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________________ प्रकाशकीय जैन संस्कृति के सम्यक्ज्ञान के लिए जैन-पुराण साहित्य एक महत्वपूर्ण साधन है । जैन पुराणों में तिरेसठ शलाका पुरुषों के माध्यम से सांस्कृतिक मूल्यों को अभिव्यक्त किया गया है । संस्कृति के भौतिक और आध्यात्मिक पक्षों को उजागर करना जैन-पुराणों को अभीष्ट रहा है । भौतिक समृद्धि की सीमाओं को दर्शाते हुए आध्यात्मिक समृद्धि की उच्चता दर्शायी गई है । अतः मोक्ष परम पुरुषार्थ है। मोक्ष पुरुषार्थ की सिद्धि के लिए जैन पुराणों की देन अनुपम है । प्रस्तुत पुस्तक 'जैन पुराणों का सांस्कृतिक अवदान' में दार्शनिक एवं धार्मिक सामग्री संकलित की गई है। संस्कृति का उत्कर्ष या अपकर्ष भौगोलिक स्थिति पर भी आश्रित होता है । अतः ऐसी सामग्री का संकलन भौगोलिक सामग्री के अन्तर्गत किया गया है। अपने अतीत के जाने बिना वर्तमान को दिशा प्राप्त नहीं होती है । अतः इस पुस्तक में ऐतिहासिक सामग्री भी प्रस्तुत की गई है। यह निःसन्देह कहा जा सकता है कि उच्चतम जीवन मूल्यों की प्राप्ति में सहायक जैन-पुराणों के सांस्कृतिक अवदान के महत्त्व से जब तक समाज अपरिचित रहेगा नर से नारायण बनने के भाव उसमें कभी उत्पन्न नहीं हो सकेंगे। आशा है प्रस्तुत रचना के अध्ययन मनन और अनुशीलन से समाज लाभान्वित होगा। प्रसन्नता का विषय है कि जैन संस्कृति को जानने समझने के लिए एक ऐसी पुस्तक के सृजन की आवश्यकता अनुभव की गई जिसमें जैन संस्कृति के दार्शनिक, धार्मिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक सभी पक्षों की आवश्यक जानकारी संकलित हो । संस्थान के इसी प्रयल का फल है प्रस्तुत पुस्तक-जैन पुराणों का सांस्कृतिक अवदान । यह पुस्तक 'जैन पुराण कोश' का एक अंश है। इसके सम्पादन में प्रो० प्रवीणचन्द्रजी जैन एवं डॉ० दरबारीलालजी कोठिया ने अथक परिश्रम किया है, उनके हम आभारी हैं । जैनविद्या संस्थान में कार्यरत विद्वान् डॉ. कस्तूरचन्द सुमन का सहयोग अत्यन्त प्रशंसनीय रहा है । डॉ० गोपीचन्द पाटनी पूर्व संयोजक जैन विद्या संस्थान समिति श्रीमहावीरजी ज्ञानचन्द्र खिन्दका पूर्व संयोजक जनविद्या संस्थान समिति श्रीमहावीरजी डॉ० कमलचन्द सोगाणी संयोजक जैनविद्या संस्थान समिति श्रीमहावीरजी Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002719
Book TitleJain Purano ka Sanskrutik Aavdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Culture
File Size4 MB
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