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________________ परिशिष्ट जैन पुराणकोन : २५ अर्धनारीश्वर इक्ष्वाकुकुलनन्दन चतुरस्रध त्रिधोत्थित परमतच्छिद परमतत्त्व परमतेजस परमप्रशममीयुष परमरूप परमर्षि पुरुषस्कन्ध २५.७३ २५.७५ २५.७७ २५.७७ २५.७२ २५.८६ २५.८६ २५.८७ २५.७९ २५.८७ २५.८५ २५.७६ साधु-मूलगुण निर्ग्रन्थ साधु के २८ मूलगुण बताये गये है । वे हैं महाव्रत समिति ५ इन्द्रिय निरोध आवश्यक ६ केशलोंच १ भू-शयन १ अदन्त-पावन १ अचेलता १ अस्नान १ स्थित भोजन १ एकभुक्त १ २८ मपु०१८,७०-७२, ६१.११९-१२० पंच महावत १. अहिंसा २. सत्य ३. अचौर्य ४. ब्रह्मचर्य ५. अपरिग्रह हपु० २.११६-१२१, ५८.११६ पंच-समिति १. ईर्या २. भाषा ३. एषणा ४. आदाननिक्षेपण ५. प्रतिष्ठापना हपु० २.१२२-१२६ पंचेन्द्रिय-निरोष १. स्पर्शन २. रसना ३. घ्राण ४. चक्षु ५. श्रोत इन पांच इन्द्रियों का निरोध । मपु०१८.७०-७२ पडावश्यक १. सामायिक २. स्तुति ३. वन्दना ४. प्रतिक्रमण ५. प्रत्याख्यान ६. कायोत्सर्ग हपु० ३४.१४२-१४६ सिद्ध परमेष्ठी के आठ गुण १. अनन्त सम्यक्त्व २. अनन्त दर्शन ३. अनन्त ज्ञान ४. अनन्त और अद्भुत वीर्य ५. सूक्ष्मत्व ६. अवगाहनत्व ७. अव्याबाधत्व ८. अगुरुलघुत्व मपु० २०.२२३-२२४ हरिवंशपुराण में अव्याबाध गुण को अव्याबाध अनन्तसुख कहा गया है। हपु ३.७२-७४ पारिवाज्यक्रिया के सूत्रपद १. जाति २. मूर्ति ३. उसमें रहनेवाले लक्षण ४. अंगसौन्दर्य ५.प्रभा६ . मण्डल ७. चक्र ८. अभिषेक ९. नाथता १०. सिंहासन ११. उपधान १२. छत्र १३. चामर १४. घोषणा १५. अशोकवृक्ष १६. निधि १७. गृहशोभा १८. अवगाहन १९. क्षेत्रज्ञ २०. आज्ञा २१. सभा २२. कीर्ति २३. वन्दनीयता २४. वाहन २५. भाषा २६. आहार २७. सुख मपु० ३९.१६२-१६५ कुळाचल १. हिमवान् २. महाहिमवान् ३. निषध ४. नील ५. रुक्मी ६. शिखरी महापुराण में 'महामेरु' को सातवां कुलाचल कहा है। मपु० ६३.१९३, हपु० ५.१५ क्षेत्र १. भरत २. हैमवत ३. हरिवर्ष ४. विदेह ५. रम्यक ६. हरण्यवत् ७. ऐरावत् मपु० ६३.१९१-१९२, हपु० ५.१३-१४ गजदन्त पर्वत १. गन्धमादन २. माल्यवान् ३. विद्युत्प्रभ ४. सौमनस्य मपु० ६३.२०४-२०५, हपु० ५.२१०-२१२ प्राम अचल अन्तिक अरुण पलाल पर्वत मपु० ६२.३३५ पपु० ५.२८७-२८८ मपु० ३५.५-७ मपु० ६.१२६-१२७ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002719
Book TitleJain Purano ka Sanskrutik Aavdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Culture
File Size4 MB
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