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સાવાવ છે પતિત
1 तार्किक जगत् मे कार्य-कारण का सिद्धान्त सार्वभौम माना जाता है, किन्तु स्यादवाद के अनुसार यह सार्वभौम नियम नही है । कार्य-कारण का नियम स्थूल जगत् में घटित होता है। सूक्ष्म जगत् का अपना स्वतंत्र नियम है । कर्मशास्त्रीय भाषा मे कर्म के विपाक या विलय से जो घटित होता है उसमे कार्यकरण का नियम खोजा जा सकता है । स्थूल परमाणु स्कंधो के परिवर्तन मे भी कार्य-कारण का नियम लागू होता है । स्वाभाविक परिवर्तन (पारिणामिक भाव ) मे कार्य-कारण का नियम लागू नहीं होता । एक काले व का परमाणु निश्चित हो जाता है । प्रश्न हो सकता है कि उसके वर्णकोई कारण नही है । उसके यह उस परमाणु का स्वगत श्रर्थ-पर्याय (एक क्षरणवर्ती पर्याय) कार्य-कारण के नियम से को प्रत्येक क्षण मे बदलना पडता है । वर्तमान क्षण का अस्तित्व दूसरे क्षण मे तभी सुरक्षित रहता है जब वह दूसरे क्षण के अनुरूप अपने आपको ढाल लेता है । अर्थपर्याय को अभिव्यक्ति देने वाला एक प्रसिद्ध श्लोक है
अवधि के वाद दूसरे वर्ण का परिवर्तन का कारण क्या है ? व्याख्या नहीं की जा सकती ।
परिवर्तन के हेतु की नियम है । वस्तुका मुक्त होता है । द्रव्य
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द्रव्य अनादि और अनन्त है | उसमे प्रतिक्षरण स्व-पर्याय वैसे ही उत्पन्न और विलीन होते रहते है जैसे जल मे तरगें ।
'अनादिनिधने लो, स्वपर्याया प्रतिक्षणम् । उत्पद्यन्ते विपद्यन्ते, जलकल्लोलवज्जले
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कार्य-कारण के विषय मे नयदृष्टि की भीमासा इस प्रकार है
* नैगम, संग्रह, व्यवहार और व्यजनपर्यायग्राही ऋजुसूत्र - ये चार नय कार्य-कारण के सिद्धान्त को स्वीकृति देते हैं ।
शब्द, समभिरूढ चोर एवभूत ये तीन नय कार्य-कारण के सिद्धान्त को मान्य नही करते | इनके अनुसार कार्य अपने स्वरूप से उत्पन्न होता है । उसकी किसी दूसरे से उत्पत्ति मानना संगत नही है । जो अपने स्वरूप से उत्पन्न हो चुका है, उसकी दूसरे से उत्पत्ति मानने का कोई अर्थ नही होता । कारण यदि कार्य से अभिन्न हो तो फिर कार्य और कारण का सवध ही नही होता | इसलिए कार्य अपने स्वाभाविक परिणमन से ही उत्पन्न होता है, किसी दूसरे कारण से नहीं 112
कसायपाहुड, भाग 1, पृष्ठ 319
एद योगम-सगह-ववहार-उजुसुदारण, तत्य कज्जका रणभावसभवादो। तिण्ह सद्दयारण रण केरण वि कसा, तत्य कारणेण विणा कज्जुप्पत्तीए । हवा श्रदइएण भावेरण कसाओ । एद रोगमादिचउण्ह गयारण । तिह सहायारण पारिणामिए भावेण कसा । कारणेण विरणा कज्जुप्पत्तीदी |