________________
२४ । न पुराणकोश
परिशिष्ट
१२०
m
११३
१२८
११०
१२८
क्र० सं० नाम ८९७. सहस्राक्ष ८९८. सहिष्णु ८९९. साक्षी ९००. साधु ९०१. सार्व ९०२ सिद्ध ९०३. सिद्धशासन ९०४. सिद्धसंकल्प ९०५. सिद्धसाधन ९०६. सिद्धसाध्य ९०७. सिद्धारमा ९०८. सिद्धान्तविद् ९०९. सिद्धार्थ ९१०. सिद्धि ९११. सुकृती ९१२. सुखद ९१३. सुखसादभूत ९१४. सुगत ९१५. सुगति ९१६. सुगुप्त ९१७. सुगुप्तात्मा ९१८. सुघोष ९१९. सुतनु ९२०. सुत्वा ९२१. सुत्रामपूजित
wrror
~ ~ ~ ~ ~ 9mamM9.9M..
१२७
११८
१९९
श्लोक सं० ० सं० नाम श्लोक सं० ऋ० सं० नाम श्लोक सं० ० सं० नाम श्लोक सं० १२१ ९२२. सुदर्शन १८१ ९४७. सूक्ष्म १०५ ९७२. स्वभू
२०१ १०९ ९१३. सुधी १२५, १७१ ९४८, सूक्ष्मदर्शी
२१६ ९७३. स्वयंज्योति १४१ ९२४. सुधौतकलधौतश्री २०० ९४९. सूनृतपूतवाक् २१२ ९७४. स्वयंप्रभ १००, ११८ १६३ ९२५. सुनय १७४ ९५०. सूरि
९७५. स्वयंबुद्ध ११९ ९२६. सुनयतत्त्वविद् १४० ९५१. सूर्यकोटिसमप्रभ १९७
९७६. स्वयंभू १०० १०८ ९२७. सुप्रभ १९७ ९५२. सूर्यमूर्ति
९७७. स्वयंभूष्णु १०८ ९२८. सुप्रसन्न १३२ ९५३. सोममूर्ति
९७८. स्वर्णाभ १४५ ९२९. सुभग १८४ ९५४. सौम्य
९७९. स्वसंवेद्य १४५ ९३०. सुभुत १४० ९५५ स्तवनाह
९८०. स्वस्थ १०८ ९३१.सुमुख १७८ ९५६. स्तुतीश्वर
९८१. स्वामी १४५ ९३२. सुमेधा १७२ ९५७. स्तुत्य
९८२. स्वास्थ्यभाक १०८ ९३३. सुयज्वा १२७ ९५८. स्थविर
९८३. हतदुर्नय १०८ ९३४. सुरूप १८४ ९५९. स्थविष्ठ
९८४. हर १४५ ९३५. सुवर्णवर्ण
१९७ ५६०. स्थवीयान् १७४ ९३६. सुवाक् १२० ९६१. स्थाणु
९८५. हवि
९८६. हाटका ति २०० १७८ ९३७. सुविधि
१२५ ९६२. स्थावर २१७ ९३८. सुव्रत १७१ ९६३. स्थास्तु
९८७. हिरण्यगर्भ
२०३ २१० ९३९ सुश्रुत १२० ९६४. स्थयान्
९८८. हिरण्यनाभि ११७. १२० ९४०.सुश्रुत् १२० ९६५. स्थेष्ठ
९८९. हिरण्यवर्ण १७८ ९४१. सुसंवृत १४० ९६६. स्नातक
__९९०. हृषीकेश १३४ १४० ९४२. सुस्थित १८५ ९६७. स्पष्ट
___९९१. हेतु
१४३ १७८ ९४३. सुस्थिर २०३ ९६८. स्पष्टाक्षर
२०१ ९९२. हेमगर्भ २१० ९४४. सुसौम्यात्मा १२८ ९६९. स्रष्टा
१३३ ९९३. हेमाभ
१९८ १२७ ९४५. सुहित १७८ ९७०. स्वतन्त्र
१२९ ९९४. हेयादेयविचक्षण २१४ १२७ ९४६. सुहृत १७८ ९७१. स्वन्त
१२९ वे नाम जिनकी पुनरावृत्ति हुई है नाम
श्लोक सं १४. विभव
११७, ४२४ अधिप १५७, १८९
वृषभ
१००,१४३ अनर्घ १७२, १८६
१०८, २१२ अनन्त १०९, १६०
सुधी
१२५, १७१ अनामय ११४,२१७
स्वयंप्रभ
१००, ११८ जगज्जयोति
११४, २०७ महापुराण पर्व २५ (श्लोक ६६ से ९७ तक) में भी आचार्य जिनसेन जगत्पति
१०४, ११८ ने तीर्थकर वृषभदेव के अनेक नामों का उल्लेख किया है। इनमें कुछ दमीश्वर
१११, १७८
माम अर्हन्तों के गुणों पर आधारित है और कुछ नाम ऐसे हैं जिनका निर्मल
१२८, १८४
"सहस्रनाम" में भी उल्लेख हो चुका है। कुछ नाम दार्शनिक तत्त्वों पर परंज्योति
आधारित है। इस अंश का गहराई से अध्ययन करने पर ऐसे भी नाम ११०, १११
प्राप्त होते है जिनका सहस्रनाम स्तोत्र में नामोल्लेख नहीं किया गया है परम
१४२, १६५
तथा अर्हन्त-गुणों पर भी आधारित नहीं हैं । ऐसे नाम हैंपरमानन्द
१७०, १८९ क्रमांक
नाम महोदय
पर्व एवं लोक संख्या १५१,१५३
अकाय
२५.९१ योगविद् १२५, १८८
अन्धकान्तक
२५.७३
१८१
क्रमांक
-
GK
GO
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org