Book Title: Jain Nyaya ka Vikas
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Nathmal Muni

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Page 175
________________ ( 159 ) 50 लिपि (ई० 9-10) ये आचार्य दुर्गस्वामी के शिष्य थे। इन्होने वि स 962 ज्येउ शुक्ला पचमी को 'उपमितिभवप्र५-चकया' की रचना की। इन्होने सिद्धसेन के 'न्यायावतार' पर टीका भी लिखी। 51 सिद्धसेन दिवाकर (ई० 4-5 शती) ये विद्याधर गोपाल से निकली हुई विद्याधर शाखा के प्राचार्य वृद्धवादी के शिष्य थे। इनका जन्म दक्षिण के ब्राह्मण कुल में हुआ था। एक बार इन्होने आगमो का सस्कृत अनुवाद करने का प्रयत्न किया, किन्तु गुरु द्वारा निषिद्ध करने ५२ प्रयत्न छोड दिया। इनके प्रमाण विषयक दो ग्रन्थ बहुत ही महत्त्वपूर्ण है 1 सन्मतितर्क 167 प्राकृत गाथाओ मे नयवाद का विशद निरूपण प्राप्त है। 2 न्यायावतार 32 सस्कृत श्लोको मे प्रमाणो का सक्षिप्त विवेचन है। प्रमाण का यह आद्य-ग्रन्थ माना जाता है। 52 सुमति (ई० 8-9) वादिराजसूरी ने अपने द्वारा रचित पावनाथचरित मे इनके 'सन्मतितकटीका' का उल्लेख किया है । मल्लिपण प्रशस्ति मे इनके 'सुमतिसप्तक' ग्रन्थ का उल्लेख है। 53 सोमतिलकसूरी (वि 1355-1424) इनका दूसरा नाम विद्यातिलक था। इनका जन्म वि 1355, दीक्षा वि 1369, प्राचार्यपद वि 1373 और मृत्यु वि. 1424 मे है । इन्होने हरिभद्रकृत पट्दर्शनसमुच्चय पर आदित्यवर्धनपुर मे वृत्ति की रचना की । 54 श्रीचन्द्रसूरी (ई० 12 वी) ये शीलभद्रसूरी के शिष्य थे । इनका दूसरा नाम पार्वदेवाणि या। इन्होने अनेक अागमो पर टीकाए लिखी। इन्होने दिड नाग कृत न्यायप्रवेश पर हरिभद्रसूरी द्वारा कृत टीका पर पञ्जिका लिखी । उसका नाम है न्यायप्रवेशहरि मद्रवृत्ति पजिका। 9 गुर्वावली 273,29।

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