Book Title: Jain Nyaya ka Vikas
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Nathmal Muni

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Page 164
________________ ( 148 ) 2 अनन्तकात (ई० 9 वी से 11 वी के वीच) ये प्रसिद्ध ताकिक प्राचार्य थे। उन्होंने वृहत्ममिद्धि औ. लघुमर्वसिद्धि नामक ग्रन्यो की रचना की है । प्रशस्ति के अभाव मे इनके विषय का कोई विवरण प्राप्त नही है। माना जाता है कि इनके वृहत्मवजमिद्धि का प्रभाव प्रभावकृत न्यायकुमुदचन्द्र ५२ ५। है । 3 अनन्तवीर्य (ई० 10 ताब्दी) ये विभद्र के शिप्य तथा श्रवणबेलगोला के निवासी थे। ये आचार्य अकलक के ग्रन्यो के प्रवान टीकाकार थे । इन्होने 'सिद्धिविनिश्चय' टीका लिखी। ये अकलक के अन्यो के मर्मज्ञ श्री• यथार्यजाता माने जाते थे। आचार्य प्रभाचन्द्र ने भी प्राचार्य अनन्तवीर्य की विद्वत्ता और तलपगिता के विषय मे लिखा है-मन अकलक की तत्वनिरूपण पद्धति का तथा अनन्तवीर्य की उक्तियो का सैकडो वार अभ्यास कर ममझने मे सफलता पाई है। प्राचार्य अलिक के मूट प्रकरणो को यदि अनन्तवीर्य के वचनप्रदी५ प्रगट नही करते तो उन्हे कान समझ सकता था ? 4. अनन्तवा (द्वितीय) (ई० 11 वी शती) उन्होने 'अमेयरत्नमाला' की रचना को। इम ५२ आचार्य प्रभाचन्द्र के प्रमेयकमलमार्तण्ड तथा न्यायकुमुदचन्द्र का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है । 5 अन्यतिलक (ई० 14 वी) सम्भव है ये मोमतिलकसूरी के गुरु भाई हो। ये उपाध्याय पदवी पर सुशोभित थे। उन्होंने 'न्यायालकारवृत्ति', तर्कन्यायसूत्र टीका, ' पपस्यन्यायतक વ્યાચા' આદિ અને પ્રન્ય નિલે ! 5 अमयदेव (ई० 10-11 वी) ये चन्द्रकुलीय और चन्द्रगच्छ के प्रद्य नसूरी के शिप्य ये । इनके विद्याशिष्यो एक दीक्षा-शियो का परिवार बहुत वडा और अनेक भागो मे विभक्त था। इस परिवार मे अनेक विद्वान हुए थे और उनमें से कई विद्वानो ने राजो से प्रचुर सम्मान भी पाया था। उनकी जाति, माता-पिता अथवा जन्मस्थान के विषय मे कुछ भी जानकारी प्राप्त नहीं है । उनका विहार-क्षेत्र राजस्थान और गुजरात .हा है । इनके दो शिय-वनेश्वर और जिनेवर बहुत विद्वान् हुए है। उन्होंने मन्मति पर तत्ववोधविधायिनी नाम की टीका लिखी। इसका अ५२ नाम है – 'वादमहार्णव' । 7 प्राशावर (पडित) (ई० 1188- 250) ये धारा नगरी की ववाल जाति के वैश्य थे। इनके पिता का नाम मल्लक्षण, माता का नाम श्रीरत्नी, पत्नी का नाम सरस्वती और पुत्र का नाम

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