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(७) के अनुवाद को तत्सम्बन्धी ग्राम, तीर्थ, नगर और जिनालय के नाम से तथा देवकुलिका की क्रम-संख्या से शीर्षाङ्कित किया गया है। अर्थात् प्राम, तीर्थ, नगरवार; सेरी, मोहला
और मन्दिरवार तथा देवकुलिकाओं की संख्यावार उनको वर्गीकृत किया गया हैं। ऐसा करने का उद्देश्य पाठकों को सुविधा देना तो है ही, परन्तु कार्य को सुगम बनाना प्रथम है और अतः अनिवार्य है। लेखों की भाषा, शैली और लिपि-- __ लेखों में वर्णित विषय गद्य में है। समूचे पुस्तक में केवल ५ श्लोक आये हैं । लेखों की भाषा संस्कृत होते हुए भी अशुद्धता लिये हुए है, परन्तु निश्चित और संमत है और वाक्यविन्यास की दृष्टि से अप्रौढ़ है, फिर भी व्यवहारिक है। वाक्यों में शब्दों का क्रम कलापूर्ण नहीं है परन्तु, सोद्देश है। अशुद्ध, अप्रौढ, कलाविहीन होते हुए भी भाषा निश्चितसी हो गई है। ग्यारहवीं शताब्दि के और सतरहवीं अठा. रहवीं शताब्दि के लेखों की भाषाओं में कोई अन्तर नहीं दिखाई देता । निम्न उदाहरण देखिये:
लेखाङ्क ३३१-सं० १.११ आषाढसुदि ३ शनीश्वरे सनहमार्या नयणादेवी पुत्र वसीया भार्या वयजलदेवी पुत्र लाखसिंह तेन श्रीपार्श्वयुग्म कारितः, बृहद्गच्छीयपरमानन्द. सरिशिष्यश्रीयक्षदेवसूरिभिः प्र० ।
"Aho Shrut Gyanam"