Book Title: Jain Nyaya ka Vikas
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Nathmal Muni

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Page 179
________________ मध्यवमाय प्रनव्यवसाग्र ( 163 ) અતીન્દ્રિયનાના केवल आत्मा से उद्भूत प्रत्यक्ष ज्ञान । નદંતવાદ -- - एक सर्वव्यापी तत्व को स्वीकार करनेवाला सिद्धान्त । वास्तिकाय लोकव्यापी स्थिति-सहायक द्रव्य । निर्णयात्मक दृष्टिकोण। - वस्तु का अस्पष्ट-बोध, वह जान जो विकल्प की स्थिति तक न पहुचे । अनाकार ---- आकार का अर्थ है विशेष या विकल्प । जिसमे आकार न हो विशेष (भेद) या विकल५ न हो वह अनाकार अर्थात् निविकल्प । अनाकार बोध दर्शन है और माकार बोध जान । अनिर्वचनीय -- जिसका निर्वचन न किया जा सके। अनुभववाद इन्द्रिय-सवेदनो को वास्तविक ज्ञान मानने वाला सिद्धान्त । अनुमान साधन के द्वारा साध्य का जान । पूर्ववत् कारण से कार्य का अनुमान । ओपवत् कार्य मे कारण का अनुमान । सामान्यताहण्ट । सामान्य धर्म के द्वारा होने वाला अनुमान । दृष्टसाधम्र्यवत् । અને નત - अनन्त धर्मात्मक वस्तु का निश्चयात्मक जान । सम्यक् अनेकान्त -प्रमाण । मिथ्या अनेकान्त प्रमाणामास । अनेक प्रात्माओ की स्वीकृति वाला सिद्धान्त । माध्य मे ही सावन का होना । अभाव अनुपलब्धि प्रमाण । 'यह भूतल घटशून्य है क्योकि यहा वट अनुपलब्ध है।' अभिनिवोध सावन में होने वाला मान्य का जान, अनुमान । अभिन्नापूर्वी -नौ पूर्वो (आगम शास्त्रो) तथा दश पूर्व ( विद्यानुप्रवाद ) की तीसरी वस्तु (अध्याय) का नाता ।। अभ्युपगम स्वीकृत सिद्धान्त । अर्थ क्रियाकारित्व जिमका अस्तित्व है उसमे कुछ न कुछ क्रिया होती हती है । यह 'अर्य क्रियाकवि ' ही वस्तु का लक्षण है। अर्थप्रर्याय क्षणवर्ती पर्याय । अनेकात्मवाद अन्वय

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