Book Title: Jain Nyaya ka Vikas
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Nathmal Muni

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Page 184
________________ न्याय ( 168 ) युक्ति के द्वारा तत्व का परीक्षण । पचावयव प्रयोग प्रतिज्ञा, हेतु, हटान्त, उपनय और निगमन-य पाच अवयव है । पगर्वानुमान में इनका प्रयोग होता है । पक्षधर्मत्व .-हेतु का पक्ष मे होना। पर्याय -~-वस्तु का क्रममावी धर्म परमाणु परम + अ =परमाए । सर्व सूक्ष्म अविभाज्य अम । परमार्थ मत्य नै चयिक मत्य । ५२-ममय-4thव्यता - दूमरो के सिद्धान्त का निरूपण । परिणामवाद सत्कार्यवाद का अपर नाम । परिवामिनित्यत्ववाद देखे मदमत्कार्यवाद । परोक्ष इन्द्रियो के महयोग से होने वाला जान । पुइगलास्तिकाय स्पर्ग, वर्ण, गध और मयुक्त मूर्त द्रव्य । जन पागम-गास्त्र की एक मना । 'पूर्व' श्रुत या शब्द नान के अक्षय कोप हैं । इनकी नन्या चौदह है । जान की वह क्षमता जिममे अनात नियम और सवव भी जान लिए जाते है। પ્રતિજ્ઞા माध्य का निदंश करना। પ્રતિવર્વક હેતુ अवरोध उत्पन्न करने वाला पार । दूसरे प्रभारणो तया पौद्गलिक इन्द्रियों की महायता के विना प्रात्मा से उद्भूत होने वाला जान । लौकिक प्रत्यक्ष इन्द्रिय-जान । लोकोत्तर प्रत्यक्ष अतीन्द्रिय-जान । इन्द्रिय प्रत्यक्ष इन्द्रियो मे होने वाला साक्षात् जान । नो-इन्द्रिय प्रत्यक्ष अतीन्द्रिय जान । साव्यावहारिक इन्द्रिय श्री. मन मे साक्षात् होने वाला जान ! प्रत्यक्ष पारमायिक अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष । प्रनी प्रत्यक्ष प्रत्यक्ष परार्थ प्रत्यक्ष प्रत्यभिजा प्रत्यक्ष द्वारा नान अर्थ का वचनात्मक निरूपण । अनुभव और स्मृति के योग से उत्पन्न होने वाला मकाननात्मक जान ।

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