________________
हैन पत्रकारत्व प्रो. भानावत के समय में विभिन्न विषयों पर दस विशेषांक प्रव शित हुए। पाठकों द्वारा सभी विशेषांको का अभिनन्दन किया गया, पाठकों की प्रतिक्रिया सकरात्मक रुप से प्राप्त हुई, जिसका प्रकाशन जिनवाणी अंको में किया गया। वे विशेषांक निम्नलिखित है (१) श्रावक धर्म, विशेषांक - १९७०, ( २ ) साधना विशेषांक - १८७१, (३) ध्यान विशेषांक
१९७२, (४) जैन संस्कृति और राजस्थान १९७५, (५) कर्मसिद्धांत विशेषांक - १९८४, (६) श्रावक धर्म और समाज १९८५, (७) अपरिग्रह विशेषांक - १९८६, (८) आचार्य श्री हस्तीमल जी म.सा. श्रद्धांजलि१९९९, (९) आचार्य श्री हस्तीमल जी म.सा. : व्यक्तित्व एवं कृतित्व१९९२. (१०) अहिंसा विशेषांक - १९९३ ।
द्वितीय कालक्रम में जिनवाणी को विचारों से संवर्धित करने के लिए कई लेखकों का सहयोग रहा, जिनके नाम इस प्रकार है - पं. चैनसुखदास, श्री गजेन्द्र मुनि, पुष्कर मुनि, श्री कन्हैयालाल लोढा, डॉ. देवेन्द्र कुमार जैन, श्री यज्ञदत्त 'अक्षय' मुनि, श्री लक्ष्मीचन्दजी, श्री गजेन्द्र मुनि, डॉ. फर्नेण्डो बेल्लिनी फिल्लीपी, श्री चांदमल कर्णावट, श्रीमती मंजुला बम्ब, श्री रमेशमुनि शास्त्री, आचार्य हस्तीमलजी म. एवं आचार्य हीराचन्द्र जी म. के प्रवचन, श्री रणजीतसिंह कूमट, श्री पी. एम. चोरडिया, श्री पारदर्शी, श्रीमती रतन चोरडिया, श्री राजमल डांगी, श्री रामनिवास शर्मा 'मयंक', श्री सौभाग्यमल जैन, श्री मीठालाल मधुर, श्री दिलीप धींग, साध्वी मैनासुन्दरी, डॉ. शान्ता भानावत, श्री नन्दलाल मारु, श्री सम्पतराज डोसी, श्री अमरचन्द नाहटा, श्री गजसिंह राठौड, श्री महावीर कोटिया, श्री मोतीलाल सुराना आदि ।
डॉ. भावानत को सम्पादन कार्य में अपनी पत्नी श्रीमती शान्ता भानावत का पूर्ण सहयोग मिलता था । उनकी मृत्यु के पश्चात् 5-6 महिने तक उन्होंने जिनवाणी को सम्पादित किया, वे भी दिवंगत हो गई तो उनके पुत्र डॉ. संजीव भानावत ने इस कार्य को सितम्बर 1993 तक देखा।
૧૯૮
-
-
-