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श्रुत-भेद
अंग
पूर्व
परिशिष्ट
जैन पुराणकोश : १७ वर्तमान रुद्र
अग्रायणीयपूर्व के कर्मप्रकृति प्राभूत के योगद्वार १. भीमावलि २. जितशत्रु ३. रुद्र ४. विश्वानल
१. कृति
२. वेदना ३. स्पर्श ४. कर्म ५. सुप्रतिष्ठक ६. अचल ७. पुण्डरीक ८. अजितन्धर ५. प्रकृति ६. बन्धन ७. निबन्धन ८. प्रक्रम ९. अजितनाभि १०. पीठ ११. सात्यकिपुत्र
९. उपक्रम १०. उदय ११. मोक्ष १२. संक्रम हपु० ६०.५३४-५३६ १३. लेश्या १४. लेश्याकर्म १५. लेश्यापरिणाम १६. सातासात वर्तमान नारद
१७. दीर्घह्रस्व १८. भवधारणा १९. पुदगलात्मा २०. निधत्ता१. भीम २. महाभीम ३. रुद्र ४. महारुद्र
निधत्तक ५. काल ६. महाकाल ७. चतुर्मुख ८. नरवक्त्र
२१. सनिकाचित २२. अनिकाचित २३. कर्मस्थिति २४. स्कन्ध ९. उन्मुख हपु०६०.५४८-५४९
हपु० १०.८२-८६
श्रुतज्ञान के भेद अंग-प्रविष्ट
१. पर्याय २. पर्याय-समास ३. अक्षर ४. अक्षर-समास ५. पद
६. पद-समास
७. संघात १. आचारांग २. सूत्रकृतांग ३. स्थानांग
८. संघात-समास ९. प्रतिपत्ति ४. समवायांग ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति अंग ६. ज्ञातृधर्मकथांग
१०. प्रतिपत्ति-समास ११. अनुयोग १२. अनुयोग-समास ७. श्रावकाध्ययनांग ८.अन्तकृदशांग ९. अनुत्तरोपपादिकदशांग
१३. प्राभृत-प्राभृत १४. प्राभृत-प्राभृत-समास १५. प्राभूत १०. प्रश्नव्याकरणांग ११. विपाकसूत्रांग १२. दृष्टिवादांग
१६. प्राभृत समास १७. वस्तु
१८. वस्तु समास हपु० २.९२-९५ १९. पूर्व २०. पूर्व समास
हपु० १०.१२-१३
चूलिका के भेद १. उत्पादपूर्व २. अग्रायणीयपूर्व ३. वीर्यप्रवादपूर्व
१. आकाशगता हपु० १०.१२३-१२४ २. जलगता हपु० ६१.१२३ ४. अस्तिनास्तिप्रवादपूर्व ५. ज्ञानप्रवादपूर्व
३. मायागता हपु० १०.१२३ ४. रूपगता हपु० १०.६१,१२३
६. सत्यप्रवादपूर्व ७. आत्मप्रवादपूर्व ८. कर्मप्रवादपूर्व ९. प्रत्याख्यानपूर्व
५, स्थलगता हपु० १०.१२३-१२४ १०. विद्यानुवादपूर्व ११. कल्याणपूर्व १२. प्राणावायपूर्व
श्रोता-भेद एवं गुण १३. क्रियाविशालपूर्व १४. लोकबिन्दुपूर्व हपु० २.९७-१००
श्रोताओं की विविधता अंश बाह्यश्रुत १. सामायिक २. स्तवन ३. वन्दना ४. प्रतिक्रमण
उपमानों का नाम निर्देश करके उनके समान स्वभाव-भेद दर्शाकर ५. वैनयिक ६.कृतिकर्म ७. दशवकालिक ८. उत्तराध्ययन
श्रोता के चौदह भेद बताये गये हैं। उपमानों के नाम निम्न प्रकार है९. कल्पव्यवहार १०. कल्पाकल्प ११. महाकल्प १२. पुण्डरीक
१. मिट्टी-शास्त्र श्रवण काल में कोमल परिणामी पश्चात् कठोर
परिणामी। १३. महापुण्डरीक १४. निषद्यका हपु० २.१०२-१०५, १०.१२५-१२६
२. चलनी सारतत्त्व के परित्यागी, निःसार ग्राही ।
३. बकरा-श्रृंगार का वर्णन सुनकर श्रृंणानरूप परिणामी । दृष्टिवादांग के भेव
४. विलाव-धर्मोपदेश सुनकर भी क्रूर-प्रवृत्ति-धारो । १. परिकर्म २. सूत्र ३. अनुयोग ४. पूर्वगत
५. तोता-धर्मोपदेश के शब्द-मात्र ग्राही । ५. चूलिका .
हपु० १०.६१
६. बगुला ब्राह्म से भद्र परिणामी अन्तरंग से कुटिल परिणामी । परिकर्म के भेद
७. पाषाण-उपदेश से अप्रभावित श्रोता । १. चन्द्रप्रज्ञप्ति २. सूर्यप्रज्ञप्ति ३. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति
८. सर्प-सदुपदेश का भी जिन पर कुप्रभाव पड़ता है। ४. द्वीपसमुद्रप्रज्ञप्ति ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति
हपु० १०.६२
९. गाय-कम सुनकर अधिक लाभ लेनेवाली । अग्रायणीयपूर्व को चौवह वस्तुएं
१०. हंस-सारग्राही । १. पूर्वान्त २. अपरान्त
३. ध्रुव
११. भैंसा-उपदेश ग्राह्यता कम, कुतर्को से सभा शोभित करने ४. अध्रुव ५. अच्यवनलब्धि ६. अध्रुव सम्प्रणधि वाला। ७. कल्प/महाकल्प ८. अर्थ
९. भौमावय
१२. फूटा घड़ा-जिसके हृदय में उपदेश न ठहरे । १.० सर्वार्थकल्पक ११. निर्वाण
१२. अतीतानागत
१३. गंस-उपदेश ग्रहण न करके सभी को व्याकुलित करनेवाला । १३. सिद्धि १४. उपाध्याय
हपु० १०.७७-८० १४. जॉक केवल अवगुण ग्राही। मपु० १.१३८-१३९
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