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________________ परिशिष्ट सन्दर्भ १०५. १०६. १०. ११. ~ सुव्रज १४. ~ ~ जैन पुराणकोश : ५३ सन्दर्भ पपु० ५.८, हपु० १३.११ पपु० ५.७. हपु० १३.१० पपु० ५.७, हपु० १३.१० पपु० ५.८, हपु० १३.११ पपु० ५.६, हपु० १३.९ पपु० ५.६, हपु० १३.९ पपु० ५.८, हपु० १३.११ पपु० ५.६, हपु० १३.९ पपु० ५.४, हपु० १३.८ पपु० ५.६, हपु० १३.९ पपु० ५.५, हपु० १३.८ पपु० ५.८, हपु० १३.११ पपु० ५.७, हपु० १३.१० पपु० ५.७, हपु० १३.१० पपु० ५.६, हपु० १३.९ पपु० ५.६, हपु० १३.११ पपु० ५.८, हपु० १३.११ पपु० ५.८, हपु० १३.११ पपु० ५.६, हपु० १३.९ पपु० ५.६, हपु० १३.९ पपु० ५.४, हपु० १३.७. पपु० ५.५, हपु० १३.८ पपु० ५.६, हपु० १३.९ पपु० ५.७, हपु० १३.१० पपु० ५.७, हपु० १३.१० क्र० सं० नाम नृप ५. अविध्वंस इन्द्रधुम्न उदितपराक्रम गरुडांक तपन तेजस्वी प्रभु प्रभूततेज बल भद्र महाबल मृगांक १७. महेन्द्रजित् महेन्द्रविक्रम रवितेज विभु वीतभी २२. वृषभध्वज शशी सागर सितयस सुबल २७. २८. २९. सूर्य क्रमांक नाम राजा शशांकास्य पपु० ५.५० १०१. संभिन्न मपु० ६२.२४१-२६४ १०२. सहस्रग्रीव मपु० ६८.७-१२ १०३. सहस्रार पपु० ७.१-२ १०४. सिंहकेतु पपु० ५.५० सिंहयान पपु० ५.४९ सिंहसप्रभु पपु० ५.४९ १०७. सुकुण्डली मपु० ६२.३६१-३६२ १०८. सुवक्त्र पपु० ५.२० १०९. पपु० ५.१८ ११०. हरिचंद पपु० ५.५२ हरिवाहन मपु० ७१.२५२-२५७ ११२. हरिवेग पपु० ९३.१-५७ हिरण्याभ पपु० १५.३७-३८ ११४. पपु० ६.५६४-५६५ समवसरण-तृतीय कोट-द्वार-नाम पूर्वी द्वार के आठ नाम १. विजय २. विश्रुत ३. कीर्ति ४. विमल ५. उदय ६. विश्वघुक ७. वासवीर्य ८. वर हपु० ५७.५७ दक्षिण द्वार के आउ नाम १. वैजयन्त २. शिव ३. ज्येष्ठ ४. वरिष्ठ ५. अनघ ६. धारण ७. याम्य ८. अप्रतिष हपु० ५७.५८ उत्तरी द्वार के आठ नाम १. अपराजित २. अख्यि ३. अतुलार्थ ४. अमोषक ५. उदय ६. अक्षय ७. उदक ८पर्णकामक हपु० ५७.६० पश्चिम द्वार के आठ नाम १. जयन्त २. अमितसागर ३. सार ४. सुधाम ५. अक्षोभ्य ६. सुप्रभ ७. वरुण ८. वरद हपु० ५७.५९ सूर्यवंश | आदित्यवंश अकारादि क्रम में इस वंश में निम्न राजा हुए हैंक० सं० नाम नृप सन्दर्भ १. अतिबल पपु० ५.५, हपु० १३.८ अतिवीर्य पपु० ५.७, हपु० १३.१० अमृतबल पपु० ५.५, पु० १३.८ ४. अर्ककीति पपु० ५.४, हपु० १३.७ ११३. २४. सुभद्र सुवीर्य इन राजाओं के नाम पद्मपुराण और हरिवंशपुराण में समान क्रम में आय है। हरिवंशपुराण में बलांक को बल, सितयश को स्मितयस और उदितपराक्रम को उदितप्रभ कहा गया है। सोमवंश इसे चन्द्रवंश और ऋषिवंश भी कहा गया हैइस वंश में चार राजाओं का नामोल्लेख हुआ है । आचार्य रविषेण और आचार्य जिनसेन ने चारों राजाओं के नाम तथा उनका क्रम समान दर्शाया है। राजाओं के नाम अकारादि क्रम में निम्न प्रकार है सन्दर्भ क्रमांक नाम राजा भुजबली , महाबल ३. सुबल सोमयश पपु० ५.१२, हपु० १३.१७ पपु० ५.१२, हपु० १३.१६ पपु० ५.१२, हपु० १३.१७ पपु० ५.११, हपृ० १३.१६ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002719
Book TitleJain Purano ka Sanskrutik Aavdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Culture
File Size4 MB
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