ११०, १११ ४५२. पुष्कल १३१ ४५३. पुष्ट १०५ ४५४. पुष्टिट् १०५ ४५५. पूजार्ह १४२, १६५ ४५६. पूज्य ११० ४५७. पूत १७०, १८९ ४५८. पूतवाक् १४९ ४५९. पूतशासन १०५ ४६०. पूतात्मा १६५ ४६१. पूर्व १८९ ४६२. पृथिवीमूर्ति १८९ ४६३. पृथु १४९ ४६४. प्रकाशात्मा १४१ ४६५. प्रकृति १४२ ४६६. प्रक्षीणबन्ध १४२ ४६७. प्रजापति ११८ ४६८. प्रजाहित १४९ ४६९. प्रज्ञापारमित १४२ ४७०. प्रणत १४२ ४७१. प्रणव १४२ ४७२. प्रणिधि १३५ ४७३. प्रणेता १३७ ४७४ प्रतिष्ठाप्रसव १३६ ४७५. प्रतिष्ठित १३७ ४७६. प्रत्यग्र १३६ ४७७. प्रत्यय २१७ ४७८. प्रथित १४४ ४७९ प्रथीयान् १३६ ४८०. प्रदीप्त १३७ ४८१. प्रधान १३७ ४८२. प्रबुद्धात्मा १४२ ४८३ प्रभव १९२ ४८४. प्रभविष्णु १४३ ४८५. प्रभास्वर १३२ ४८६. प्रभु श्लोक सं० क्र० सं० नाम १९२४८७ प्रभूतभव ११० ४८८. प्रभूतात्मा १४३ ४८९. प्रभुष्णु १९२ ४९० प्रमाण १९२ ४९१. प्रमामय १४४ ४९२. प्रवक्ता १४४ ४९३. प्रशमाकर २०१ ४९४. प्रशमात्मा २०१ ४९५. प्रशान्त ११२ ४९६, प्रशान्त रसौष १९१ ४९७. प्रशान्तात्मा १३६ ४९८. प्रशान्तारि १११ ४९९. प्रशास्ता १११ ५०० प्रष्ठ १११ ५०१. प्रसन्नात्मा १९२ ५०२. प्रांशु १२६ ५०३. प्राकृत २०३ ५०४. प्राग्रहर १९६५०५. प्राग्य १६५ ५०६. प्राज्ञ ५०७. प्राण १६५ ११३ ५०८. प्राणतेश्वर २०१ ५०९. प्राणद २१३ ५१०. प्राप्तमहाकल्याणचक १६६ ५११. प्रेष्ठ १६६५१२. ष्ठि १६६ ५१३ बन्धमोक्षज्ञ ११५ ५१४. बहुश्रुत १४३ ५१५. बालाकाभ २०३५१६. बुद्ध १५० ५१७. बुद्धबोध्य १७२५१८. सन्मार्ग २०३५१९हस्पति २०३ ५२०. ब्रह्मतत्वज्ञ २०० ५२१. ब्रह्मनिष्ठ १६५ ५२२ ब्रह्मयोनि १०८५२२. ब्रह्म ११७ ५२४. ब्रह्मसम्भव १०९ ५२५. ब्रह्मा १८१ ५२६. ब्रह्मात्मा १०० ५२७. बोट क्र० सं० नाम श्लोक सं० ११८ ५२८ ब्रह्मोद्यावित ११८ ५२९. भगवान् १०९ ५३० भदन्त १६६ ५३१. भद्र २०७ ५३२. भद्रकृत् २१० ५३३. भर्ता १६३ ५३४. भर्माभ ५३५. भव १३२ १८६ ५३६. भवतारक २०८ ५३७. भवान्तक ५३८. भवोद्भव १३२ ५३९. भव्यपेटकनायक १०७ २०१ १२२ १३२ २१४ १६८ जैन पुराणकोश : २१ श्लोक सं० १०७ ११२ २१३ २१३ ५४०. भव्यबन्धु ५४१. भाव ५४२. भास्वान् ५४३. भिषग्वर ५४४. भुवनेश्वर ५४५ कपितामह १५० १५० ५४६. भूतनाथ २१२ १४७. भूतभयमवर्ता १६६ ५४८. भूतभावन १६६ ५४९. भूतभृत् १६६ ५५०. भूतात्मा १५५ ५५१. मोता १२२ ५५२. विष्णु १२२ ५५३. मंगल २०८ ५५४. मनीषो १२० ५५५. मनु १९८ ५५६, मनोशांग १०८ ५५७. मनोहर १४५ ५५८. मन्ता २१२ ५५९. मन्त्रकृत् १७९ ५६० मन्त्रमूर्ति १०७ ५६१. मि १३१ ५६२. मन्त्रो १०६ ५६३. मलघ्न १०७ ५६४. मलहा १३१ ५६५. महधिक १०५ ५६६. महर्षि १३१ ५६७. महसांघाम १३१ ५६८. महसांपति २१३ ११६ १९७ ११७ १४९ ११७ १०९ २०८ १०४ ११७ ११७ १४२ ११३ १४३ ११८ १२१ ११७ ११७ ११७ १०० १०९ १८६ १७९ १७१ १८२ १८२ १५८ १२९ १२९ १२९ १२९ २०९ १८६ १४५ १५९ १५९ १५८ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२. २११ " २२ : बैन पुराणकोश परिशिष्ट ० सं० नाम श्लोक सं० ० सं० नाम श्लोक सं० क्र० सं० नाम श्लोक सं० ० सं० नाम श्लोक सं० ५६९. मर्दाकर्मारिहा १६२ ६१०. महाभवाब्धिसंतारी १६१ ६५१. मह्य १५७ ६९२. लोकघाता ५७०. महाकवि १५३ ६११. महाभाग १५३ ६५२. मारजित २१० ६९३. लोकपति ५७१. महाकान्ति १५४ ६१२. महाभूतपति १६० ६५३. मुक्त ११३ ६९४. लोकवत्सल ५७२. महाकान्तिधर १५७ ६१३. महाभूति १५२ ६५४. मुनि १४१ ६९५. लोकाध्यक्ष १७८ ५७३. महाकारुणिक १५८ ६१४. महामूर्ख १५६ ६५५. मुनिज्येष्ठ २०२ ६९६. लोकालोकप्रकाशक २०६ ५७४. महाकोति १५४ ६१५. महामति १५३ ६५६. मुनीन्द्र १७० ६९७. लोकेश ५७५. महाक्रोधरिपु १६० ६१६, महामन्त्र १५८ ६५७. मुनीश्वर १८३ ६९८. लोकोत्तर २१२ ५७६. महाक्लेशांकुश १६० ६१७. महामहपति १५५ ६५८. मुमुक्षु २०८ ६९९. वचसामीश २१० ५७७. महाक्षम १५६ ६१८. महामहा १५४ ६५९. मूर्तिमान् १८७ ७००. वदतांवर ५७८. महाक्षान्ति १५३ ६१९. महामुनि १५६ ६६०. मूलकर्ता २०९ ७०१. बन्ध १६७ ५७९. महागुण १५४ ६२०. महामैत्री १५७ ६६१. मूलकारण २०९ ७०२. वरद १४२ ५८०. महागुणाकर १६१ ६२१. महामोहाद्रिसूदन १६१ ६६२. मृत्युञ्जय १३० ७०३. वरप्रद २१३ ५८१. महाघोष १५८ ६२२. महामौनी १५६ ६६३. मोक्षज्ञ २०८ ७०४. वरिष्ठधी ५८२. महाज्योति १५२ ६२३. महायज्ञ १५६ ६६४. मोहारिविजयी १०६ ७०५. वरेण्य ५८३. महाज्ञान १५४ ६२४. महायति १५८ ६६५. यजमानात्म १२७ ७०६. वर्धमान ५८४. महातपा १५१ ६२५ महायशा १५१ ६६६. यज्ञ १२७ ७०७. वर्य ५८५. महातेजा १५१ ६२६. महायोग १५४ ६६७. यज्ञपति १२७ ७०८. वर्षीयान ५८६. महात्मा १५९ ६२७. महायोगीश्वर १६१ ६६८. यज्ञांग १२७ ७०९. वशी ५८७. महादम १५६ ६२८. महाबपु १५४ ६६९. यति २१३ ७१०. वश्येन्द्रिय ५८८. महादान १५४ ६२९. महावित् १४१ ६७०. यतीन्द्र १७० ७११. वहि नमूर्ति ५८९. महादेव १६२ ६३०. महावीर्य १०७ ७१२. वागीश्वर २०९ ५९०. महाद्युति १५२ ६३१. महाव्रत १६२ ६७२. युगज्येष्ठ १९३ ७१३. वाग्मी ५९१. महापामा १५२ ६३२. महाव्रतपति ६७३. युगमुख्य १९३ ७१४. वाचस्पति ५९२. महाधृति १५१ ६३३. महाशक्ति ६७४. युगादि १४७ ७१५. वातरशन २०४ ५९३. महाध्यानपति १६२ ६३४. महाशील ६७५. युगादिकृत् १४७ ७१६. वायुमूर्ति १२६ ५९४. महाध्यानी १५६ ६३५. महाशोकध्वज ६७६. युगादिपुरुष १०५ ७१७. विकलंक १९४ ५९५. महाध्वरघर १५९ ६३६. महासत्त्व १५२ ६७७. युगादिस्थितिदेशक १९३ ७१८. विकल्मष १९४ ५९६. महाधैर्य १५२ ६३७. महासम्पत् ६७८. युगाधार १४७ ७१९. विक्रमो १७२ ५९७. महान् १४८ ६३८. महितोदय १८८ ७२०. विघ्न विनाशक ५९८. महानन्द १५३ ६३९. महिष्ठवाक् १२५, १८८ ७२१. विजर १२४ ५९९. महानाद १५८ ६४०. महेज्य १६४ ७२२. विजितान्तक ६००. महानोति १५३ ६४१. महेन्द्र १०७ ७२३. विदांवर ६०१. महापराक्रम १६० ६४२. महेन्द्रमहित १४८ ६८३. योगीन्द्र १७० ७२४. विद्यानिधि ६०२. महाप्रभ १२८ ६४३. महेन्द्रवन्ध १७० ६८४. योगीश्वराचित १०७ ७२५. विद्वान् १२५ ६०३. महाप्रभु १५५ ६४४. महेशिता १६२ ६८५. रत्नगर्भ १८१ ७२६. विधाता १२५ ६०४. महाप्राज्ञ १५३ ६४५. महेश्वर १५५ ६८६. रुक्माभ १९७ ७२७. विधि १०२ ६०५. महाप्राणिहार्याधीश १५५ ६४६. महोदय १५१, १५३ ६८७. लक्षण्य १४४ ७२८. विनेता १४१ ६०६. महाबल १५२ ६४७. महोदक १५१ ६८८. लक्ष्मीपति २०७ ७२९. विनयजनताबन्धु ६०७. महाबोधि १४५ ६४८. महोपाय १५७ ६८९. लक्ष्मीवान् १८२ ७३०. विपापात्मा १३८ ६०८. महाब्रह्मपति १३१ ६४९. महोमय १५७ ६९०. लोकचक्षु २१२ ७३१. विपाप्मा १३८ ६०९. महाब्रह्मपदेश्वर १५१ ६५०. महौदार्य १५९ ६९१. लोकज्ञ १९५ ७३२. विपुलज्योति १४० MYeurs १२६ १५२ ६७१. यतोश्वर १७९ WWWG १५९ ६७९. योगिवन्दित १५९ ६८०. योगविद १५८ ६८१. योगात्मा १४८ ६८२. योगी १४१ १२५ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट १७५ १७५ १८८ १०५ क्र० सं० नाम श्लोक सं० ० सं० नाम "७३३. विभय १२४ ७७४. विश्वसृट् ७३४. विभव ११७, १२४ ७७५. विश्वात्मा ७३५. विभावसु ११० ७७६. विश्वासी ७३६. विभु १०२ ७७७. विश्वेट ७३७. विमुक्तात्मा १८६ ७७८. विश्वेश ७३८. वियोग १२५ ७७९. विष्टरबवा ७३९. विरजा ११२ ७८०. विहितान्तक ७४०. विरत १२४ ७८१. वीकल्मष ७४१. विराग १२४ ७८२. वीतभी ७४२. विलीनाशेषकल्मष . १२५ ७८३. वीत्मत्सर ७४३. विविक्त १२४ ७८४. वीतराग ७४४. विवेद १४६ ७८५. वीर ७४५. विशाल १४० ७८६. वृष ७४६. विशिष्ट १७२ ७८७. वृषकेतु ७४७. विशोक १२४ ७८८. वृषपति ७४८. विश्रुत १२० ७८९. वृषभ ७४९, विश्वकर्मा १०३ ७९.. वृषभध्वज ७५०. विश्वजित् १२३ ७९१. वृषभांक ७५१. विश्वज्योति १०३ ७९२. वृषाधीश ७५२. विश्वतश्चक्षु १०१ ७९३. वृषायुध '७५३. विश्वतःपाद १२० ७९४. वृषोद्भव ७५४. विश्वतोमुख १०२ ७९५. वेदवित् ७५५. विश्वदृक् १०३ ७९६. वेदवेद्य ७५६. विश्वदृश्वा १०२ ७९७. वेदांग ७५७. विश्वनायक १२३ ७९८. वेद्य ७५८. विश्वभाववित् २१० ७९९. वेषा ७५९. विश्वभुक १२३ ८००. वैकृतान्तकृत् ७६०. विश्वभू १०० ८०१. व्यक्त ७६१. विश्वभूतेश १०३ ८०२. व्यक्तवाक् ७६२. विश्वभुट १२३ ८०३. व्यक्तशासन ७६३. विश्वमूर्ति १०३ ८०४. व्योममूर्ति ७६४. विश्वयोनि १०१ ८०५. शंकर ७६५. विश्वरीश १०४ ८०६. शंवद् ७६६. विश्वरूपात्मा १२३ ८०७. शंवान् ७६७. विश्वलोकेश १०१ ८०८. शक्त ७६८. विश्वलोचन १०२ ८०९. शत्रुघ्न ७६९. विश्वविद् १०१ ८१०. शमात्मा '७७०. विश्वविद्यामहेश्वर १२१ ८११. शमी ३७१. विश्वविद्यश १०१ ८१२. शम्भव ७७२. विश्वव्यापी १०२ ८१३. शम्भु ७७३. विश्वशीर्ष १२० ८१४. शरण्य जैन पुराणकोश : २३ श्लोक सं० ० सं० नाम श्लोक सं० ० सं० नाम इलोक सं० १२३ ८१५. शीतकुम्भनिभप्रभ १९९८५६. सत्यवाक १०१ ८१६. शान्त १३८ ८५७. सत्यविज्ञान १२३ ८१७. शान्तारि २१६ ८५८. सत्यशासन १७५ १२३ ८१८. शान्ति २०२ ८५९. सत्यसन्धान १७५ १०२ ८१९. शान्तिकृत २०२ ८६०. सत्यात्मा १७५ १६४ ८२०. शान्तिद् २०२ ८६१. सत्याशी १७५ १४१ ८२१. शान्तिनिष्ठ २०२ ८६२. सदागति १७७ १३८ ८२२. शान्तिभाक् १२६ ८६३. सदातृप्त १७७ २११ ८२३. शाश्वत् १०२ ८६४. सदाभावी १२४ ८२४. शासिता २०१ ८६५ सदाभोग १७७ १८५ ८२५. शास्ता ११५ ८६६. सदायोग १७७ १२४ ८२६. शिव १०५ ८६७. सदाविद्य १७७ ११६ ८२७. शिवताति २०२ ८६८. सदाशिव १७७ ११६ ८२८. शिवप्रद २०२ ८६९. सदासौख्य १७७ ११६ ८२९. शिष्ट १७२ ८७०. सदोदय १७७ १००,१४३ ८३०. शिष्टभुक १७२ ८७१. सद्योजात १९६ ११६ ८३१. शिष्टेष्ट २०१ ८७२. सनातन ११६ ८३२. शीलसागर २०५ ८७३. सन्ध्याभ्रबभ्रु १९८ ११६ ८३३. शुचि । ११२ ८७४. समग्रधी १५० ११६ ८३४. शुचित्रवा १२० ८७५. समन्तभद्र १०८, २१२ ८७६. समयज्ञ २१७ ८७७. समाहित १८४ १४६ ८३७. शुभलक्षण १४४ ८७६. समुन्मीलितकारि २१४ १६० ८७९. सर्वक्लेशापह १४६ ८३९ शेमुषोश १७९ ८८०. सर्वग १९५ १०२ ८४०. श्रायसोक्ति २०९ ८८१. सर्वज्ञ ११९ १६८ ८४१. श्रीगर्भ ११८ ८८१. सर्वत्रग १४७ ८४२. श्रीनिवास १७४ ८८३. सर्वदर्शन १४७ ८४३. श्रोपति ११२ ८८४. सर्वदिक् ११९ १४७ ८४४. श्रीमान् १०० ८८५. सर्वदोषहर १२८ ८४५. श्रोवृक्षलक्षण १४४ ८८६. सर्वयोगीश्वर १६४ १८९ ८४६. श्रीश २११ ८८७. सर्वलोकजित १८९ ८४७. श्रीश्रितपादाब्ज २११ ८८८. सर्वलोकातिग २०६ ८४८. श्रुतात्मा १६४ ८८९ सर्वलोकेश ११९ ११३ ८४९. श्रेयान् २०९ ८९०. सर्वलोकैकसारथि २०१ ८५०. श्रेयोनिधि २०३ ८९१. सर्ववित् ११९ १६३ ८५१. श्रेष्ठ १२२ ८९२. सर्वात्मा ११९ १६१ ८५२. श्लक्ष्ण १४४ ८९३. सर्वादि १०० ८५३. सत्य १७५ ८९४. सलिलात्मक १२६ १०० ८५४. सत्यकृत्य १३० ८९५. सहस्रपात १२१. १३६ ८५५. सत्यपरायण १७५ ८९६. सहस्रशीर्ष ११६ ८३५. शुद्ध १४६ ८३६. शुभंयु २१६ १८४ १४६ ८३८. शूर १८८ ११९ ११९ १९१ १९१ ११९ १२१ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ । न पुराणकोश परिशिष्ट १२० m ११३ १२८ ११० १२८ क्र० सं० नाम ८९७. सहस्राक्ष ८९८. सहिष्णु ८९९. साक्षी ९००. साधु ९०१. सार्व ९०२ सिद्ध ९०३. सिद्धशासन ९०४. सिद्धसंकल्प ९०५. सिद्धसाधन ९०६. सिद्धसाध्य ९०७. सिद्धारमा ९०८. सिद्धान्तविद् ९०९. सिद्धार्थ ९१०. सिद्धि ९११. सुकृती ९१२. सुखद ९१३. सुखसादभूत ९१४. सुगत ९१५. सुगति ९१६. सुगुप्त ९१७. सुगुप्तात्मा ९१८. सुघोष ९१९. सुतनु ९२०. सुत्वा ९२१. सुत्रामपूजित wrror ~ ~ ~ ~ ~ 9mamM9.9M.. १२७ ११८ १९९ श्लोक सं० ० सं० नाम श्लोक सं० ऋ० सं० नाम श्लोक सं० ० सं० नाम श्लोक सं० १२१ ९२२. सुदर्शन १८१ ९४७. सूक्ष्म १०५ ९७२. स्वभू २०१ १०९ ९१३. सुधी १२५, १७१ ९४८, सूक्ष्मदर्शी २१६ ९७३. स्वयंज्योति १४१ ९२४. सुधौतकलधौतश्री २०० ९४९. सूनृतपूतवाक् २१२ ९७४. स्वयंप्रभ १००, ११८ १६३ ९२५. सुनय १७४ ९५०. सूरि ९७५. स्वयंबुद्ध ११९ ९२६. सुनयतत्त्वविद् १४० ९५१. सूर्यकोटिसमप्रभ १९७ ९७६. स्वयंभू १०० १०८ ९२७. सुप्रभ १९७ ९५२. सूर्यमूर्ति ९७७. स्वयंभूष्णु १०८ ९२८. सुप्रसन्न १३२ ९५३. सोममूर्ति ९७८. स्वर्णाभ १४५ ९२९. सुभग १८४ ९५४. सौम्य ९७९. स्वसंवेद्य १४५ ९३०. सुभुत १४० ९५५ स्तवनाह ९८०. स्वस्थ १०८ ९३१.सुमुख १७८ ९५६. स्तुतीश्वर ९८१. स्वामी १४५ ९३२. सुमेधा १७२ ९५७. स्तुत्य ९८२. स्वास्थ्यभाक १०८ ९३३. सुयज्वा १२७ ९५८. स्थविर ९८३. हतदुर्नय १०८ ९३४. सुरूप १८४ ९५९. स्थविष्ठ ९८४. हर १४५ ९३५. सुवर्णवर्ण १९७ ५६०. स्थवीयान् १७४ ९३६. सुवाक् १२० ९६१. स्थाणु ९८५. हवि ९८६. हाटका ति २०० १७८ ९३७. सुविधि १२५ ९६२. स्थावर २१७ ९३८. सुव्रत १७१ ९६३. स्थास्तु ९८७. हिरण्यगर्भ २०३ २१० ९३९ सुश्रुत १२० ९६४. स्थयान् ९८८. हिरण्यनाभि ११७. १२० ९४०.सुश्रुत् १२० ९६५. स्थेष्ठ ९८९. हिरण्यवर्ण १७८ ९४१. सुसंवृत १४० ९६६. स्नातक __९९०. हृषीकेश १३४ १४० ९४२. सुस्थित १८५ ९६७. स्पष्ट ___९९१. हेतु १४३ १७८ ९४३. सुस्थिर २०३ ९६८. स्पष्टाक्षर २०१ ९९२. हेमगर्भ २१० ९४४. सुसौम्यात्मा १२८ ९६९. स्रष्टा १३३ ९९३. हेमाभ १९८ १२७ ९४५. सुहित १७८ ९७०. स्वतन्त्र १२९ ९९४. हेयादेयविचक्षण २१४ १२७ ९४६. सुहृत १७८ ९७१. स्वन्त १२९ वे नाम जिनकी पुनरावृत्ति हुई है नाम श्लोक सं १४. विभव ११७, ४२४ अधिप १५७, १८९ वृषभ १००,१४३ अनर्घ १७२, १८६ १०८, २१२ अनन्त १०९, १६० सुधी १२५, १७१ अनामय ११४,२१७ स्वयंप्रभ १००, ११८ जगज्जयोति ११४, २०७ महापुराण पर्व २५ (श्लोक ६६ से ९७ तक) में भी आचार्य जिनसेन जगत्पति १०४, ११८ ने तीर्थकर वृषभदेव के अनेक नामों का उल्लेख किया है। इनमें कुछ दमीश्वर १११, १७८ माम अर्हन्तों के गुणों पर आधारित है और कुछ नाम ऐसे हैं जिनका निर्मल १२८, १८४ "सहस्रनाम" में भी उल्लेख हो चुका है। कुछ नाम दार्शनिक तत्त्वों पर परंज्योति आधारित है। इस अंश का गहराई से अध्ययन करने पर ऐसे भी नाम ११०, १११ प्राप्त होते है जिनका सहस्रनाम स्तोत्र में नामोल्लेख नहीं किया गया है परम १४२, १६५ तथा अर्हन्त-गुणों पर भी आधारित नहीं हैं । ऐसे नाम हैंपरमानन्द १७०, १८९ क्रमांक नाम महोदय पर्व एवं लोक संख्या १५१,१५३ अकाय २५.९१ योगविद् १२५, १८८ अन्धकान्तक २५.७३ १८१ क्रमांक - GK GO Jain Education Intemational Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट जैन पुराणकोन : २५ अर्धनारीश्वर इक्ष्वाकुकुलनन्दन चतुरस्रध त्रिधोत्थित परमतच्छिद परमतत्त्व परमतेजस परमप्रशममीयुष परमरूप परमर्षि पुरुषस्कन्ध २५.७३ २५.७५ २५.७७ २५.७७ २५.७२ २५.८६ २५.८६ २५.८७ २५.७९ २५.८७ २५.८५ २५.७६ साधु-मूलगुण निर्ग्रन्थ साधु के २८ मूलगुण बताये गये है । वे हैं महाव्रत समिति ५ इन्द्रिय निरोध आवश्यक ६ केशलोंच १ भू-शयन १ अदन्त-पावन १ अचेलता १ अस्नान १ स्थित भोजन १ एकभुक्त १ २८ मपु०१८,७०-७२, ६१.११९-१२० पंच महावत १. अहिंसा २. सत्य ३. अचौर्य ४. ब्रह्मचर्य ५. अपरिग्रह हपु० २.११६-१२१, ५८.११६ पंच-समिति १. ईर्या २. भाषा ३. एषणा ४. आदाननिक्षेपण ५. प्रतिष्ठापना हपु० २.१२२-१२६ पंचेन्द्रिय-निरोष १. स्पर्शन २. रसना ३. घ्राण ४. चक्षु ५. श्रोत इन पांच इन्द्रियों का निरोध । मपु०१८.७०-७२ पडावश्यक १. सामायिक २. स्तुति ३. वन्दना ४. प्रतिक्रमण ५. प्रत्याख्यान ६. कायोत्सर्ग हपु० ३४.१४२-१४६ सिद्ध परमेष्ठी के आठ गुण १. अनन्त सम्यक्त्व २. अनन्त दर्शन ३. अनन्त ज्ञान ४. अनन्त और अद्भुत वीर्य ५. सूक्ष्मत्व ६. अवगाहनत्व ७. अव्याबाधत्व ८. अगुरुलघुत्व मपु० २०.२२३-२२४ हरिवंशपुराण में अव्याबाध गुण को अव्याबाध अनन्तसुख कहा गया है। हपु ३.७२-७४ पारिवाज्यक्रिया के सूत्रपद १. जाति २. मूर्ति ३. उसमें रहनेवाले लक्षण ४. अंगसौन्दर्य ५.प्रभा६ . मण्डल ७. चक्र ८. अभिषेक ९. नाथता १०. सिंहासन ११. उपधान १२. छत्र १३. चामर १४. घोषणा १५. अशोकवृक्ष १६. निधि १७. गृहशोभा १८. अवगाहन १९. क्षेत्रज्ञ २०. आज्ञा २१. सभा २२. कीर्ति २३. वन्दनीयता २४. वाहन २५. भाषा २६. आहार २७. सुख मपु० ३९.१६२-१६५ कुळाचल १. हिमवान् २. महाहिमवान् ३. निषध ४. नील ५. रुक्मी ६. शिखरी महापुराण में 'महामेरु' को सातवां कुलाचल कहा है। मपु० ६३.१९३, हपु० ५.१५ क्षेत्र १. भरत २. हैमवत ३. हरिवर्ष ४. विदेह ५. रम्यक ६. हरण्यवत् ७. ऐरावत् मपु० ६३.१९१-१९२, हपु० ५.१३-१४ गजदन्त पर्वत १. गन्धमादन २. माल्यवान् ३. विद्युत्प्रभ ४. सौमनस्य मपु० ६३.२०४-२०५, हपु० ५.२१०-२१२ प्राम अचल अन्तिक अरुण पलाल पर्वत मपु० ६२.३३५ पपु० ५.२८७-२८८ मपु० ३५.५-७ मपु० ६.१२६-१२७ Jain Education Intemational Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट सन्दर्भ मपु०७०.२०० मपु० ६.१२७-१२८ औण्ड २६ : न पुराणको पलाशकूट पाटलिग्राम मण्डूक मत्तकोकिल मन्दिर लक्ष्मीग्राम वर्षकि वृत्ति शकट शालिग्राम ३४. मपु० २९.८० मपु० २९.४१, ९३ मपु० २९.६७ हपु० २१.१२३ पपु० १०१.७९-८८ मपु० १६.१४१-१४३ मपु० ६३.२०४-२१३ हपु० ५.२४५-२४६ ३७. ३९. क्र.सं. नाम देश पपु० १०६.१९०-१९७ मपु० ७१.३२६ मपु० ७१.३१७-३४१ हपु० २७.६१-६४ मपु० ७६.१५२ पपु० ५.३५-३६ मपु० ७१.४१६ देश सन्दर्भ मपु० १६.१५२ हपु०११.६८ हपु० ११.७१-७३ मपु० २९.८० पपु. १.१.८४-८६ मपु० १६.१४१-१४८ मपु० १६.१५२-१५५ पपु० ६.६६-६८ मपु० ७२.५४ पपु० २७.५-६ पपु० ६.६८ मपु०५४.८६ मपु० १६.१५२ पपु० १०१.८२-८६ मपु० १६.१४३-१५२ अंग अंगारक अगत अन्तरपाड्य अन्ध्र अपरान्तक अभिसार अमल अमृतवती अर्धवर्वर अलंघन अलका अवन्ति अवष्ट अश्मक अस्वष्ट आत्रेय आनर्त आन्ध्र आभार क्र० सं० नाम देश ओकिक ३२. ककूश ककोटक कक्ष ३६. कच्छ कच्छकावती कच्छा कनीयस ४०. कमेकुर करहाट कर्णकौशल ४३. कर्णाट कबुक ४५. कर्मकुर कलिंग कल्लीवनोपान्त काक्षि कामरूप कार्ण काल कालकूट कालाम्बु कालिन्द काशी काश्मीर किरात ११. १२. मपु० २९.८० मपु०१६.१४१-१४८ पापु० १.१३३ मपु० १६.१४१-२४८ हपु० ११.७१ मपु० २९.८० मपु०१६.१४१-१५६ हपु० ११.७१ हपु०११.७२-७३ मपु० २९.४२ हपु० ३.६-७ पपु० १०१.८४-८६ मपु० २९.४८ पपु० १०१.७७-७८ मपु० २९.४८ मपु०१६.१५१-१५२ मपु०१६.१५३ मपु० २९.४८ मपु० २९.८० मपु० २९.७२ हपु० ११.६५ हपु० ११.७०-७१ मपु० ६३.२०८-२१६ मपु० १६.१५२ मपु० १६.१५३ हपु० ११.७५ हपु० १८.९ . हपु० ११.६५ मपु० ७०.९२-९३ ५५. ५६. १५. ५८. ५९. । कुणाल कुणीयान् ६२. कुमुदा आरट्ट ६३. ६४. ६५. कुरुजांगल हपु० ११.६६-६७ मपु० १६.१५३ मपु० १६.१५४ मपु० १६.१४१-१४८ मपु० १६.१४१-१४८ पपु० १०१.७९-८६ हपु० ११.७३-७४ हपु० ११.६४-६५ हपु० ११.७० मपु० १६.१५२ हपु० ११.७४ पपु० १०१.८३-८६ मपु० १६.१४१-१५३ हपु० २१.७५ कुश ६७. आरुल आवर्त आवृष्ट आसिक उग्र उत्तमवर्ण उलक उशीनर उशीरवर्त कुशद्य कुशाग्र कुशार्थ २६. २७. ६९. कुसन्ध्य ७०. कूट २९. ३०. केकय मपु० २९.८० मपु० १६.१५६ मपु०१६.१५४. केरल Jain Education Intemational Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट जैन पुरागकोश : २७ सन्दर्भ क० सं० नाम देश ७३. कैकय ७४. कोंकण कोसल कोहर कोबेर क्वाथतोय क्र० सं० नाम वेश ११४. धवल ११५. नन्दन ११६. नन्दि ११७. नर्मद ११८. नवराष्ट्र ११९. नासारिक १२०. नेपात १२१. नैषध १२२. पंचाल १२३. पल्लव १२४. पाण्ड्य १२५. पारशैल १२६. पुण्डरीक क्षेम १२७. सन्दर्भ मपु० ६७.१५६-२५७ पपु०१०१.७७ पपु० १०१.७७ हपु०११.७२ हपु० ११.७० हपु० ११.७२ पपु० १०१.८१ हपु० ११.७३ मपु० १६.१४८ मपु० १६.१४१-१४८ मपु० २९.८० पपु० १०१.८२-८६ पपु० ६४.५० मपु० १६.१४३-१५२ हपु. ११.६९-७१ हपु० ३.६ मपु० २९.७९ हपु० ११.६७ हपु० ११.६९ मपु० १६.१४८-१५६ पपु० १०१.७९-८६ हपु० ११.७५ मपु०४८.१२७ हपु० ११.७५ खड्ग खतिलक गन्धमालिनी गन्धा गन्धावत्सुगन्धा गन्धिल गवोधुमत् गान्धारगौड गौरी गौशोल चारु चिलात चेदि चोल जालन्धर पुण्ड मपु० १६.१४१-१४८ मपु० १६.१४१-१४८ पपु० १०१.८४-८६ पपु० १०१.८४-८६ हपु० ११.६६ मपु०७५.४०२ मपु० ६३.२१३ पपु० ५५.२९ मपु० ५९.१०९ मपृ. ६३.२०८-२१७ मपु० ६३.२१२ मपृ० ५.२३० पपु० २८.२१९ पपु० ९४.७ मपु० २९.४१ मपु० ४६.१४५ पपु० १०१.८२-८६ पपु० १०१.८१ मपु० ३२.४६-४७ मपु० १६.१४१-१४८ मपृ० १६१५४ पपु० १५.६३ हपु० २१.१०३ हपु० ११.७१-७३ हपु० ३.६ हपु० ११.६७ मपु० १६.१५६ हपु०११.६४ मपु० २०.१०७ पपु० ६.६६-६८ मपु. २९.७९ १२८. १२९. १३०. १३१. १३२, १३३. १३४. पुरुष प्रच्छाल प्रातर प्रास्थाल बाणमुक्त बाल्हीक बृषाण १३५. भंग १३६. टंकर्ण १३७. १३८. तापस तानं १३९. पपु० ६.६६ तीर्णकर्ण १४०. १४१. १००. १०२. १४२. १०३. १०४ १४४. भगलि भद्र भद्रकार भरक्षम भरद्वाज भरुकच्छ भारद्वाज भावकुन्तुले भीम भीरू भूतरव मंगल मगध मत्स्य मद मद्रक मद्रकार मलय महाराष्ट्र महिम १४५. १०५. १०६. तुलिंग तैतिल तोयावली त्रिकलिंग त्रिगत त्रिजट त्रिपुर त्रिशिरिस् दशार्ण दशरुक दाण्डीक १४६. १४७. १४८. १०७. १०८. Norworror हपु० ११.७२ हपु० ११.६७ पपु०१०१.७७-७८ पपु० १०१.७७ पपु० १०१.८१ पपु० १०१.७७ मपु०७१.२७८ मपु० ५७.७० हपु० ३.४ मपु० २५.२८७ हपु० ११.६६-७७ हपु० ११.६४-६५ पपु० ५५.२८ मपु० १६.१५४ हपु० ११.७२ १४९. पपु०१०१.८१ हपु० ११.७३ पपु०१०१.८२ मपु० १६.१५३ हपु० ११.६७ हपु० ११.७० मपु०१६.१५५ हपु० ११.७१ . ११.. १५.. १५१. १५२. दारु ११२. ११३. १५३. १५४. Jain Education Intemational Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ चैन पुराणकोश परिशिष्ट १९१. शलभ vvvv १६५. २०३. सनर्त २०७. क० सं० माम देश महिष मागध १५७. माणव १५८. मानवार्तिक १५९. मालव १६.. माल्य माहिषक १६२. माहेभ १६३. मूलक १६४. मृगावती मेभला मेघपाद १६७. मोक १६८. यमन १६९. यवन १७०. रम्यक १७१. राष्ट्रवर्धन १७२. १७२. लम्पाक १७४. लाट १७५. १७६. वजखंडिक १७७. वत्स १७८. वनवास १७९. ववर १८०. वाटवान् १८१. वाण १८२. वानायुज २८३. वापि १८४. वाल्हीक १८५. विदर्भ १८६. विदेह १८७. विनिहात्र १८८. विन्ध्य १८९. विराट १९०. रोधन सन्दर्भ क्रमांक नाम देश मपु० २९.८० वैदर्भ मपु० २९.३९ १९२. वैदिश (विदिशा) मपु० ११.६९ १९३. वैद्य हपु० ११.६८ १९४. शक मपु० १६.१५३ १९५० शकट हपु० ११.७१ १९६. शर्वर हपु० ११.७० १९७. हपु० ११.७२ १९८. शिखापद हपु० ११.७०-७१ १९९. मपु० ७१.२९१ २००. शूरसेन पपु० १०१.८३ २०१. शौर्य पापु० १.१३३ २०२. सक्कापिर हपु० ११.६५ हपु० ५०.७३ २०४. समुद्रक मपु० १६.१५५ २०५. सारसमुच्चय मपु० १६.१५२ २०६. सारस्वत हपु० ५०.७० साल्व पपु० ६.६७-६८ १०८. सिन्धु पपु० १०१.७०-७५ सुकोशल मपु० ३०.९७ २१०. सुभोटक मपु० १६.१६२ २११. सुरम्य हपु० ११.७५ २१२. सुराष्ट्र मपु० १६.१५३ २१३. सुवीर मपु० १६.१५४ २१४. सुसीमा पपु० १०१.८२-८६ २१५. सुह्म हपु० ३.६ सुह्य मपु०७०.१०७ २१७. सूर मपु० ३०.१०७ २१८. मपु० ३०.१०७ २१९. मपु० १६.१५६ सूर्यारक मपु० १६.१५३ २२१. सैतव मपु०१६.१५५ २२२. सौराष्ट्र हपु० ११.७४-७६ २२३. सौवीर पपु० १०१.८३-८६ २२४. हरिवर्ष पपु० १.१३४ २२५. हिण्डिव हपु० ३.४ . २२६. हेमांगद द्वीप और सागर सन्दर्भ हपु० ५.२-११ १. लवणसमुद्र हपु० ५.४८९-५६१ २. कालोदधिसागर हपु० ५.५७६-५८९ ३. पुष्करवर सन्दर्भ हपु० ११.६९ हपु० ११.७४ पपु० १०१.८२ मपु० १६.१५६ हपु० २७.२० पपु० १०१.८१ पपु० १०१-७७ पपु० १०१-८३ हपु०११.६६-६७ मपु० १६.१५५ मपु० ७१.२०१-२०२ हपु०११.६९-७६ पपु० १०१.८३ मपु० १६.१५२ मपु० ६८.३-४ हपु०११.७२ हपु० ११.६५ मपु०१६.१५५ मपु०१६.१५३ पापु० १.१३३-१३४ मपु० ६२.८९ मपु० १६.१५४ पपु० ३७.८, २३-२५ मपु० ४७.६५-६७ मपु० १६.१५२ पपु० १०१.४३ हपु० ३.५ हपु० ३.४ हपु० ११.७१, ७६ पपु०१०१.८३ हपु० ११.७५ मपु०३०.९८ मपु० १६.१५५ मपु० ७०.७४-७५ पपु० १०१.८२ मपु० ७५.१८८ . बंग ~ ~ ~ सूरसेन सूर २२०. वृकार्थक द्वोप सागर १. जम्बूद्वीप २. धातकीखण्ड ३. पुष्करवर सन्दर्भ हपु०५.४३०-४८८ हपु० ५.५६२-५७५ हपु० ५.६१३ Jain Education Interational Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट दीप ४. वारुणीवर ५. क्षीरवर ६. घृतवर इक्षुवर 19. ८. नन्दीश्वर ९. अरुणद्वीप १०. अरुणोद्भास ११. कुण्डलवर १२. शंखवर १३. रुचकवर १४. भुजगवर १५. कुशवर १६. क्रौंचवर क्र०सं० द्वीप १. मनःशिल २. हरिताल ३. सिन्दूर ४. श्यामक ५. अंजन ६. हिगुलक ७. रूपवर ८. सुवर्णवर ९. वज्रवर १०. बैर ११. नागवर १३. वर १३. यक्षवर १४. देववर १५. इन्द्रवर १६. स्वयंभूरमण कांचन किन्नर कुम्भकष्टक गन्धर्व गौतम दधिमुख धरण पलाश सन्दर्भ हपु० ५.६१४ हपु० ५.६१४ सम्बर्भ हपु० ५.६१४ हपु० ५.६१४ हपु० ५.६१५ हपु० ५.६१५ हपु० ५.६१६ हपु० ५.६१७ हपु० ५.६१७ हपु० ५.६१८ हपू० ५.६१८ हपु० ५.६१९ हपु० ५.६१९ हपु० ५.६२० हपु० ५.६१९ हपु० ५.६२० हपु० ५.६२० पु० ५.६२० आरम्भिक इन सोलह द्वीप सागरों के आगे असंख्यात द्वीप-सागरों के पश्चात् विद्यमान अन्तिम सोलह द्वीप सागर सन्दर्भ हपु० ५.६२२ हपु० ५.६२२ हपु० ५.६२३ हपु० ५.६२३ हपु० ५.६२३ हपु० ५.६२३ हपु० ५.६२३ ० ५.६२४ ०५.६२४ हपु० ५.६२४ ०५.६१५ हपु० ५.६१५ हपु० ५.६१६ हपु० ५.६१७ हपु० ५.६१७ हपु० ५.६१८ हपु० ५.६१८ हपु० ५.६१९ हपु० हपु० ५.६२४ हपु० ५.६२५ हपु० ५.६२५ हपु० ५.६२५ हपु० ५.६२५ हपु० ५.६२६ सागर ४. वारुणीवर ५. क्षीरोदसागर ६. घृतवर ७. इक्षुवर ८. नन्दीश्वर पपु० ४८.११५-११६ पपु० ३.४४ हपु० २१.१२३ पपु० ५.४५ हपु० ५.४६९-४७० पपु० ५१.१ पपु० ३.४६ मपु० ७५.९७ ९. अरुणसागर १०. अरुणोद्भास ११. कुण्डलवर १२. शंखवर १३. रुचकवर १४. भुजगवर १५. कुशवर १६. क्रौंचवर क्र०सं० सागर १. मनःशिल २. हरिताल ३. सिन्दूर ४. श्यामक ५. अंजन ६. हिंगुलक ७. रूपवर ८. सुवर्णवर ९. वज्रवर १०. सूर्यवर ११. नागवर १२. भूतवर १३. यक्षवर १४. देवबर १५. इन्दुवर १६. स्वयंभूरमण पुष्कर योधन रक्षद्वीप लंका वानर शाखामृग संध्याकार सुवर्णद्वीप जैन पुरानकोश : २९ सन्दर्भ हपु० ५.६२२ हपु० ५.६२२ हपु० ५.६२३ हपु० ५.६२३ हपु० ५.६२३ हपु० ५.६२३ हपु० ५.६२३ हपु० ५.६२४ हपु० ५.६२४ हपु० ५.६२४ हपु० ५.६२४ हपु० ५.६२५ हपु० ५.६२५ हपु० ५.६२५ हपु० ५.६२५ हपु० ५.६२६ पपु० ८५.९६ पपु० ४८.११५-११६ पपु० १.५४ मपु० ६८.२५६-२५७ पपु० ६.८५ पपु० ६.७०-७१ पपु० ४८. ११५-११६ हपु० २१.१०१ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० : बैन पुराणकोश सुवेल स्वयंप्रभ ३१. हनुह हरिसागर झादन अर्धस्वर्णोदय रत्नद्वीप राक्षसद्वीप क्षीरसागर गंगासागर लौहित्यसागर पपु० ४८.११५-११६ मपु०७१.४५१-४५२ पपु० ४८.११५ पपु०१७.३४४-३४६ पपु०४८.११५ पपु. ४८.११५ पपु०४८.११५-११६ मपु० ३.१५९ पपु० ५.१५२-१५८ हपु० २.४२, ५४ हपु. ११.३ मपु० २९.५१ क्र०सं० नाम अशोकपुर अशोका अश्वपुर असितपर्वत असुर असुरसंगीत असुरोद्गीत आकाशवल्लभ आदित्यनगर आदित्याभ आनन्द आनन्दपुर आलोकनगर ३७. नगर आवर्त ४२. आवली आषाढ इन्द्रनगर ५१. क्र० सं० नाम अंकवती अंगावत अक्षपुर अक्षोभ्य अग्नि ज्वाल अन्द्रकपुर अमरकंका अमलकण्ठ अमृतध्वर अमृतपुर अम्बरतिलक अम्भोद अयोध्या अरजस्का १५. अरजा अरिंजय अरिष्टनगर अरुण अरुणोद्भास अर्कभूल २१. अर्जुनी २२. अर्धस्वर्गोत्कृष्ट २३. अलंकारोदय अलकपुर अलका अवध्या अशोक ५४. परिशिष्ट नगर सन्दर्भ मपु०७१.४३२ मपु० १९.८१,८७ हपु० ५.२६१ हपु० २२.९६ पपृ० ७.११७ पपु० ८.१ मपु० ३.८-९ पपु० ३.३१४ हपु० २२.८५ मपु० ६२.३६१ हपु० २२.८९.९३ हपु० ५३.३० पपु० ८५.१४१-१४३ पपु० ५.३७३-३७४ पपु० ५.३७३-३७४ हपु० २२.९५ मपु० ३६.१५-१७ पापु० १६.२-४ हपु० ६०.९५ हपु०१७.१-४ हपु० ४५.९३-९४ हपु० २०.३-११ पपु० ५.३७३-३७४ हपु० २२.९३-१०१ हपु० २२.८८ पपु० ५५.८४-८८ मपु० ६३.१६४-१६५ मपु०७४.२२०-२२१ पपु० ६.५६७ पपु० २२.१७३ पपु० ४१.१२८ पपु०१९.१०१-१०३ हपु० १७.२८-२९ पपु० ५.३७१-३७२ मपु० ६३.१०५ हपु० २४.११ मपु०७०.१२७ मपु० ५५.२३-२८ मपु० ४७.१८० मपु० १९.४८ मपु० ७२.१९८ मपु० ६२.२०२-२१२ नगर सन्दर्भ हपु० ५.२५९ मपु० १९.४५ पपु० ७७५७ मपु० १९.८५-८७ हपु० २२.९० पपु० ३१.२६-२७. हपु० ५४.८ मपु०७२.४०-४१ हपु० २२.१०० पपु० ५५.८४-८८ मपु० १९.८२,८७ पपु० ५.३७३-५७४ मपु० ७.४०-४१ मपु० १९.४५, ५३ मपु० ६३.२०८-२१६ हपु० २२.८६, ९३ मपु० ७१.४००, ५६.४६ पपु० १७.१५४ हपु० ५.६१७ हपु० २२.९९ मपु० ७८.८७ पपु० ५.३७१-३७२ पपु० ५.१६३-१६६ पपु० २०.२४२-२४४ मपु० १९.८२,८७ मपु. ६३.२०८-२१७ हपु० २२.८९ इन्द्रपथ इभ्यपुर इलावर्द्धन ईहापुर उज्जयिनी उत्कट उदयपर्वत ऐशान कंचनपुर कनकपुर कनकप्रभ कनकाभ कमलसंकुल कम्बर कर्णकुण्डल कल्पपुर कांचन कांचनतिलक कांचनपुर कांचीपुर १६. १८. २०. ६२. काकन्दी कान्तपुर कामपुष्प काम्पिल्या कारकट ६८. Jain Education Intemational Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट जैन पुराणकोष:३१ सन्दर्भ क्र० सं० सन्दर्भ ७०. ११२. क्र०सं० नामनगर कालकेशपुर किन्नर किन्नरोद्गीत किन्नामित किलकिल किष्किन्ध किष्कुपुर कुंजरावर्त कुण्ड कुण्डलपुर ११४. ११५. ११७. ११८. १२०. १२१. १२२. १२३. १२४. १२५. १२६. १२७. नाम नगर गन्धर्वगीत गन्धर्वपुर गन्धसमृद्ध गरुडध्वज गान्धार गिरितट गिरिनगर गिरिशिखर गुजा गुल्मखेट गोक्षीर गोवर्द्धन गौरिक गौरीकूट चक्रधर चक्रपुर चक्रवाल चतुमुखी चन्दनपुर चन्दनवन चन्द्रपर्वत चन्द्रपुर चन्द्रादित्य चन्द्राभ चन्द्रावर्तपुर चमरचम्पा चम्पकपुर चम्पा चारणयुगल चित्रकारपुर चित्रकूट ८७. . १२८. हपु० २२.९८ मपु० ७१.३७२ हपु० २२.९८ मपु० १९.३१-३३ मपु० १९.७८ मपु० ६८.४६६-४६७ पपु० ६.१-५ मपु० १९.६८ मपु० ७५.७ मपु० ६२.१७८ मपु० १९.८२, ८७ पपु० ३३.१४३ मपु० १९.८२ मपु० ६२.२०७-२१२ पपु० ८.१४२-१४५ पपु० ५९.६ पपु० २.२२४ पपु० ४८.१५८ मपु० ७२.३१८-३२२ पपु० ३३.१-५७ मपु० १९.८० मपु० १९.७८ पपु० ७.१२६-१२७ पपु० ३९.१८० पपु० ४.२०७-२०८ हपु० २२.८८ पपु० ४८.३६ मपु० १९.५० मपु० ७५.४०३ मपु० ४९.२ मपु० १९.४८ पपु० ३८.५६-५९ मपु० ६७.१४१-१४२ हपु० २२.८९ मपु० १९.४९ मपु० ७१.२४९-२५२ हपु० २२.८५ मपु० ४७.१२८ हपु० ३४.१५ हपु० २२.९० हपु० २७.११५ १३०. १३१. ९०. पपु० ५.३६७ मपु० ७.२८-२९ हपु० २२.९४ मपु० १९.३९ मपु० ६३.३८४ हपु० २३.२६-४५ मपु०७१.२७० मपु० १९.८५ पपु० १०४.१०३ मपु० ७३.१३२-१३३ मपु० १९.८५ पपु० २०.१३७ हपु० २२.८८ हपु० २२.८७ पपु०६४.५० हपु० २७.८९ हपु० २२.९३ मपु० १९.४४ हपु. ६०.८१ हपु० २९.२४ हपु० २२.९७ मपु० १९.५२-५३ पपु० ८५.९६ मपु० १९.५० पपु०१३.७५-७८ मपु० १९.७९ हपु० ५.४२८ हपु० १.८१ मपु० ६७.२१३ हपु० २७.९७ मपु० १९.५१ मपु० ६२.६६ हपु० ४६.२६-२७ मपु० ५९.२६४ मपु०७४.२४२ मपु० ७१.४५२ हपु०१७.२७ पपु० १२३.११२ पपु० ६.६६ . पापु० १६.७ हपु० २२.५५ ११. कुन्दनगर कुमुद कुम्भकारकट कुम्भपुर कुशस्थलक कुशाग्रनगर कुसुमपुर कूलग्राम कूवर केतुमाल कैलासवारुणी कौतुममंगल कौमुदी कौशाम्बी कौशिक क्रौंचपुर क्षेमकर क्षेम क्षेमपुर क्षेमपुरी क्षेमांजलि खंगपुर खण्डिका गगनचरी गगननन्दन गगनमण्डल गजपुर गण्यपुर गन्धमादन गन्धमालिनी १३२. १३३. ९४. १३४. १३५. १३६. १३७. १३८. - ~ ~ mr mr : & & or १००. १०१. चित्रपुर १४.. १४१. १४२. १४३. १४. १४५. १०२. १०३. १४६ . MMMMMM wor~~ . . . १४७. १४८. चूलिका छत्रपुर छत्रकारपुर जयन्तपुर जयन्ती जयपुर जलषिध्यान जनपथ जलावतं १५०. ११०. १५१. Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ चैन पुराणकोश परिशिष्ट तट क्र.सं. नाम नगर १५२. । जीमूतशिखर १५३. ज्योतिप्रभ १५४. ज्योतिर्दण्डपुर १५५. १५६. ताम्रलिप्त तिलक १५८. तिलपथ १५९. तिलवस्तुक तोयावली १६१. त्रिपुर १६२. त्रिलोकोत्तम त्रिशृंग १६४. दधिमुख १५७. १६.. २०२. २०६. दन्तपुर १६७. १६८. १७०. १७१. १७२. १७३. सन्दर्भ पपु० ९४.१-५ मपु० ७२.२४१ पपु०५५.८७-८८ पपु० ५.३६७ हपु० २१.७६ मपु० ६३.१६८ पापु० १६.५ हपु० २४.२ पपु० ५.३७३-३७४ मपु० ६२.६७ मपु०७३.२५-२६ हपु० ४५.९५ पपु० ५१.२ मपु०७०.६५ पपु०८०.१०९ मपु०७१.२९१ पपु० १०६.१८७ मपु० ६२.३६ पपु० १९.२ पपु० ५.३७३-३७४ हपु० ६६.५३ मपु० ७१.२४-२७ हपु० २३.४६-४९ मपु०८.३३० मपु० ५९.४२-४३ पपु० १२०.२ मपु० ७२.३-१४ पपु० ३७.६ मपु० ५४.२१७-२१८ पपु० ८५.४९-५१ हपु० १७.१६२ पपु० ५.११४ मपु० ५९.१४६-१४८ मपु० ६२.१९१ पपु० ५५.८७-८८ पपु० ५५.८७-८८ मपु० ६१.४० मपु० २९.७९ वीवच० २.१२५-१२६ मपु० २०.२१८ हपु० १७.२४-२५ पपु० १.६१ क्र० सं० नाम नगर १९४. पूर्वतालपुर १९५. पृथिवी पोदनपुर प्रतिष्ठनगर १९८. प्रभाकरपुरो १९९. प्रभापुर २००. भद्रपुर २०१. भद्रिलपुर भद्रिलसा २०३. भुजंगशैल २०४. भूतिलक २०५. भोगपुर भोगवर्द्धन २०७. मनोहर २०८. मनोह्लाद मन्दर २१०. मन्दरकुंज २११. मन्दरपुर २१२. मयूरमाल २१३. मत्यानुगीत २१४. मलयानन्द २१५. महाकूट २१६. महानगर २१७. महारत्वपुर २१८. महाशैलपुर २१९. महीपालपुर २२०. महीपुर २२१. महेन्द्रनगर माकन्दी २२३. मागधेशपुर २२४. मार्तण्डाभपुर २२५. माहिष्मती २२६. मिथिला २२७. मृगांक २२८. मृणालकुण्ड २२९. मृणालवती २३०. मृत्तिकावती २३१. मेघदल २३२. मेघपुर २३३. यक्षगीत २३४. यक्षपुर सन्दर्भ हपु० ९.२०५-२१० मपु० ४८.५८-५९ मपु० ५४.६८ पपु० १०६.२०५ मपु०७.३४ पपु० ९२.१-७ मपु० ५६.२३-२४ मपु० ५६.२४ हपु० ३३.१६७ मपु०७२.२१५ मपु०७६.२५२ मपु० ६७.६३ मपु०५८.९०-९१ पपु० ५.३७१ पपु० ५.३७१-३७२ पपु० १७.१४१ पपु० ६.३५७-३६३ मपु० ६३.४७८-४७९ पपु० २७.६७ पपु० ९४.६ पपु० ५५.८६ मपु० १९.५१ मपु० ५८.४०-४१ मपु० ६२.६८ पपु० ५५.८६ मपु० ७३.९६ मपु० ७५.१३ पपु० १५.१३-१६ हपु० ४५.११९-१२१ हपु० १८.१७ पपु० ५५.८७-८८ पपु०१०.६५ मपु० ६६.२०-२१ पपु०१७.१५० पपु० १०६.१३३-१३४ मपु० ४६.१०३ पपु० ४८.४३-५० हपु० ४६.१५-१६ मपु० ६२.२५-३० पपु० ७.११८ पपु० ७.१२६-१२७ दशांगभोगनगर दशार्ण दिति दिवितिलक दुन्दुभि दुर्ग्रह दोस्तटिका द्वारवती धारणयुग्म धान्यपुर नन्दनपुर नन्दस्थली नन्दिवर्धन नन्द्यावर्त नलिन नाग नागपुर पद्ममक पद्मखण्डपुर पदिमनीखेट पराजयपुर परिक्षोदपुर पाटलिपुत्र पुन्नागपुर पुरातनमन्दिर पुरिमताल पुलोमपुर पुष्पान्तक १७४. १७५. १७७. १७८. १७९. १८०. १८१. १८२. १८३. १८४. १८५. १८६. १८७. १८८. १८९. १९०. १९१. २२२. १९२. १९३. Jain Education Intemational Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट जैन पुराणकोश . ३२ २३६. २३७. २३९. २४४. लंका क्र०सं० नाम नगर २३५, यक्षस्थान योध रजोवली २३८. रत्नद्वीप रलनगर २४०. रत्नपुर २४१. रलस्थलपुर २४२. रन्ध्रपुर २४३. रमणीकमन्दिर रमणं य २४५. रविप्रभ २४६. रसातलपुर २४७. राजगृह २४८. राजपुर २४९. रामपुरी २५०. रिपुंजयपुर २५१. रोरुका २५२. लक्ष्मीधर लोकाक्षनगर २५५. वंकापुर २५६. वंशस्थलद्युति २५७. वज २५८. वज्रपंजर २५९. वजपुर २६०. २६१. वणिकपथपुर २६२. वनवास्य २६३. वर्तमानपुर २६४. वसुन्धरपुर २६५. वस्वालय २६६. बह्निप्रभ २६७. २६८. २६९. विघट २७०. विजय २७१. विजयखेट २७२. विजयनगर विजयपुर २७४. विजयनगर २७५. विदेह सन्दर्भ पपु० ३९.१३७-१२९ पपु० ५.३७१-३७२ पपु० ५.१२४ पपु० ५.३७३ पपु० १३.६० मपु० ५९.८८ पपु० १२३.१२१-१२२ पपु० २८.२१९ वीवच० २.१२१-१२२ यपु०७५.३०१-३०३ पपु० ९४.४-९ पपु० १९.९ मपु० ५७.०-७२ मपु०७५.१८८-१८९ पपु० ३५.४३-४५ पपु० ५५.८७-८९ मपु० ७५.११-१२ मपु० ६८.२९५-२९८ पपु०९४.५ पपु० १०१.७०-७३ हपु० प्रशस्ति ३२-३५ पपु० ३९.९-११ हपु० १७.३३ पपु० ५.३५७-३५९ हपु०१७.३३ हपु० ४३.१६३ पापु० १६.७ हपु० १७.२७ मपु० ५२.५३-५४ हपु० ४५.७० मपु०७०.७४-७६ पपु० ९४.४ पपु० ९४.४ मपु० ४३.१२१-१२४ पपु० ५.३७३-३७४ मपु० ८.२२७ मपु० १९.५३-५८ पपु० ३७.९ हपु० ५.३९७-३९८ पपु० २६.१३-१५ मपु० ७५.६४३ क्र०सं० नाम नगर २७६. विन्ध्यपुर २७७. विमलपुर २७८. विराट २७९. विशालपुर २८०. विहायस्तिलक २८१. वीतभय २८२. वीतशोक २८३. वीतशोकपुर २८४. वीरपुर २८५. वृन्दावन २८६. वेदसामपुर २८७. वेलन्धर २८८. वैजयन्त २८९. वैदिशपुर २९.. वैशाली २९१. व्याघ्रपुर २९२. व्रज २९३. शंख २९४. शकटामुख २९५. शतद्वार शशांक २९७. शशिच्छाय २९८. शशिपुर २९९. शशिस्थानपुर ३००. शामलो ३०१. शालगुहा शिखापद शिल्धुपुर ०४. शीरवती शीलनगर ३०६. शुक्तिमती शुक्रप्रभ ३०८. शुभ्रपुर शैलनगर ३१०. शैलपुर शोभपुर शोभनगर शोभापुर शौरीपुर ३१५. श्रावस्ती ३१६. श्रीगुहापुर सन्दर्भ मपु० ६३.९९ मपु० ४७.११८-११९ मपु०७२.२१६ मपु. ५५.८७-८८ पपु० ५.७६-८३ हपु०४४.३३-३६ मपु० ६२.३६४-३६५. मपु० ५९.१०९-११० मपु० ६९.३०.३१ हपु० ३५.२७-२९ हपु० २४.२५-२६ पपु० ५४.६५ पपु० ३६.९-११ हपु० ४५.१०७ मपु० ७५.३ पपु० ८०.१७३ मपु० ७०.४५५ मपु० ६२.४९४ हपु० २२.१४३ पपु०१२. २२-२३ पपु०८५.१३३ पपु० ९४.७ पपु० ३१.३४-३५ पपु० ९५.८७-८८ पपु०१०८.३९-४० हपु० २४.२९-३० पपु० १३.५५ पपु० ४७.१४४-१४५ पापु० ३.२१०-२११ पापु० ७.११८ हपु० १७.३६ मपु०६३.९१ हपु० १७.३२ पपु० २०-२०७-२०८ मपु० ५५-४८ पपु०८०.१९०-१९५ मपु० ४६.९५ पपु० ५५.८५ पपु० २०.५८ मपु० ४९.१४ पपु० ५५.८८ वटपुर ०२. ०७. वहुरव वारणसी २७३. ३१४. Jain Education Intemational Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ : जैन पुराणकोश परिशिष्ट क्र० सं० नाम नगर सन्दर्भ क्र० स० ३१७. ३१८. ३१९. सुरनूपुर सुरेन्द्ररमण ३४७. सुवेल ३२०. ३४८. ३२१. ३४९. ३२२. ३५०. सूतिका सूर्यप्रभ सूर्योदय सोपारक सोमखेट ३५१. ३२३. ३२४. ३२५. सौमनस ३५२. ३५३. ३५४. ३५५. ३२७ स्थालक स्थूणागार स्फुट ३२८. ३५६. ३५७. ३२९. स्वयं م ३३०. ३३१. ३३२. नाम मगर श्रीगृह श्रीपुर श्रीमनोहरपुर श्रीविजयपुर श्रुतपुर श्रुतशोणित श्रेयस्पुर श्वेतिका संध्याकार संध्याभ्र सुन्तु सद्भद्रिलपुर सप्तपर्णपुर समुद्र सर सर्वरमणीय सांकापुर साकेत सारसौख्य सिंहपुर सिद्धार्थ सिन्धुनद सुनपथ सुप्रकारपुर सुप्रतिष्ठ सुभद्रिलपुर सुमाद्रिका सुरकान्तर पपु० ९४.७ मपु० ६९.७४ पपु० ५५.८६ पपु० ९४.८-९ पापु०१४.७९ हपु०५५.१६ मपु० ४७.१४२ मपु०७१.२८३ पपु० ६.६५-६६ पपु० ३.३१३ पपु० ५.९६ हपु० १८.११२ हपु० ५.४२७ पपु० ५.३७१ पपु० ५.६७ मपु० ७६.१८४ पपु० २८.२१९ मपु० १२.८२ मपु०७४.३८९-४०१ मपु०५.२०३ मपु० ५७.४९.५० पपु०८.३१९-३४० पापु० १६.६ मपु०७१.४०९-४१४ मपु० ७६.२१६ हपु० ३५.४ पपु० २०.१४ मपु० ६६.११४ ३५८. ३५९. ३५०. ३६१. ३६२. ३६३. पपु० ५५.८६-८७ पपु०८१.२१-२७ पपु० ५.३७१-३७२ मपु०७४.७४ मपु०७०.२६-२९ पपु०८.३६२ हपु. ६०.३६ मपु० ५३.४३ मपु० ५१.७२ मपु. ६८.१२-१९ मपु० ७४.७०-७१ हपु० ५.३७३ पपु० ७.३३७ हपु० २४.६९ मपु० ६७.२५६-२५७ पपु० ५.३७१-३७२ पपु० ५४.७६-७७ हपु० ४४.४५-४८ पपु० ६.६६-६८ पपु० २१.३-४ पपु० ६२.३-१२ मपु० ४१.४ पपु० २०.५२-५४ पपु० ७५.१०-११ पपु० ६.५६४ मपु० ७५.४२०-४२८ पपु० ५५.२९ الله الله الله ३३५. الله فله स्वर्णाभपुर स्वस्तिकावती हंसद्वीप हंसपुर हयपुरी हरि हरिपुर हस्तव हस्तशीर्षपुर हस्तिनागपुर हेमकच्छ हेमपुर हेमाभनगर الله الله الله ३६५. له ३३८. فقه الله ३३९. ३४०. ३६७. ३६८. له الله ليه لية ३४१. ३४२. ३४३. ३६०. ३७१. सन्दर्भ विजयार्द्ध पर्वत को उत्तरश्रेणी के नगर (महापुराण के अनुसार) क्र० सं० नाम नगर अक्षोभ्य मपु० १९.८५ अग्निज्वाल मपु० १९.८३ अम्बरतिलक मपु० १९.८२ अर्जुनी मपु० १९.७८ अलका मपु० १९.८२ अशोका मपु० १९.८१ किलकिल मपु० १९.७८ मपु० १९.८२ विजयार्द्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी के नगर ( हरिवंशपुराण के अनुसार ) क्र० सं० नाम नगर सन्दर्भ अग्निज्वाल हपु० २२.९० अपराजित हपु० २२.८७ अरिंजय हपु० २२.८६ अशोक हपु० २२.८९ आदित्यनगर हपु० २२.८५ आनन्द हप० २२.८९ ऐशान हपु० २२.८८ कांचन हपु० २२.८८ 33; Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट जैन पुराणकोश : ३५ क्र० सं० नाम नगर केतुमाल कैलाशवारुणी गगननन्दन गगनवल्लभ गन्धर्वपुर गिरिशिखर गोक्षीर चमर चारुणी चूडामणि जय तिलका क्र०सं० नाम नगर केतुमाल कौशिक खण्डिका गगनमण्डल गगनवल्लभ गन्धमादन गौरिक १६. चमरचम्पा चम्पा चूड़ामणि जयन्त जयावह धनंजय नन्दन नन्दिनी नैमिष पद्माल पाण्डुक दुर्ग २६. २८. सम्प्रभ मपु० १९.८२ मपु० १९.८० मपु० १९.७८ मपु० १९.८१ मपु० १९.८२ मपु० १९.८३ मपु० १९.८५ मपु० १९८५ मपु० १९.७९ मपु० १९.७८ मपु० १९.७८ मपु० १९.८४ मपु० १९.८२ मपु० १९.८५ मपु० १९.८५ मपु० १९.८३ मपु० १९.८५ मपु० १९.८५ मपु० १९.८३ मपु० १९.७९ मपु० १९.८५ मपु० १९.७९ मपु० १९.८४ मपु० १९.८३ मपु० १९.८४ मपु० १९.८२ मपु० १९.८४ मपु० १९.८६-८७ मपु० १९.८३ मपु० १९.८७ मपु० १९.८६-८७ मपु० १९.७९ मपु० १९.८६-८७ मपु० १९.८० मपु० १९.८० मपु० १९.८६-८७ मपु० १९.७८ मपु० १९.८१ मपु० १९.८१ मपु० १९.८० मपु० १९.७८ मपु० १९.७९ दुर्घर द्युतिलक घरणी धारणी निमिष पुष्पचूल फेन बलाहक भद्राश्व भूमितिलक मणिवज मन्दिर महाज्वाल महेन्द्रपुर मुक्ताहार रत्नपुर रलाकर वंशाल वजपुर वसुमती ३०. सन्दर्भ हपु० २२.८६ हपु० २२.८८ हपु० २२.८९ हपु० २२.८५ हपु० २२.८५ हपु० २२.९० हपु. २२.८८ हपु० २२.८५ हपु० २२.८८ हपु० २२.९१ हपु० २२.८७ हपु० २२.८८ हपु० २२.८६ हपु० २२.८९ हपु० २२.९० हपु० २२.८९ हपु० २२.८६ हपु० २२.८८ हपु० २२.९० हपु० २२.९१ हपु० २२.९१ हपु० २२.९१ हपु० २२.८९ हपु० २२.८८ हपु० २२.८८ हपु० २२.९० हपु० २२.९१ हपु० २२.९० हपु० २२.८८ हपु० २२.९० हपु० २२.९१ हपु० २२.८६ हपु० २२.९२ हपु० २२.८७ हपु० २२.८७ हपु० २२.८६ हपु० २२.९० हपु० २२.९० हपु० २२.८८ हपु० २२.८९ हपु० २२.८६ हपु० २२.८६ पुष्पचूड पुष्पमाल बलाहक मणिकांचन मणिवत्र मनु महाज्वाल महापुर ३२. ३४. ३५. महेन्द्र ३७. मानव ३८. माल्य ४०. ४१. ४२. वसुमत्क माल रुद्राश्व वंशालय वराह वस्वौक विजय विद्यु प्रभ विमल वीर ४७. विजयपुर विद्य प्रभ विशोका वीतशोका शत्रुजय शशिप्रभा शिवंकर वेणु ४८. ४९. वैजयन्त शत्रंजय ५०. Jain Education Intemational Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ : जैन पुराणकोश परिशिष्ट ३ क्र० सं० नाम मनर ५१. शिवमन्दिर ५२. श्रीनिकेत श्रीवास ५४. श्रीहर्म्य सधनंजय सिद्धार्थक सुगन्धिनी सुदर्शन सुरेन्द्रकान्त ६०. हसगर्भ सन्दर्भ मपु० १९.७९ मपु० १९.८४ मपु० १९.८४ मपु० १९.७९ मपु० १९.८४ मपु० १९.८० मपु० १९.८६-८७ मपु० १९.८५-८७ मपु० १९.८१ मपु० १९.७९ ५७. विजयार्घ पर्वत को दक्षिण श्रेणी के नगर (महापुराण के अनुसार) क०सं० माम नगर सन्दर्भ अपराजित मपु० १९.४८ अरजस्का मपु० १९.४५ अरिंजय मपु० १९.४१ कामपुष्पनगर मपु० १९.४८ किनामित मपु० १९.३२ किन्नरगीत मपु० १९.३३ क्षेमकर मपु० १९.५० क्षेमपुरी मपु० १९.४८ गगनचरी मपु०१९.४८-४९ १०. गरुडध्वज मपु० १९.३९ चतुमुखो मपु० १९.४ चन्द्रपुर मपु० १९.५२ चन्द्राभ मपु० १९.५० चित्रकूट मपु० १९.५१ जयन्ती मपृ० १९.५० नरगीत मपु० १९३४ नित्यवाहिनी मपु० १९.५२ नित्योद्योतिनी मपु० १९.५२ पश्चिमा मपु० १९.५२ २०. पुण्डरीक मपु० १९.३६ पुरंजय मपु० १९.४३ बहुकेतुक मपु० १९.३५ बहुमुखी मपु० १९.४५ २४. महाकूट मपु० १९.५१ २५. मेखलामनगर मपु० १९.४८ मेषकट मपु० १९.५१ क्र.सं. नाम नगर सन्दर्भ शशिप्रभ हपु० २२.९१ श्रीनिकेतन हपु० २२.८९ सारनिवह हपु० २२.८७ सिंह हपु० २२.८७ सौकर हपु० २२.८७ सौमनस हपु० २२.९२ हंसगर्भ हपु० २२.९१ ५८. हस्तिन हपु० २२.८७ हस्तिनायक हपु० २२.८७ ६०. हास्तिविजय हपु० २२.८९ विजया पर्वत के दक्षिण श्रेणी के नगर (हरिवंशपुराण के अनुसार) क.सं. नाम नगर सन्दर्भ अंगावर्त हपु० २२.९५ अमृतधार हपु० २२.१०० अरिंजय हपु० २२.९३ अर्कमूल हपु० २२.९९ असितपर्वत हपु० २२.९६ आनन्द हपु० २२.९३ आवर्तपुर हपु० २२.९६ आषाढ हपु० २२.९५ उदयपर्वत हपु० २२.९३ कालकेशपुर हपु० २२.९८ ११. किन्नरोद्गीतनगर हपु० २२.९८ १२. कुम्जरावर्त हपु० २२.९६ गन्धसमृद्ध हपु० २२.९४ १४. गौरिकट हपु० २२.९७ चक्रवाल हपु० २२.९३ चन्द्रपर्वत हपु० २२.९७ जम्बुशंकुपुर हपु० २२.१०० जलावर्त हपु० २२.९५ दिव्यौषध हपु० २२.९९ धराधर हपु० २२.९७ नभस्तिलक हपु० २२.९८ नाभान्त हपु० २२.९६ २३. पांशुमूल हपु० २२.९९ बहुकेतु हपु० २२.९३ २५. भूमिकुण्डल हपु० २२.१०० मगधसारनलक हपु० ०२.९९ १३. १३. १५. १५. १६. १८. २१. २२. Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट जैन पुराणकोश : ३७ ० सं० २७. २८. ی اس فلم ३१. فلم اسم ३४. नाम नगर रतिकूट रथनूपुर-चक्रवाल लोहार्गल वचाढय वज्रार्गल विचित्रकूट विजया विनयचरी विमुखी विमोच विरजस्का वैजयन्ती वैश्रवणकूट शकटमुखी शुक्रपुर श्रीधर श्रीप्रभ श्वेतकेतु संजयन्ती सिंहध्वज सुमुखी सूर्यपुर सूर्याभ हेमकूट ३७. क्र०सं० नाय नगर मण्डित मणिप्रभ महाकक्ष मातंगपुर मानव मेघकूट ३३. रत्नसंचय रथनूपुर रथपुर रम्यपुर लक्ष्मीकूट बृहद्गृह वैजयन्त शंखवन शकटामुख ४२. शतहृद शिवमन्दिर श्रीकूट सन्दर्भ मपु० १९.५१ मपु० १९.४६-४७ मपु० १९.४१ मपु० १९.४२ मपु० १९.४२ मपु० १९.५१ मपु० १९.५० मपु० १९.४९ मपु० १९.५२-५३ मपु० १९.४३ मपु० १९.४५ मपु० १९.५० मपु० १९.५१ मपु० १९.४४ मपु० १९.४९ मपु० १९.४० मपु० १९.४० मपु० १९.३८ मपु० १९.५० मपु० १९.३७ मपु० १९.५२-५३ मपु० १९.५२-५३ मपु० १९.५० मपु० १९.५१-५३ सन्दर्भ हपु० २२.९३ हपु० २२.९६ हपु०२२.९७ हपु० २२.१०० हपु० २२.९५ हपु० २२.९६ हपु० २२.९४ हपु० २२.९३ हपु० २२.९४ हपु० २२.९८ हपु० २२.९७ हपु० २२.९५ हपु० २२.९४ हपु० २२.९६ हपु० २२.९३ हपु०२२.९५ हपु० २२.९४ हपु० २२.९७ हपु० २२.९४ हपु० २२.९७ हपु० २२.९७ हपु० २२.९५ हपु० २२.९५ हपु० २२.९८ ४०. ४१. श्रीपुर ४७. क्र० सं० नाम नवी अम्बषेणा अरुणा अवन्तिकामा इक्षुमती उदुम्बरी उन्मग्नजला उशीरवती ऊर्मिमालिनी ऊहा * सिन्धुवृक्ष सुकक्ष ४८. सूर्यपुर स्वर्णनाभ ५०. हिमपुर नदियाँ क्र० सं० नाम देश करभवेगिनी करीरी कर्णकुण्डला कर्णरवा कलिंदकन्या कांचना २१. कागन्धु कालतोया २३. कालमही सन्दर्भ मपु० २९.८७ मपु० २९.५० मपु० २९.६४ मपु० २९.८३ मपु० २९.५४ मपु० ३२.२१ मपु० ४६.१४५-१४६ हपु० ५.२४१-२४२ मपु० २९.६२ मपु० २४.३४८-३५४ मपृ० ६२.३७९-३८० मपु० २९.५४ मपु० २९.६२ मपु० २९.४९, ६२ २०. सन्दर्भ मपु० २९६५ मपु० ३०.३७ पपु० ५३.१६१-१६३ पपु० ४०.४० मपु० ७०.३४६ मपु० ६३.१५८ मपु० २९.६४ मपु० २९.५० मपु० २९.५० मपु० २८.८७ मपु० ५९.११७-११९ मपु० २९.६२ मपु० २९.६३ मपु० २९.८६ २२. २४. कुब्जा ११. २५. ऐरावती औदुम्बरी कंजा कपीवती कुसुमवती कुहा कृतमाला कृष्णवेणा १४. २८. Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८: न पुराणकोश परिशिष्ट क.सं. नाम नवी ७०. ३० ७४. बाणा बीजा भीमरथी मदना महागन्धवती महेन्द्रका माल्यवती माषवती मुररा मूला मेखला ३५. ७८. ७९. यमुना ४१. ८५. ८६. ८७. ४७. ७८. क्र.सं. नाम नदी २९. केतम्बा कौशिकी क्रौंचरवा क्षीरोदा गजवती गन्धमादिनी गन्धावती गम्भीरा गोदावरी गोमती चण्डवेगा चर्मण्वती चित्रवती चुल्लितापी ४३. चूर्णी जम्बूमती तमसा तरंगिणी तापी ताम्रा तेला ५०. दमना दशार्णा दारवेणा धैर्या नक्ररवा नन्दा नालिका निःकुन्दरी ५८. निचुरा निमग्नजला निविन्ध्या निष्कुन्दरी नीरा पनसा पारा परिजा प्रमृशा प्रवेसो प्रहरा बहुवजा संदर्भ मपु० ३०.६७ मपु० २९.५० पपु० ४२.६१ मपु० ६३.२०७ हपु० २७.१२-१४ हपु० ५.२४२-२४३ मपु० ७०.३२२ मपु० २९.५० मपु० २९.६० मपु० २९.४९ मपु० ५९.११८-११९ मपु० २९.६४ मपु० २९.५८ मपु० २९.६५ मपु० २९.८७ मपु० २९.६२ मपु० २९.५४ हगु० ४६.४९ मपु० ३०.६१ मपु० २९.५० मपु० २९.८३ मपु० ३०.५९ मपु० २९.६० मपु० ३०.५५ मपु० २९.८७ मपु० २९.८३ मपृ० २९.६५ मपु० २९.६१ मपु० २९.६१ मपु० २९.५० मपु० ३२.२१ मपु० २९.६२ मपु० २९.६१ मपु० ३०.५६ मपु० २९.५४ मपु० २९.६१ मपु० २९.६९ मपु० २९.५४ मपु० २९.८६ मपु० ३०.५४ मपु० २९.६१ सन्दर्भ मपु० ३०.५४ मपु० २९.५२ मपु० ३०-३५ मपु० ३०.५९ मपु० ७१.३०९ मपु० २९.८४ मपु. २९.५९ मपु० २९.८४ मपु. ३०.५८ मपु० ३०.५६ मपु० २९.५२ मपु० ७०.३४६-३४७ मपु० ५९.२१२-२१८ मपु० ५८.५०-५३ मपु० २१.६-१४ मपु० २९.४९ मपु० २९.६१ मपु० २९.६५ मपु० ३०.६२ मपु० २९.८३ मपु० १७.२३ मपु० २९.६३ हपु० ११.७९ मपु० २९.६१ मपु० २९.५८ मपु० ७३.२२-२४ मपु० २९.८७ मपु० २९.६० मपु० २९.८४ मपु० २९.६४ मपु० २९.६५ मपु० २९.६३ मपु० ३२.२८-२९ मपु० २९.५४ मपु० २९.८४ मपु० २९.५२ मपु० २९.८३ मपु० २९.८६ मपु० २९.६५ मपु० २९.६२ मपु०१४.६९, १६.२२५ ४९. ५२. यूपकेसरिणी रजतमालिका रत्नमालिनी रथास्फा रम्या रेवा लांगलखातिका वंगा वरदा वसुमती वितता विशाला वृत्रवती वेगवती वेणा वेणुमती वैतरणी व्याघ्री शतभोगा शर्करावती शर्वरी शुक्तिमती शुष्कनदी शोणनद श्वसना सन्नोरा सप्तपारा समतोया ९५. ९७. ५९. १००. १०१. १०२. १०३. १०४. १०५. ६५. ० ~ १०७. १०८. ० ~ ११०. सरयू Jain Education Intemational Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट मेन पुराणकोश :३९ क०० नाम नवियाँ सिकतिनी ११२. सिन्धु ११३. सुप्रयोगा ११४. सुमागधी ११५. सुवर्णवती संदर्भ मपु० २९.६१ मपु० १६.२०९ मपु० २९.८६ मपु० २९.४९ मपु० ५९.११८-११९ ० सं० ११६. ११७. ११८. ११९. १२०. नाम नदियाँ सूकरिका हंसावली हरवती हरिद्वती हस्तिपानी संवर्भ मपु० २९.८७ पपु० १३.८२ मपु० ५९.११८-११९ हपु० २७.१२-१३ मपु० २९.६४-६६ सन्दर्भ सन्दर्भ ३७. पर्वत ० सं० नाम पर्वत गोरथ गोवर्द्धन गोशीर्ष चन्द्रोदय चित्रकूट चेदि जगत्पादगिरि ४०. जाम्बव तुंगवरक तुंगोगिरि तैराश्चिक दण्डक दर्दुराद्रि दिशागिरि ३८. .३९. ४१. ४३. ४४. ० सं० नाम पर्वत अंगिरेयिक अंजनगिरि अम्बरतिलक अम्बुदावर्त अष्टापद असुरघूपन आनंग आपाण्डर इष्वाकार उदक उपवास १२. ऊर्जयन्त ऋक्षवत ऋषिगिरि ऋष्यमूक कम्बल कर्कोटक कर्ण कवाटक २०. कांचनकूट किष्किन्ध २२. कुण्डलगिरि २४. ५५. कृष्णगिरि २७. कोलाहल २८. कौस्तुभ गदागिरि गन्धमादन दुर्गगिरि मपु० २९.७० पपु०८.३२४ मपु० ६.१३१ हपु० ६०.१९-२१ पपु० १५.७६ मपु० २९.७० मपु० २९.७० मपु० २९.४६ मपु० ५४.८६ हपु० ५.४६१ हपु० ५.४६१ पपु० २०.३६,५८ मपु० २९.६९ हपु० ३.५१-५३ मपु० २९.५६ मपु० २९.६९ हपु० २१.१२३ पपु० ६.५२९ मपु० २९.८९ हपु० ५.२००-२०१ मपु० २९.९० पपु० ६.८२ मपु० ५.२९१ मपु० ७३.१२ मपु० २९.६७ मपु० ३०.५० मपु० २९.५६ हपु० ५.४६० मपु० २९.६८ मपु० ७१.३०९ हपु० २१.१०२ पपु०८.२०१ 44554 ७.००G ी १७. मपु० २९.४६ मपु० ७०.४३८ मपु० २९.८९ मपु. ७५.३५९-३६५ मपु. ६८.१२६ मप० २९.५५ मपु० ६८.४६८ हपु०४४.७ मपु० ३०.४९ हपु० ६३.७२-७४ मपु० २९.६७ पपु० ४२.८७-८८ मपु० २९.६९ मपु० ७५.४७९ पपु० ८५.१३९ मपु० २९.८८-८९ पपु० ६.५१०-५११ मपु० ६३.३३ मपु० ५४.१२५-१२६ मपु० २९.८८ मपु० २९.५७-५८ मपु० ४५.५८ पपु० ८५.६३ पपु० ५.२५.२९ मपु० २९.८९ मपु० २९.६७ मपु० २९.६८ पपु० ७९.२७-२८ मपु० ७५.४५-४८ पपृ० ९.४०-४२ मपु० २९.७० मपु० १.५८ ४९. ५१. ५२. २१. ९३. किष्कु दुर्दर धरणीमौलि नन्दन नभस्तिलक नाग नागप्रिय नाभि निकुंज पंचगिरि पाण्ड्य वारियात्र पुष्पगिरि पुष्पप्रकीर्णक भीमकूट मणिकान्त मदेभ ५५. कुब्जक कूटाद्रि २६. ६२. गिरिकूट गुंज मधु Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० : जैन पुराणकोश परिशिष्ट क्र०सं० नाम पर्वत मनुजोदय ६६. मलय ६७. मलयगिरि महेन्द्र मानुषोत्तर माल्यगिरि मुनिसागर मेघरव ११४. मेरु ७५. ८०. ८१. रतिकर रतिशैल रत्लावर्त रथावर्त रामगिरि रुचकवर रैवतक वंशधर वनगिरि वनिसिंह वराह वरुण वलाहक वसन्त वासवन्त विजया विद्यु प्रभ विपुलाचल विमलकान्तार वेलन्धर वैडूर्य वैताड्य वैभार शंखशैल शत्रुजय शिखिभूघर शीतगुह श्री श्रीकटन श्रीनाग श्रीप्रभ सन्दर्भ मपु०७५.३०१-३०३ मपु० २९.८८ मपु० ३०.२६-२७ मपु० २९.८८ मपु० ५.२९१ मपु० ३०.२६-२७ मपु० ३०.५० मपु० ६३.९१-९५ पपु० ८.९०-९५ मपु० ४.४७-४८ हपु० ५.६७३-६७६ पपु० ५३.१५८-१६० मपु० ४७.२१-२२ मपु० ६२.१२६ हपु० ४६.१७-२३ हपु० ५.६९९-७२८ मपु०७१.१७९-१८१ पपु० १.८४ मपु० ६७.९०-१२१ वीवच० ४.२ मपु० ७२.१०८-११० हपु० २७.११-१४ पपु०८.२४ पपु० २१-२३-१२७ मपु० २९.७० मपु० १८.१७०-१७६ हपु० ५.२१२ मपु०१.१९६ मपु०५९.१८८ पपु० ५४.६४ मपु० २९.६७ हपु० ४२.१४-१९ मपु० २९.४६ मपु० ६३.२४६-२४८ मपु० ७२.२६७-२७० मपु० ७६.३२३-३२४ मपु० २९.८९ मपु० २९.९० मपु० २९.८९ मपु० ६६.२, १३-१४ मपु० १०.१-३ ० सं० नाम पर्वत संदर्भ श्रीशैल पपु० १९.१०६ सन्ध्यावर्त पपु०८.२४-२८ १०८. सर्वशैल मपु० ६२.४९६ सितगिरि मपु० २९.६८ ११.. सिद्धिगिरि मपु० ६३.३७-३९ १११. सीमन्त मपु० ६७.६१ ११२. सुमन्दर मपु० ३०.५० ११३. सुवेलगिरि पपु० ५४.६२-७१ सौम्य हपु०७०.२७९ स्फुरत्पीठ मपु० ६८.६४३-६४६ ह्रीमन्त मपु० ६२.२७४ महानदियाँ १. गंगा २. सिन्धु ३. रोह्या रोहित ४. रोहितास्या ५. हरित् ६. हरिकान्ता ७. सीता ८. सीतोदा ९. नारी १०. नरकान्ता ११. सुवर्णकूला १२. रूप्यकूला १३. रक्ता १४. रक्तोदा मपु० ६३.१९५-१९६, हपु० ५.१२३-१२४ जम्बूद्वीप के विदेहक्षेत्र में स्थित सोलह वक्षारगिरि १. चित्रकूट २. पद्मकूट ३. नलिनकूट ४. एकशैल ५. त्रिकूट ६. वैश्रवणकूट ७. अंजनात्म ८. आत्मांजन/अंजन ९. श्रद्धावान् १०. विजयवान् विजयावती ११. आशीविष १२. सुखावह १३. चन्द्रमाल १४. सूर्यमाल १५. नागमाल १६. मेघमाल देवमाल मपु० ६३.२०२-२०४, हपु० ५.२२८-२३५ बत्तीस विदेह (देश) एवं उनकी राजधानियाँ देश का नाम राजधानो १. कच्छा क्षेमा २. सुकच्छा क्षेमपुरी ३. महाकच्छा अरिष्टा/रिष्टा ४. कच्छकावती अरिष्टपुरी/रिष्टपुरी ५. आवर्ता खड्गा/खंगा ६. लांगला ७. पुष्कला औषधी ८. पुष्कलावती पुण्डरीकिणी ९. वत्सा सुसीमा १०. सुवत्सा कुण्डला११. महावत्सा अपराजिता ९७. ९८. १००. मंजषा १०२. १०४. Jain Education Intemational Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट जैन पुराणकोश : ४१ क्र.सं. १६. २०. २१. २२. २३. देश का नाम राजधानी १२. वत्सकावती प्रभंकरा १३. रम्या अंकावती १४. रम्यका पद्मावती १५. रमणीया शुभा १६. मंगलावती रत्नसंचया १७. पद्मा अश्वपुरी १८. सुपमा सिंहपुरी १९. महापमा महापुरी २०. पद्मावती/पद्मकावती विजयापुरी २१. शंखा अरजा २२. नलिना नलिनी २३. कुमुदा अशोका २४. सरिता वोतशोका २५. वप्रा विजया २६. सुवप्रा वैजयन्ती २७. महावप्रा जयन्ती २८. वप्रकावती अपराजिता २९. गन्धा चक्रा ३०. सुगन्धा खड्गा/खंगा ३१. गन्धावत्सुगन्धा/गन्धिका अयोध्या ३२. गन्धमालिनी अवध्या मपु० ६३.२०८-२१८, हपु० ५.२४४-२५२, २५७-२६६ विरजा ३१. नाम बन गोधा चन्दन चम्पक चारणचरित चारणप्रिय चैत्रवन ज्योतिर्वन दण्डकारण्य दशार्णक दुर्जय देवरमण धान्यकमाल नन्दन नन्दिघोष नागरमण नारिकेलवन निकुंज नील पाण्डुक. पुष्पवन प्रकीर्णक प्रियंखुखण्ड प्रीतिकर भद्रशाल भीमवन भुतरमण भूतवन मधुक मनोहर मन्दारुणारण्य महाकाल मेखला विजय वेत्रवन शल्लकी शिवंकर श्लेषमान्तक श्वेतवन संभूतरमण सप्तपर्ण समुच्चय सर्वतुक सम्बर्भ मपु०७०.४३१ मपु० ६२.४०९ मपु० २२.१६३ पपु० ६.१२६-१३१ पपु० ४६.१४१-१४३ मपु० ६९.५४ मपु० ६२.२२८ मपु० ७५.५५४ मपु० २९.४४ हपु० ४७.४३ हपु० ५.३६० मपु० ४६.९४ मपु० ५.१४४ मपु०७२.३-१४ हपु० ५.३०७ मपु० ३०.१३-१४ पपु० ८५.६३ मपु० ६७.४१ हपु० ५.३०८-३०९ पपु०७.१४६ पपु० ४६.१४३-१४६ मपु० ५९.२७४ मपु० ५९.२-७ मपु० ५.१८२ मपु० ५९.११६ हपु० ८५.३०७ मपु० ४७.६५-६७ मपु० ६२.८६-८७ मपु० ५२.५१ पपु०८.२४ हपु० ३३.१०२ पपु० ८.४५२-४५३ हपु० ६२.१३-१५ हपु० २१.१०२-१०३ पपु० ८५.१४७-१६३ मपु० ४६.१९-२० हपु० ४५.६९ मपु० ६६.४७ मपु० ६२.३७९-३८० हपु० ५.३९७-४२२ पपु० ४६.१४१ मपु० ५४.२१६-२१७ सन्दर्भ क्र०सं० नाम वन अक्षयवन २. अशोक ४३. ४४. ३. आन उपपाण्डक उपसीमनस उल्कामुख कपित्थ कालंजर कालक कालिगक ४८. पपु०५४.७२ मपु० ७५.६७६-६७७, २२.१८० मपु० २२.१६३, १८३ हपु० ५.३०९ हपु० ५.३०८ मपु० ७०.१५६ मपु० ७५.४७९ पपु० ५९.१२ मपु० ५९.१९६ मपु० २९.८२ मपु० ७४.३८९-३९० हपु० ६२.१५-६१ मपु० ७२.१२० मपु०७४.३०२-३०४ मपु० १२.५१-५३ ५०. ५२. कुटज कौशाम्ब क्षीरवन खण्डवन खदिर ५४. ५५. Jain Education Intemational Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ : जैन पुराणकोश परिशिष्ट ६१. १८. २०. २१. क्र० सं० नाम अस्त्र-शस्त्र १५. पाप बन्धन बर्हणास्त्र ब्रह्मशिरस् भास्करास्त्र भिण्डिमाल भृकुण्डी २२. भूतमुखखेट मनोवेग महाश्वसन माहेन्द्र मुद्गर मुसेल मोक्षण मोहन यमदण्ड राक्षस - रौद्रास्त्र २३. क० सं० नाग बन सन्दर्भ सल्लकी मपु० ५९.१९७ सहस्राम्र हपु० ४३.२००-२०२ ६०. सहायवन पापु० १७.७३-७४ सहेतुक मपु० ४८.३८-३९ सह्य मपु० ३०.२७ ६३. सालकानन मपु० १२.२२१ सिंहगिरि मपु० ७४.१६९ ६५. सिद्धार्थ मपु० १७.४१७ सिद्धि मपु०४८.७९ ६७. सुरनिपात मपु० ६३.१२७-१२९ बारह विभंग नदियां १. हृदा ग्राहवती २. हृदवती ३. पंकवती ४. तप्तजला ५. मत्तजला ६. उन्मत्तजला ७. क्षीरोदा ८. शीतोदा ९. स्रोतोऽन्तर्वाहिनी १०. गन्धमालिनी/गन्धमादिनी ११. फेनमालिनी १२. ऊमिमालिनी मपु० ६३.२०६-२०७, हपु० ५.२३९-२४३ सोलह सरोवर १. पद्म २. महापद्म ३. तिगिच्छ ४. केसरी ५. महापुण्डरीक ६. पुण्डरीक ७. निषध ८. देवकुरु ९. सूर्य १०. सुलस ११. विद्युत्प्रभ १२. नोलवान १३. उत्तरकुरु १४. चन्द्र १५. ऐरावत १५. माल्यवान मपु० ६३.१९७-१९९, हपु० ५.१२१ २४. २७. २८. २९, ३२. ३३. लकुट सन्दर्भ पपु० ७४.१०४ हपु० २५.४८ पपु० ७४.११०-१११ मपु० ५२.५५ हपु० ५२.५५ पपु० ७.९५-९६ पपु० १२.२५८ मपु० ३७.१६८ मपु० ३७.१६६ हपु० ५२.५० पपु० ७४.१००-१०१ मपु०४४.१४३ पपु० १२.२५७ हपु० २५.४८ हपु० २५.४८ हपु० २५.४८ हपु० ५२.५४ हपु० ३१.१२२-१२३ मपु० ३.१०५ पपु० १२.२५८ पपु०५४.३७ हपु० २५.४७-५० मपु० १.४३ मपु० ८.२३८ मपु० २९.६९ पपु० ६०.१३८ पपु० ७४.१११ हपु० २५.४९ हपु० ५.५८८ हपु० ५२.५३ मपु० ३१.७२ हपु० २५.४९-५० मपु० ४४.२२७ पपु० १९.४२-४३ पपु० ५८.३४ पपु० १२.२५८ हपु० ५२.५० हपु० २५.४६-४९ पपु० ७४.१०८ पपु० ७५.१८-१९ पपु०६०.१४० ३७. ३८. ३९. ४२. अस्त्र-शस्त्र ० सं० नाम अस्त्र-शस्त्र अंलिप आग्नेयास्त्र आष्टि इन्धन ऐशान कनक लांगल लांगूल लोकोत्सादन वन वनदण्ड वातपृष्ठ वारुण विघ्नविनायक विशल्यकरण वृत्तवताड्य वैरोचन व्यस्त्र व्रतसंरोहण शक्ति शतघ्नी शिलीमुख शल संवर्तक सर्वास्त्रच्छादन सहस्रकिरण सिद्धार्थ ४७. संदर्भ पपु० १२.२५७ पपु० १२.३२२-३२४ पपु० ६२.४५ पपु०७४.१०५ हपु० २५.४८ पपु० १२.२११ मपु० १०.५९ पपु० १२.३३२-३३६ पपु० १२.२५८ पपु० ६४.२७ हपु० २५.४८ पपु०७४.१०८-१०९ पपु० १२.३३२ हपु० ५२.५४ क्रकच ४८. ४९. '१०. गरुडास्त्र धन चण्डरवा जम्भण दन्दशूक नागास्त्र नारायण ५२. १३. ५४. Jain Education Intemational Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ऋ० सं० १. २. ३. ४. ५. ६. ७. ८. ९. १०. ११. १२. १३. १४. १२, ܬ ܐ ܬ ܘ ܘ ܘ १६. १७. १८. १९. २०. २१. २२. २३. २४. २५. २६. २७ २८. २९. ३०. ३५. ३२. ३३. 탕탕 १. २. नाम आभूषण अंगद अपवर्तिका अवतंश अवतंशिका कटक कटिसूत्र कण्ठक कण्ठमालिका कण्ठाभरण किरीट कुण्डली केपूर ग्रैवेयक चूडामणि नूपुर पट्ट्बन्ध मणिकुण्डल मणिमाध्यमा गणितोपान मुकुट मुक्ताहार मुद्रिका मेखला यष्टि रत्नावली रश्मिकलाप विजयच्छन्द शीर्षकयष्टि हारयष्टि हारलता हारवारी हेमजाल नाम नृप अनन्तरथ अनरण्य आभूषण संदर्भ मपु० ३.२७, ७.२३५ मपु० १६.४९-५१ ० ४३.२४ हपु० मपु० ३७.१५३ मपु० ३.२७, पपु० ३.१९३ पपु० ३.१९४ हपु० ६२.८ मपु० ६.८ मपु १५.१९३ मपु० ११.१३३ मपु० ३.२७ मपु० ३.७८ मपु० ३.२७ मपु० २९.१६७ मपु० ४.९४ मपु० ६.६३ मपु० १६.२३३ मपु० ९.१९० मपु० १६.५० मपु० १६.६५-६६ मपु० ३.९१ मपु० १५.८१ मपु० ७.२३५ मपु० ३.२७ मपु० १६.४६-४७ मपु० १६.४६ मपु० १६.५९ मपु० १६.५७ मपु० १६.५२ मपु० ७.२३१ इक्ष्वाकुवंश अकारादि क्रम में इस वंश के निम्न नृप हुए हैं सन्दर्भ मपु० १५.१९३-१९४ मपु० १५.१९४ मपु० ३०.१२७ पपु० २२.१६२ पपु० २२.१६० ० सं० ३. ४. ६. ७. ८. ९. १०. ११. १२. १३. १४. १५. १६. १७. १८. १९. २०. २१. २४. २५. २६. २७. २८. २९. ३०. ३१. ३२. ३३. ३४. ३५. ३६. ३७. ३८. ३९. नाम नृप अर्ककीति इन्द्ररथ ऋषभदेव ४०. ४१. ४२. ४३. ककुत्थ कमलबन्धु कीर्तिवर कुन्भक्ति कुबेर दत्त कृतवीर चतुर्वक्त्र जितशत्रु दशरथ २२. पृथु २३. दिननाथरच द्विरदरथ धरणीधर नघुष पद्मनाभ पुंजस्थल पुरन्दर प्रतिमन्यु प्रियमित्र ब्रह्मरथ भरत मान्धाता मृगेशदमन मेरु रघु रविमन्यु वज्रबाहु वसन्ततिलक विजय वीरसेन शतरथ शरभरथ समुद्रविजय सिंहरथ सिंहसेन सुकोशल सुरेन्द्रमन्यु सोमदेव चैनपुराणको ४३ संदर्भ पपु० २१.५६ पपु० २२.१५४-१५९ पपु० २१.५६ पपु० २२.१५८ पपु० २२.१५५-१५९ पपु० २१.१४० पपु० २२.१५७ पपु० २२.१५६-१५९ मपु० ६५.५६-५८ पपु० २२.१५३, १५९ हपु० २८.१४-२७ पपु० २२.१६२ पपु० २२.१५४-१५९. पपु० २२.१५७ पपु० ५.५९-६० पपु० २२.११३ मपु० ५४.१३० १७३ पपु० २२.१५८ पपु० २१.७७ ०२२.१५४-१५९ पपु० २२.१५५ मपु० ६१.८८ पपु० २२.१५४ पपु० २१.५६ पपु० २२.१५४ १५५ पपु० २२.१५७-१५८ हपु० ५०.७० पपु० २२.१५८ पपु० २२.१५५-१५९ पपु० २१.७७ पपु० २२.१५६-१५९. पपु० २१.७४ पपु० २२.१५५ पपु० २२.१५३-१५४ पपु० २२.१५७ मपु० ४८.७१-७२ पपु० २२.१४५ मपु० ६०.१६-२२ ० २१.१६४ पपु० पपू ० ० २१.७५ पपु० २१.५६ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ चैन पुराणकोश परिशिष्ट सन्दर्भ क्र० सं० नाम राजा सन्दर्भ ३२. ३४. हेमरथ धृतराज धृतराष्ट्र घृतवीर्य धृतव्यास धृतिकर घृतिकर धृतिकर घृतिक्षेम धृतिदेव घृतिदृष्पिट धृतिधु ति ४२. ४३. धृतिमित्र घृतेन्द्र ४६. ४७. क्र० सं० नाम नृप सौदास पपु० २२.१३१ हिरण्यकशिपु पपु० २२.१५८-१५९ हिरण्यगर्भ पपु० २२.१०२ ४७. पपु० २०.१५३ नोट:-सूर्यवंश और चन्द्रवंश इसी वंश की दो शाखाएं हैं। कौरव वंश अकारादि क्रम में इस वंश में निम्न राजा हुए हैंक्र०सं० नाम राजा सन्दर्भ अरहनाथ हपु० ४५.२१ अर्जुन हपु० ४५.३७ इन्द्रवीर्य हपु० ४५.२७ इभवाहन हपु० ४५.१४ कर्ण हपु० ४५.३७ कीति हपु० ४५ २५ कुन्थुनाथ हपु० ४५.२० हपु० ४५.९ कुरू हपु० ४५.१९ हपु० ४५.९ हपु० ४५.२५ १२. गंगदेव हपु० ४५.११ चन्द्र चिह्न पापु० ६.३ चारु हपु० ४५.२३ चारुपद्म हपु०४५.२३ चारुरूप हपु० ४५.२३ चित्र हपु० ४५.२७ चित्ररथ हपु. ४५.२८ जयकुमार हपु० ४५.८ जयराज हपु० ४५.१५ द्वीप हपु० ४५.३० २२. द्वीपायन हपु० ४५.३० २३. दुर्योधन हपु० ४५.३६ घाराग हपु० ४५.२९ २५. धृत हपु० ४५.२९ हपु० ४५.३२ धृततेज हपु० ४५.३२ धृतधर्मा हपु० ४५.३२ धृतपद्म हपु० ४५.१२ धृतमान हपु. ४५.३२ धृतयश हपु० ४५.३२ धृतोदय नकुल नरहरि नारायण पदम पद्मदेव पद्ममाल पद्मरथ ११. कुरुचन्द्र कुलकोति ५२. हपु० ४५.३३ हपु० ४५.३४ हपु० ४५.१२ हपु० ४५.३१ हपु०४५.९ हपु० ४५.११ हपु० ४.५१३ हपु० ४५.११ हपु० ४५.११ हपु० ४५.१३ हपु० ४५.१३ हपु० ४५.११ हपु० ४५.१२ हपु० ४५.३२ हपु० ४५.३८ हपु० ४५.१९ हपु० ४५.१९ हपु० ४५.२४ हपु० ४५.२५ हपु० ४५.२४ हपु० ४५.२४ हपु० ४५.३४ हपु० ४५.२९ हपु० ४५.१४ हपु० ४५.१२ हपु० ४५.२९ हपु० ४५.१९ हपु० ४५.१३ हपु० ४८.४८ हपु० ४५.१७ हपु० ४५.३७ हपु. ४५.३५ हपु० ४५.१४ हपु० ४५.११ हपु० ४५.२४ हपृ. ४५.२८ हपु० ४५.१५ हपु० ४५.२९ हपु० ४५.३७ हपु० ४५.१७ हपु० ४५.२६ हपु० ४५.२५ पाण्डु १४. ५७. ६२. २१. पारशर पृथु प्रतिष्ठित प्रतिसर प्रशान्ति प्रीतिकर बलि बृहध्वज भोम भीष्म भ्रमरघोष मन्दर महापद्म महारथ महाराज महासर युधिष्ठिर वरकुमार वसु वसुकीति २४. २६. घृत २८. ७०. २९. ७१. ७२. Jain Education Intemational Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट जैन पुराणकोश . ४५ क्र०सं० नाम राजा क०सं० नाम राजा सम्ब ७४. ७५. ११६. ७७. ११८. ११९. १२०. ७९. वसुन्धर वसुरथ वासव वासुकि विचित्र विचित्र विचित्रवीर्य विजय विदुर विश्व विश्वकेतु विश्वसेन विष्णु वीर्य onworoor Mor सुपम सुप्रतिष्ठ सुभौम सुमित्र सुवसु सुव्रत सुशान्ति सूर्य सूर्यघोष सोमप्रभ हरिघोष हरिध्वज हपु० ४५.२५ हपु० ४५.१२ हपु० ४५.२४ हपु० १८.१९ हपु० ४५.२६ हपु० ४५.११ हपु० ४५.३० हपु० ४५.२० हपु० ४५.१४ हपु० ४५.७ हपु० ४५.१४ हपु० ४५.१४ ८१. ८२. १२२. १२३. १२४. १२५. १२६. वृतरथ वृषध्वज वृषानन्त वैश्वानर व्रतधर्मा व्रात सन्दर्भ हपु० ४५.२६ हपु० ४५.२७ हपु० ४५ २६ हपु० ४५.२६ हपु० ४५.२७ हपु० ४५.२७ हपु० ४५.२७ हपु० ४५.१५ हपु० ४५.३४ हपु० ४५.१७ हपु० ४५.१७ हपु० ४५.१८ हपु० ४५.२४ हपु० ४५.२७ हपु० ४५.२८ हपु० ४५.२८ हपु० ४५.२८ हपु० ४५.१७ हपु० ४५.२९ हपु० ४५.११ हपु० ४५.३१ हपु० ४५.२९ हपु० ४५.३० हपु० ४५.१९ हपु०४५.१९ हपु० ४५.१८ हपु० ४५.३० हपु० ४५.१९ हपु०४५.३० हपु० ४५.९ हपु० ४५.१२ हपु० ४५.२६ हपु० ४५.२९ हपु० ४५.९ हपु० ४५.१६ हपु० ४५.३८ हपु० ४५.१७ हपु० ४५.२५ हपु० ४५.२३ हपु० ४५.१४ हपु० ४५.२१ ८. धातु शन्तनु ९७. शर शरद्वीप शशांकांक शान्तिचन्द्र शान्तिनाथ शान्तिभद्र शान्तिवर्धन शान्तिषेण शुभंकर श्रीचन्द्र १००. १०१. १०२. १०३. गान्धर्व-भेद-प्रभेद १. स्वरगत-गान्धर्व-भेव वैणस्वर मेव १. श्रुति २. वृत्ति ३. स्वर ४. ग्राम ५. वर्ण ६. अलंकार ७. मूर्च्छना ९. साधारण हपु० १९.१४७ शरीर स्वर-मेव १. जाति २. वर्ण ३. स्वर ४. ग्राम ५. स्थान ६. साधारणक्रिया ७. अलंकारविधि हपु० १९.१४८ २. पदगत-गान्धर्व-भेव १. जाति २. तद्धित ३. छन्द ४. सन्धि ५. स्वर ६. विभक्ति ७. सुबन्त ८. तिङ्न्त ९. उपसर्ग १०. वर्ण हपु० १९.१४९ ३. तालगत-गान्धर्व-भेद १. आवाप २. निष्काम ३. विक्षेप ४. प्रवेशन ५. शम्याताल ६. परावर्त ७. सन्नितपात ८. सवस्तुक ९. मात्रा १०. अविदार्य ११. अंग १२. लय १३. गति १४. प्रकरण १५. यति १६. गीति ( दो प्रकार की ) १७. मार्ग १८. अवयव १९. पादभाग २०. सपाणि हपु० १९.१५०-१५२ श्रीवसु श्रोव्रत श्रेयान् १०७. १०८. ११०. सनत्कुमार सहदेव सुकुमार सुकीर्ति सुचारु सतेजस ११२. ११३. ११४. सुदर्शन Jain Education Intemational Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ : जैन पुराणकोश क्रमांक १५. नाम पुराण पाण्डव पु० परिशिष्ट सम्दर्भ पर्व इलोक संख्या १९४ नाम दुःकर्ण दुःश्रव वरवंश अवकीणं दीर्घदर्शी सुलोचन उपचित्र विचित्र चारुचित्र शरासन २१. २२. २३. २५. दुर्मद स्वर भेद १. षड्ज २. ऋषभ ३. गान्धार ४. मध्यम ५. पंचम ६. चैवत ७. निषाद पपु० १७.२७७ हपु० १९.१५३ षड्जग्राम की जातियाँ १. षाड्जी २. आषभी ३. युवती ४. निषादजा ५. सुषड्जा ६. उदोच्यवा ७. षड्जकैशिकी ८. षड्जमध्या हपु० १९.१७४-१७५ षड्जग्राम की मूच्र्छनाएँ १. उत्तरमन्द्रा २. रजनी ३. उत्तरायता ४. शुद्धिषड्जा ५. मत्सरीकृता ६. अश्वक्रान्ता ७. आभिरुद्गता हपु १९.१६१-१६२ मध्यमाधित जातियाँ १. गान्धारी २. मध्यमा ३. गान्धारोदीच्यवा ४. पंचमी ५. रक्तगान्धारी ६. रक्तपंचमी ७. मध्यमोदीच्यमा ८. नन्दयन्ती ९. कर्मारवी १०. आन्ध्री ११. कैशिकी हपु० १९.१७५-१७७ मध्यम ग्राम को मूच्र्छनाएं १. सौवीरी २. हरिणाश्चा ३. कलोपनता ४. शुद्धमध्यमा ५. मार्गवी ६. पौरवी ७. हृष्यका ___ हपु० १९.१६३-१६४ ३२. पाण्डव पु० ३८. राजा धृतराष्ट्र और रानी गान्धारी के सौ पुत्र दुःप्रगाह युयुत्सु विकट ऊर्णनाभ सुनाभ नन्द उपनन्दक चित्रवाणि चित्रवर्मा सुवर्मा दुविमोचन अयोबाहु महाबाहु श्रुतवान् पद्मलोचन भीमबाहु भीमबल ससेन पण्डित श्रुतायुध सुवीर्य दण्डधार महोदर चित्रायुध निषंगी पाश वृन्दारक शत्रुजय शत्रसह सत्यसन्ध ४१. क्रमांक सन्दर्भ पर्व नाम पुराण पाण्डव पु० इलोक १८७-१९१ ४४. नाम दुर्योधन दुःशासन दुघर्षण रणधान्त समाध विद मर्वसह अनुविन्द ४८. ४९. सुभीम सुबाहु दुःसह दुःशल सुगात्र Jain Education Intemational Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट जैन पुराणकोश : ४७ सन्दर्भ पर्व श्लोक संख्या क्रमांक नाम नाम पुराण नाम पुराण पाण्डव पु० ५६. पाण्डव पु० २०५ सन्दर्भ पर्व श्लोक संख्या क्रमांक नाम ८ १९९ ९७. कांचन २०० ९८. सध्वज सुभुज १००. अरज or राक्षस वंश इस वंश में अकारादि क्रम में निम्न राजा हुए हैं uTor m क्र.सं. नाम राजा अनिल अनुत्तर अमृतवेग अरिमर्दन अरिसंत्रास अहंद्भक्ति आदित्यगति ७०. ७१. ७२. सुदुःसह सुदर्शन चित्रसेन सेनानी दुःपराजय पराजित कुण्डशायो विशालाक्ष जय दृढहस्त सुहस्त वातवेग सुवर्चस् आदित्यकेतु बह्वाशो निबन्ध विप्रियोदि कवची रणशौण्ड कुण्डधार धनुर्घर उग्ररथ भोमरथ शूरबाहु अलोलुप अभय रौद्रकर्मा दृढरथ अनादृष्ट कुण्डभेदी विराजी दीर्घलोचन प्रथम प्रमाथी दीर्घालाप वीर्यवान् १०. ११. १२. १३. १५. सन्दर्भ पपु० ५.३९७ पपु० ५.३९६ पपु० ५.३९३ पपु० ५.३९६ पपु० ५.३९८ पपु० ५.३९६ पपु० ५.३८ पपु० ५.३९४ पपु० ५.३९४ पपु० ५.३९४ पपु० ५.३९६ पपु० ५.३९५ पपु० ५.४०३ पपु० ५.३९७ पपु० ५.३९८ पपु० ५.४०३ पपु० ५.३९५ पपु० ५.३९७ पपु० ५.३९८ पपु० ५.३९६ पपु० ५.३९३ पपु० ५.३९८ पपु० ५.३९५ पपु० ५.३९६ पपु० ५.३९८ पपु० ५.३९६ पपु० ५.३९४ पपु० ५.३८८ पपु० ५.३९५ पपु० ५.३९८ पपु० ५.३९७ पपु० ५.३९४ इन्द्रजित् इन्द्रप्रभ उग्रश्री उद्धारक कीर्तिधवल गतप्रभ गृहक्षोभ धनप्रभ चकार चण्ड चन्द्रावर्त चामुण्ड चिन्तागति जितभास्कर त्रिजट द्विपवाह नक्षत्रदमन निर्वाणभक्ति पवि पूजार्ह प्रमोद बृहत्कांत बृहद्गति भानु २०. २७. ९१. ९२. दीर्घबाहु २९. ९४. . महावक्ष दृढवक्ष सुलक्षण कनक २०५ ३२. Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ : जैन पुराणकोश क्र० सं० ३३. ३४. ३५. ३६. ३७. ३८. ३९. ४०. ४१. ४२. ४३. ४४. ४५. ४६. ४७. ४८. ४९. ५०. ५१. ५२. ܐ ܐ ܐ ५३. ५४. ५५. ५६. ५७. ५८. ५९. ६०. ६१. ६२. ६३. ६४. ६५. ६६. ६७. ܘ नाम जा . १. २. ३. भानुगति भानुप्रभ भानुवर्मा भास्कराभ भीम भीमप्रभ भीष्म मनोरम्य मनोवेग मयूरवान् मरीच महाबाहु महारथ मारण माली मृगारिदमन मेघ मेघध्वन मोहन रवि राक्षस लंकाशोक वज्रमध्य श्रीग्रीव श्रीमाली संध्यान संपरिकीर्ति सिंहजपान सिंहविक्रम सुग्रीव सुभीम सुमुख सुरारि क्रमांक नाम वाद्य सुब्यक्त हरित्रीय अम्लातक अलाबु अवनद्ध वाद्य सन्दर्भ पपु० ५.३९३ पपु० ५.३९४ पपु० ५.३९४ पपु० ५.३९७ पपु० ५.३९५ पपृ० ५.३८२ पपु० ५.३९६ पपु० ५.३९७ पपु० ५.३७८ पपु० ५.३९७ पपु० १२.१९६ पपु० ५.३९७ पपु० ५.३९८ पपु० ५.३९६ प्रपु० ६.५२०-५६५ पपु० ५.३९४ पपु० ५३९४ पपु० ५.३९८ पपु० ५.३९५ पपु० ५.३९५ पपु० ५.३७८ पपु० ५.३९७ पपु०५.१९५ पपु० ५१.३९१ पपू० १२.२१२ पपु० १२.१९७ पपु० ५.३८९ पपु० ६०.२ पपु० ५.३९५ पपु० ५.३८९ पपु० ५.१४९ पपु० ५.३९२ पपु० ५.३९५ पपु० ५.३९२ पपु० ५.३९० सन्बभ पपु० ५८.२७-२८ मपु० १२.२०३ पपु० २४.२०-२१ क्रमांक नाम वाच ४. ५. ६. ७. ८. ९. १०. ११. १२. १३. १४. १५. १६. १७. १८. १९. २०. २१. २२. २३. २४. २५. २६. क्र० सं० १. २. ३. ६. ७. ८. ९. १०. ११. १२. १३. १४. आनक आनन्द भेरी आनन्द हट कम्ला EEEEEEEEEEEE काहल घण्टा पटह पणव भम्भा भेरी मर्दक मुरज मृदंग मेघघोषा लम्पाक वीणा शंख हक्का हुँकार हेतु जा अंकुर अंग अंगद अतीन्द्र अनघ रूि अमरप्रभ इन्द्रमत ऋक्षरज कपिनेतु किष्किन्ध खेचरानन्द वानर वंश अकारादि क्रम में इस वंश में निम्न राजा हुए हैं नाम राजा सन्दर्भ गगनानन्द गिरिनन्दन सन्दर्भ मपु० ७.२४२ मपु० १६.१९७ मपु० २४.१२ पपु० ८४.१२ मपु० १७.११३ मपु० १३.१३ मपु० १२.२०९ मपु० १३. १७७ मपु० २३.६३ मपु० २३.६२ पपु० ५८.२७ मपु० १२.१३ पपु० ५८.२७ पपु० ६.३७९ मपु० १२.२०७ मपु० ३.१७४ मपु० ४४.९३ पपु० ५८.२७ मपु० १२.१९९-२०० मपु० १३.१३ पपु० ५८.२७ पपु० ५८.२७ पपु० ५८.२८ पपु० ६०.५-६ पपु० १०.१२ पपु० १०.१२ पपु० ६.२-५ पपु० ६०.५-६ पपु० ६.३५२ पपु० ६.१६०-२०० पपु० ६.१६१ पपु० ७.७७ पु० ६.१९८-२०० पपु० ६.३५२-३५८ पपु० ६.२०५-२०६ पपु० ६. २०५ पपु० ६.२०५-२०६ परिशिट Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ lesssssse परिशिष्ट क्र० सं० १५. १६. १७. १८. १९. २०. २१. २२. २३. २४. २५. २६. २७. २८. २९. ३०, ३१. ३२. ३३. ३४. ३५. ३६. ३७. नाम राजा जाम्बव नन्दन नल नोल प्रतिचन्द्र प्रतिबल प्रसन्नकीर्ति प्रीतिकर बाली भूतस्वन मन्दर महेन्द्रसेन महोदधि मेरु रविप्रभ वज्रकंठ वज्रप्रभ विद्यालय ति श्रीकंठ सन्ताप समीरणगति सुपीव सूर्यरज अंगारिणी अग्निगति अग्निस्तम्भिनी अच्युता अजरा अणिमा अदर्शनी अनलस्तम्भिनी अन्तविचारिणी अप्रतिपातकामिनी अभोगिनी अमरा अयोषविजया अरिध्वंसी अवध्या अवलोकिनी अशय्याराविनी विद्या संदर्भ पपु० ५४.५८ पपु० ६०.५-६ पपु० ९.१३ पपु० ९.१ पपु० ६.३४९ पपु० ६.१९८-२०० पपु० १२.२०५-२१० पपु० ६०.५-६ पपु० ९.१-२० पपु० ७४.६१-६२ पपु० ६.१६१ पपु० १२.२०५ २०६ पपु० ६.२१८-२२५ पपु० ६.१६१ पपु० ६.१६१-१६२ पपु० ६.१५०-१६० पपु० ६.१६०-१६१ पपु० ६०.१४ पपु० ६.३-१५१ पपु० ६०.६-८ पपु० ६.१६१ पपु० ८.४८७ पपु० ६.५२०-५२४ हपु० २२.६१-६२ हपु० २२.६८ मपु० ६२.३९१ हपु० २२.६१-६५ पपु० ७.३२८-३३२ मपु० ५.२७९ पपु० ७.३२८-३३२ पपू० ७.३२८-३३२ हपु० २२.६७-६९ मपु० ६२.३९१-४०० मपु० ६२.४०० पपु० ७.३२८-३३२ पपु० ९.२०९-२१४ पपु० ७.३२९-३३२ पपु० ७.३२९-३३२ पपु० ७.३२९-३३२ हपु० २२.७०-७३ आकाशगामिनी आर्य कूष्माण्डवी आलोकिनी आवर्तनो मावेशिनी आशालिका इतिसंवृद्धि उत्पातिनी उदकस्तम्भिनी उष्णदा ऐशानी कामगामिनी कामदायिनी कामधेनु कामरूपिणी कालमुखो काली कुटिलाति कुभाण्डी कूष्माण्डगणमाता कौमारी कौवेरी क्षौम्या खगामिनी गदाविद्या गण्डवाहिनी गान्धारी गान्धारपदा गिरिदारिणी गौरी घोरा चपलवेगा चाण्डाली चिसोमवारी जयन्ती जया जगति जुम्भणी तपोरूपा तिरस्करिणी तयोस्तम्भिनी जिप जैन पुराणकोश : ४९ मपु० ६२.३९२, ४०० हपु० २२.६४ मपु० ७५.४२-४३ मपु० ६२.३९४ मपृ० ६२.३९३ पपु० १२.१३७-१४५ पपु० ७.३३३ हपु० २२.६९ मपु० ६२.३९१-४०० मपु० ६२.३९८ पपु० ७.३३०-३३२ पपु० ७.३२५, ३३२ पपु० ७.३२५ मपु० ६५.९८ ० ६२.३९१ मपु० हपु० २२.६६ हपु० २२.६६ पपु० ७.३३०-३३२ मपु० ६२.३९६ हपु० २२.६४ पपु० ७.३२६ पपु० ७.३३१-३३२ पपु० ७.३२६ पपु० ७.३३४ पापु० १५.१० मपु० ६२.१११-११२ हपु० २२.६५ मपु० १९.१८५ पपु० ७.३२८ मपु० ६२.३९६ पपु० ७.३२९ मपु० ६२.३९७ मपु० ६२.३९५ पपु० ७.३३१-३३२ हपु० २२.७०-७३ पपु० ७०.३३०-३३२ हपु० २२.६८ पपु० ७.३३३ पपु० ७.३२७ हपु० २२.६३ पपु० ७.३२८ हपु० २२.६७ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०: बैन पुराणकोश परिशिष्ट मानस्तम्भिनी मान्याप्रस्थापिनी मायरी माहेश्वरी मृतसंजीवनी मोचिनी युद्धवीर्य योगेश्वरी योधिनी रजोख्या राक्षस राजविद्या रूपरावर्तन रोहिणी लक्षपर्वा लघिमा लघुकरी वजोदरी वधकारिणी वधमोचन वशकारिणी त्रिपातिनी दण्डभूतसहस्रक दण्डाध्यक्षगण दशपविका द्विपळ धारिणी नागवाहिनी निर्वज्ञशाड्वला निवृत्ति पटविद्या पर्णलध्वी पाण्डकी प्रज्ञप्ति प्रतिबोधिनी प्रभावती प्रस्तर प्रहारसंक्रामिणी प्लबग बहुरूपिणी भगवती भद्रकाली भयसंभूति भानुमालिनी भास्करी भीति भुजंगिनी भुवना भोगिनी भ्रामरी मंगला मदनाशिनी मनस्तम्भनकारिणी मनोनुगामिनी मनोवेगा महाकाली महागौरी महाज्वाला महाप्रज्ञप्ति महावेगा महाश्वेता माक्षिकलक्षिता मातंगी हपु० २२.६८ हपु० २२.६५ हपु० २२.६५ हपु० २२.६७ हपु० २२.६७ हपु० २२.६८-७३ पापु० ४.५४ हपु० २२.६३ हपु० २२.६५ मपु० २४.१ मपु० ४७.२१-२२ हपु० २२.८० मपु० ६२.३९१ पपु० ६०.६०-६२ मपु० ६२.३९५ मपु० ७२.११४-११५ हपु० २२.७० मपु० ६८.३६३-३६४ मपु० १४.१४१ पपु० ७५.२२-२५ हपु० २२.६६ पपु० ७.३३० पपु० ७.३२५ पपु० ७.३३० पपु० ७.३३१ पपु० ७.३२९ पपु० ७.३२४ मपु०७५.४३२-४३६ मपु० ६२.२३० हपु० २२.७० पपु० ७.३२९ पपु० ७.३२६ पपु० ५१.२५-४० मपु० ६२.३९७ हपु० २२.६६ हपु० २२.६२ मपु० ६२.२७३ मपु० १९.१२ मपु० ६२.३९७ हपु० २२.६३ मपु० ७१.३६६-३७२ मपु० ६२.३९५ पपु० ७.१६३ मपु० ६२.३९३ हपु० २२.६३ पापु० २०.३०८ हपु० २२.७१ पपु०७.३३० मपु० ६७.२७१ पपु० ७.३३१-३३२ पपु० १९.६१ पपु०७.३२७ मपु० ७५.११६ मपु० ४.१३६ मपु० ६८.१५२ मपु०६२.३९७ हपु० २२ ६७ पपु० ७.३२६ मपु० ६२.३९७ पपु० ७.३२८ पपु० ७.३२६ मपु० ६२.२४२-२४६ पपु० ७.३३१ मपु० ६८.५०८-५०९ पपु० ७.३३०-३३२ पपु० ७.३२९-३३२ मपु० १६.१२२ पापु० ४.१४९-१५० पपु० ७.३३०-३३२ मपु० ६२.२३४-२३९ पपु० ७.३२७ मपु० ६२.३९४ मपु० ६२.३९६ हपु० २२.७१ मपु० ६२.३८७-३९१ मपु० ६२.३९८ मपु० ६२.३९८ मपु० ५.१०० हपु० २२.७१ हपु० २२.६७ मपु० ६२.३९६ पपु० ७.३३४ मपु० ६२.३९५ पपु० ७.३३१-३३२ वानर वाराही वारुणी वास्तुविद्या विच्छेदिनी विजया विद्याविच्छेदिनी विपलोदरी विपाटिनी विरलवेगिका विशल्यकारिणी विश्वप्रवेशिनी वेगावतो वैताली व्योमगामिनी व्रणरोहिणी शतपर्वा शतसंकुला शत्रुदमनी शर्वरी शान्ति Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट जैन पुराणकोश : ५१ शेमुषी शावर हपु०४६.९ शीतदा मपु० ६२.३९८ शीतवेताली मपु० ४७.५२-५४ शुभप्रदा मपु० ७.३२७ पपु १०.१७ श्रीमत्कन्या मपु० ६२.३९६ षडंगिका मपु० ६२.३८६ संग्रहणी मपु० ६२.३९४ संग्रामणी मपु० ६२.३९३ संवाहिनी पपु० ७.३२६-३३२ समावृष्टि पपु० ७.३२८ सर्वकामानन्दा पपु० ७.२६४-२६५ सर्वविद्याप्रकर्षिणी हपु० २२.६२ सर्वविद्याविराजिता हपु० २२.६४ सर्वार्थसिद्धा हपु० २२.७०-७३ सर्वाहा पपु० ७.३३३ सवर्णकारिणी हपु०२२.७१-७२ सहस्रपर्वा हपु० २२.६७-६९ सिंहवाहिनी मपु० ६२.२५-३० सिद्धार्था पपु० ७.३३४ सुरध्वंसी पपु० ७.३२६ सुरेन्द्रजाल मपु० ७२.११२-११५ सुविधाना पपु० ७.३२७ स्तम्भिनी पपु० ५२.६९-७० हपु० २२.६३ विद्याधर-जाति-भेद विद्याधर जातियाँ सन्दर्भ गौरिक हपु० २२.७७ मनु गान्धार मानव कौशिक भूमितुण्ड मूलवीर्यक हपु० २२.७९ शंकुल पाण्डुकेय हपु० २२.८० काल श्वपाकज मातंग हपु० २२.८१ पार्वतेय वंशलालय गण हपु० २२.८२ पांशुमूलिक हपु० २२.८२ वार्थमूल हपु० २२.८३ आर्य विद्यापर जातियाँगौरिक हपु २६.६ गान्धार हपु० २६.७ मानवपुत्रक हपु० २६.८ मनुपुत्रक हपु० २६.९ मूलवीर्य हपु० २६.१० अन्तर्भू मिचर हपु० २६.११ शंकुक हपु० २६.१२ कौशिक हपु० २६.१३ मातंग विद्याधर जातियाँमातंग हपु० २६.१५ श्मशाननिलय हपु० २६.१६ पाण्डुक हपु० २६.१७ कालश्वपाकी हपु० २६.१८ श्वपाकी हपु० २६.१९ पार्वतेय हपु० २६.२० वंशालय हपु० २६.२१ वार्भमूलिक हपु० २६.२२ विद्याष: बंश अकारादि क्रम में इस वंश के निम्न राजाओं के नामोल्लेख मिलते हैंक्र० सं० नाम राजा हपु० २२.१०७-१०८ अंशुमाल मपु० ५९.२८८-२९१ अर्कचूड पपु० ५.५३ अर्कतेज मपु० ६२.४०८ अश्वधर्मा पपु० ५.४८ अश्वायु पपु० ५.४८ अश्वध्वज पपु० ५.४८ आदित्यगति मपु० ४६.१४५-१४६ इन्दुगति पपु० २६.१३०, १४९ पपु० ५.५० उडुपालन पपु० ५.५२ १२. एकचूड पपु० ५.५३ १३. कनकपुंख मपु०७४.२२२ कनकोज्ज्वल मपु० ७४.२२१-२३२ १५. कालसंवर मपु० ७२.४८-६० कुरुविन्द मपु० ५.८९-९५ चन्द्र पपु० ५.५० हारी सन्दर्भ अंशुमान् हपु० २२.७८ Jain Education Intemational Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ : जैम पुराणकोश कमांक क्रमांक नाम राजा मृगोधर्मा मेघवाहन मेरु परिशिव संदर्भ पपु० ५.४९ मपु० ६३.२९-३० पपु० ६.१६१ पपु० ५.५२ पपु० ५.१७ पपु० ५.१६ पपु० ५.१६ पपु० ५.१६ पपु० ५.५१ पपु० ५.१८ २२. २३. ६४. २४. २५. २६. ६७. २८. पपु० ५.५३ ७१. ३२. ७४. ३४. ७५. ३५. ७७. ३७. ७८. नाम राजा चन्द्रगति चन्द्रचूड चन्द्र ज्योति चन्द्र रथ चन्द्र रथे चन्द्रवर्धन चन्द्रशेखर चन्द्राभ चन्द्रोदर चित्तवेग चित्रचल जाम्बव त्रिचड़ त्रिशिखर दृढ़रथ द्विचूड नमि नील नीलकण्ठ नीलवान् पंचशतग्रीव पद्मनिभ पद्ममाली पद्मरथ पुष्पोत्तर पूर्णचन्द्र पूश्चन्द्र प्रभंजन प्रहसित बलीन्द्र बालेन्दु निम्बोष्ठ भूरिचूड मणिग्रीव मणिभासुर मणिस्यन्दन मण्यंक मण्यास्य मन्दरमाली मयूरग्रीव महेन्द्र विक्रम सन्दर्भ पपु० २६.१३०-१४९ पपु० ५.३२ पपु० ५४.३४-३५ पपु० ५.१७ पपु० ५.५० पपु० २८.२४७-२५० पपु० ५.५० मपु० ६२.३६-३७ पपु० १.६७ हपु० २४.६९-७१ हपु० ३३.१३१-१३३ हपु० ४४४-१७ पपु० ५.५३ हपु० २५.४१ पपु० ५.४७ पपु० ५.५३ पपु० ५.१६ मपु० ६८.६२१-६२२ हपु० २३.७ हपु० २३.३-४ हपु०२५.२६ पपु० ५.४८ पपु० ५.४९ पपु० ५.४९ पपु० ६.७-५२ पपु० ५.५२ पपु० ५.५२ मपु० ६८.२७५-२७६ हपु० २२.१११-११२ मपु० ६६.१०९-१२५ पपु० ५.५२ पपु० ५.५१ पपु० ५.५३ पपु० ५.५१ पपु० ५.५१ पपु० ५.५१ पपु० ५.५१ पपु० ५.५१ मपु० ८.९२-९३ मपु० ५७.८७-८८ मपु० ७१.४१९-४२३ ३८. ७९. रक्तोष्ठ रत्नचित्र रत्नमाली रलरथ रत्नवत्र लम्बिताघर वन वजचूड वनजंघ वञ्चजातु वजदंष्ट्र वज्रध्वज वज्रपाणि वज्रबाहु वज्रभृत् वजवान् वजसंज्ञ वज्रसेन वजांक वज्रांगद वज्राभ वज्रायुध वचास्य वह्निजटो वह्नितेज वायुरथ वासव विद्यामन्दिर विद्युत्प्रभ विद्युत्वान् विद्यु दंष्ट्र विद्यु दृढ विद्यु दाभ विधु द्वेग विद्युन्मुख विराधित ८०. ८३. पपु० ५.१७ पपु० ५.१९ पपु० ५.१८ पपु० ५.१८ पपु० ५.१९ पपु० ५.१९ पपु० ५.१८ पपु० ५.१९ पपु० ५.१९ पपु० ५.१७ पपु० ५.१९ मपु० ६३.१४-१५ पपु० ५.१९ पपु० ५.१८ पपु० ५.१९ पपु० ५.५४ पपु० ५.५४ मपु० ४६.१४७-१४८ मपु० ७.२८-३१ पपु० ६.३५७-३५८ पापु० १७.४३-४५ पपु०५.२० पपु०५.२० पपु० ५.२५ पपु० ५.२० पपु० ५.२० पपु० ५.२० पपु० ९.३७-४४ पपु० ५.२० पपु० ५.५२ ८६. k ५४. ५५. वैद्युत व्योमेन्दु ८. मह ९९. Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट सन्दर्भ १०५. १०६. १०. ११. ~ सुव्रज १४. ~ ~ जैन पुराणकोश : ५३ सन्दर्भ पपु० ५.८, हपु० १३.११ पपु० ५.७. हपु० १३.१० पपु० ५.७, हपु० १३.१० पपु० ५.८, हपु० १३.११ पपु० ५.६, हपु० १३.९ पपु० ५.६, हपु० १३.९ पपु० ५.८, हपु० १३.११ पपु० ५.६, हपु० १३.९ पपु० ५.४, हपु० १३.८ पपु० ५.६, हपु० १३.९ पपु० ५.५, हपु० १३.८ पपु० ५.८, हपु० १३.११ पपु० ५.७, हपु० १३.१० पपु० ५.७, हपु० १३.१० पपु० ५.६, हपु० १३.९ पपु० ५.६, हपु० १३.११ पपु० ५.८, हपु० १३.११ पपु० ५.८, हपु० १३.११ पपु० ५.६, हपु० १३.९ पपु० ५.६, हपु० १३.९ पपु० ५.४, हपु० १३.७. पपु० ५.५, हपु० १३.८ पपु० ५.६, हपु० १३.९ पपु० ५.७, हपु० १३.१० पपु० ५.७, हपु० १३.१० क्र० सं० नाम नृप ५. अविध्वंस इन्द्रधुम्न उदितपराक्रम गरुडांक तपन तेजस्वी प्रभु प्रभूततेज बल भद्र महाबल मृगांक १७. महेन्द्रजित् महेन्द्रविक्रम रवितेज विभु वीतभी २२. वृषभध्वज शशी सागर सितयस सुबल २७. २८. २९. सूर्य क्रमांक नाम राजा शशांकास्य पपु० ५.५० १०१. संभिन्न मपु० ६२.२४१-२६४ १०२. सहस्रग्रीव मपु० ६८.७-१२ १०३. सहस्रार पपु० ७.१-२ १०४. सिंहकेतु पपु० ५.५० सिंहयान पपु० ५.४९ सिंहसप्रभु पपु० ५.४९ १०७. सुकुण्डली मपु० ६२.३६१-३६२ १०८. सुवक्त्र पपु० ५.२० १०९. पपु० ५.१८ ११०. हरिचंद पपु० ५.५२ हरिवाहन मपु० ७१.२५२-२५७ ११२. हरिवेग पपु० ९३.१-५७ हिरण्याभ पपु० १५.३७-३८ ११४. पपु० ६.५६४-५६५ समवसरण-तृतीय कोट-द्वार-नाम पूर्वी द्वार के आठ नाम १. विजय २. विश्रुत ३. कीर्ति ४. विमल ५. उदय ६. विश्वघुक ७. वासवीर्य ८. वर हपु० ५७.५७ दक्षिण द्वार के आउ नाम १. वैजयन्त २. शिव ३. ज्येष्ठ ४. वरिष्ठ ५. अनघ ६. धारण ७. याम्य ८. अप्रतिष हपु० ५७.५८ उत्तरी द्वार के आठ नाम १. अपराजित २. अख्यि ३. अतुलार्थ ४. अमोषक ५. उदय ६. अक्षय ७. उदक ८पर्णकामक हपु० ५७.६० पश्चिम द्वार के आठ नाम १. जयन्त २. अमितसागर ३. सार ४. सुधाम ५. अक्षोभ्य ६. सुप्रभ ७. वरुण ८. वरद हपु० ५७.५९ सूर्यवंश | आदित्यवंश अकारादि क्रम में इस वंश में निम्न राजा हुए हैंक० सं० नाम नृप सन्दर्भ १. अतिबल पपु० ५.५, हपु० १३.८ अतिवीर्य पपु० ५.७, हपु० १३.१० अमृतबल पपु० ५.५, पु० १३.८ ४. अर्ककीति पपु० ५.४, हपु० १३.७ ११३. २४. सुभद्र सुवीर्य इन राजाओं के नाम पद्मपुराण और हरिवंशपुराण में समान क्रम में आय है। हरिवंशपुराण में बलांक को बल, सितयश को स्मितयस और उदितपराक्रम को उदितप्रभ कहा गया है। सोमवंश इसे चन्द्रवंश और ऋषिवंश भी कहा गया हैइस वंश में चार राजाओं का नामोल्लेख हुआ है । आचार्य रविषेण और आचार्य जिनसेन ने चारों राजाओं के नाम तथा उनका क्रम समान दर्शाया है। राजाओं के नाम अकारादि क्रम में निम्न प्रकार है सन्दर्भ क्रमांक नाम राजा भुजबली , महाबल ३. सुबल सोमयश पपु० ५.१२, हपु० १३.१७ पपु० ५.१२, हपु० १३.१६ पपु० ५.१२, हपु० १३.१७ पपु० ५.११, हपृ० १३.१६ Jain Education Intemational Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ : जैन पुराणकोश परिशिष्ट क्र० स० नाम राजा महीदत्त ४२. मुनिसुव्रत ४३. यदु य ४६. ४७. रत्नमाल लब्धाभिमान वज़बाहु वप्रभु ५०. ५२. ५३. ५४. कुणिम हरिवंश इस वंश में अकारादि क्रम में निम्न राजा हुए हैंक० सं० नाम राजा सन्दर्भ अन्धकवृष्णि हपु० १८.१० अपराजित हपु० १८.२५ अमर हपु० १७.३३ अभिचन्द्र हपु० १७.३५ अयोधन हपु०१७.३१ अरिष्टनेमि हपु० १७.२९-३१ इन्द्रगिरि पपु० २१.८ इलावर्धन पपु० २१.४९ उग्रसेन हपु० १८.१६ ऐलेय हपु० १७.३ कालयवन हपु० १८.२४ हपु० १७.२२ गिरि हपु०१५.५९ १४. चरम हपु० १७.२५-२६ १५. जनक पपु० २१.५४ जरासन्ध हपु० १८.२२ दक्ष पपु० २१.४८, हपु० १७.२ दीपन हपु० १८.१९ दीर्घबाहु हपु० १८.२ दृढ़रथ हपु० १८.१८ देवगर्भ हपु० १८.२० देवदत्त हपु० १७.३५ देवसेन हपु० १८.१६ २४. नभसेन हपु० १७.३४ नरपति हपु० १८.७ २६. नरवर हपु० १८.१८ निहतशत्रु हपु० १८.२१ पुलाम पपु० २१.५०, हपु० १७.२४-२५ २९. बिन्दुसार हपु० १८.२० बृहद्ध्वज हपु० १७.५९ बृहद्रथ हपु०१८.१७ भद्र हपु० १७.३५ ३३. भान हपु० १८.३ ३४. भीम हपु० १८.३ भूतदेव पपु० २१.९, हपु० १५.५९ भोजकवृष्णि हपु० १८.१० ३७. मत्स्य हपु० १७.२९ महागिरि मपु० ६७.४२०, पपु० २१.८ महारथ पपु० २१.५० ४०. महासेन हपु० १८.१६ वसु वसुगिरि वसुदेव वासवकेतु विन्दुसार वीर शंख शतधनु शतपति शाल शूर श्रीवर्धन श्रीवृक्ष संजय संजयन्त संभूत सागरसेन सुखरथ सुबाहु सुभानु सुमित्र सन्दर्भ हपु० १७.२८ पपु० २१.२४, हपु० १६.१७ हपु० १७.३२ हपु० १८.६ हपु० १८.३ पपु० २१.९ हपु० १८.३ हपु० १८.२ हपु० १८.१९ हपु० १७.३७ पपु० २१.८, हपु० १५.५९ हपु० १८.१४ पपु० २१.५२ हपु० १८.१९-२० हपु० १८.८ हपु० १७.३५ हपु० १८.२० हपु० १८.२१ हपु० १७.३२ हपु० १८.८ पपु० २१.४९ पपु० २१.४९ हपु० १७.२८ पपु० २१.५० पपु० २१.९ हपु० १८.१९ हपु० १८.१९ हपु० १८.२ हपु० १८.३ मपु० ६७.२०-२१ पपु० २१.१०, हपु० १५.६१-६२, १८.१९ हपु० १८.१७ पपु० २१.३, हपु०१६-५५ हपु० १८.९ पापु० ७.१३०-१३१ मपु० ७०.९२-९४ हपु० १७.३२-३३ पपु० २१.२-७, हपु० १५.५७-५८ मपु० ७०.७४-७७, पपु० १५.५९ हपु० १७.३४ मपु० ६७.४२०, पपु० २१.८ २१. २२. २३. २५. २८. सुवसु सुव्रत ३१. ३२. सुवीर सूर सूरसेन ७६. सूर्य ३५. हरि ३६. हरिगिरि ३८. हरिषेण हिमगिरि Jain Education Intemational Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jalin Education international For Private & Personal use only www.janelibrary.org