Book Title: Jain Nyaya ka Vikas
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Nathmal Muni

View full book text
Previous | Next

Page 176
________________ ( 160 ) ___55 श्रीदत्त (ई 6) ये पूज्यवाद मे कुछ पहले हुए है । ये महान् ताकिक प्राचार्य थे। विक्रम की चौथी शताब्दी मे होने वाले विद्यानन्दी मे महान तार्किक प्राचार्य के तत्वार्थलोकपातिक के अनुसार इन्होने 62 वादियो को पराजित किया था। इन्होने 'जल्पनिर्णय' नाम का एक अन्य लिखा था । वह अप्राप्य है । 56 हरिभद्र (ई 7-8) ये चित्रकूट (चित्तोड) के ब्राह्मण कुल मे उत्पन्न हुए थे। उन्होंने जन मावी याकिनी द्वारा प्रतिबुद्ध होकर जैन दीक्षा ग्रहण की। ये विद्यावर गच्छ के आचार्य जिनभट्ट के शिष्य थे। इनके दीक्षागुरु का नाम जिनदत्त था। ये संस्कृत के प्रथम टीकाकार श्रीर बहुविध माहित्य के जप्टा थे। इन्होंने जैन दर्शन के संवर्धन मे अपूर्व काम किया। इनकी कुछेक न्यायविषयक रचनाए ये है--अनेकान्तजयपताका, योगष्टिसमुच्चय, शास्त्रात सिमुच्चय, पदनसमुच्चय । उनके द्वारा रचित लगभग सौ ग्रन्यो का अब तक पता लगा है। ये 1 444 प्रकीर्णको के रचयिता माने जाते हैं ।10 57 हेमचन्द्र (ई 1088-1172) इनका जन्म गुजरात के बन्यूका नगर के एक वैश्य परिवार मे मन् 1088 मे हुआ । वाल्य अवस्था मे ये प्राचार्य देवचन्द्र के सघ मे दीक्षित हुए और वाइसवे वर्ष मे प्राचार्य वने । ये कलिकालसर्वज्ञ कहलाते थे । इनके प्रमुख ग्रन्य हैं 1 ઉદ્ધહેમશબ્દાનુરામના 2 अनेकार्थचिन्तामणिकोप 3 अभिवानचिन्तामणिकोप 4 देशीनाममाला 5. काव्यानुशासन 6 बन्दोनुशासन 7 इनका तर्कशास्त्र का प्रमुख अन्य है--प्रमाणमीमामा । 10 इनके ५.परागत वृत्तान्त के लिए दे३ प्रभावकचरित्र मे हरिभद्र वृत्तान्त ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195