Book Title: Jain Patrakaratva
Author(s): Gunvant Barvalia
Publisher: Veer Tattva Prakashak Mandal

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Page 201
________________ न पत्रहारत्व ANIMAL गो-रक्षा, लौकागच्छ की पट्टावली, कथापरक कविता, पाक्षिकपत्र, बुद्धिपरीक्षा आदि विषय जुड़े। बालवाणी का सम्पादन श्री नरेन्द्र कुमार भानावत करते थे। जिनवाणी के कई अंको में नन्दीसूत्र का परिचय प्रकाशित हुए।। संत-परिचय का भी क्रम निरन्तर बना रहा, जिनमें आचार्य श्री सोहनलाल जी म., तपस्वी श्री बालचन्द्र जी महाराज, श्री केशरीमुनि, श्री भोजराज जी महाराज, मुनि श्री जीवराज जी, मुनि श्री हरिकिशन जी, मुनि श्री धर्मदास जी आदि नाम उल्लेखनीय हैं। जून 1958 के जिनवाणी के अंक में "18 सेर सोना किस प्रकार बनाया गया" शीर्षक से एक आर्यकारी लेख प्रकाशित हुआ, जिसमें संवत 1999 चैत्र मास में ऋषिकेश के पंजाब निवासी श्री कृष्णपाल शर्मा रसवैद्य द्वारा पारद से सुवर्ण बनाने की प्रक्रिया को बताया गया है। जिनवाणी के प्रथम कालकम्र में सम्पादन की बागडोर कई हाथों मे गई। डॉ. फूलचन्द जी जैन के पश्चात् पं. रतनलाल संघवी, श्री चम्पालाल कर्नावट, श्री केशरीकिशोर नलवाया, पं. शशिकान्त झा, पं. बसन्त जैन शास्त्री, पुनः श्री चम्पालाल कर्नावट, श्री चांदमल कर्नावट नवम्बर 1967 तक इस क्रम में सम्पादक बदलते गए। प्रारम्भिक अवस्था में जिनवाणी पत्रिका को प्रतिष्ठित करने का दायित्व बहुत बड़ा था, परन्तु श्रावकों ने धैर्य एवं निष्ठा से विघ्न-बाधाओं एवं विपदाओं का दृढता से सामना किया। परिणामस्वरुप जैनधर्म, दर्शन, साहित्य और संस्कृति की मासिक पत्रिका 1943 से निरन्तर चलती रही। प्रारम्भिक अवस्था में पत्रिका के प्रचार-प्रसार में श्री दौलतरुपचन्द जी भण्डाजी का बहुत बड़ा योगदान रहा। श्री मोतीलाल जी मूथा-सातारा, श्री गुलराज जी अब्बानी-जोधपुर, श्री केवलमल जी लोढा - जयपुर एवं श्री सरदारमल जी भण्डारी ने भी अच्छा सहयोग किया। द्वितीय कालक्रम जिनवाणी के सम्पादन का 1967 से 26 वर्षों तक निर्बाध रुप से राजस्थान विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के प्रोफेसर तथा हिन्दी, ૧૯૬

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