Book Title: Jain Me Chamakta Chand
Author(s): Kesharichand Manekchand Daga
Publisher: Kesharichand Manekchand Daga

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Page 7
________________ (२) और आकर्षक है कि अन्य धर्मावलम्बी सहस्त्रों पुरुष श्रवण करने के लिए आते हैं। किसी भी अन्य मत का खण्डन नहीं करते। इन्होंने देशी विलायती का बिरादरी का कई वर्षो का झगड़ा कुछ समय में ही भीनासर में निर्णय करा दिया। अछूत जाति को उपदेश देकर मदिरा इत्यादि का भी त्यागन करा दिया इनके मुख्य शिष्य पंडित रत्नमुनिजी महाराज घासीलालजी तथा गणेशलालजी संस्कृत के अच्छे ज्ञाता तथा बाल ब्रह्मवारी हैं । इतने बड़े विद्वान होने पर भी विधा का अभ्यास अभी तक कर रहे हैं । और तप स्वीजी मुनिमहाराज सुन्दरलालजी ने दो मास का उपवास बड़े हर्ष के साथ किया । तपस्वीजी महाराज केसरीमलजी ने भी तीन मास और पाँच दिन का उपवास अत्यन्त आनन्द पूर्वक किया है। इतनी कठिन तपस्या करते हैं, जितनी कि कोई अन्य धर्मावलम्बी विरला ही करता होगा। धर्म उद्धार के लिए तन मन से पूर्ण प्रयत्न कर रहे हैं। वर्षा के अपवित्र वस्त्रों का निषेध करते हैं और बालविवाह और वृद्ध विवाह का भी निषेध करते हैं। देश सुधारक बातों का पूर्ण रूप से ध्यान रखते हैं। दबादान परोपकार अहिंसा को अपना मुख्य धर्म समझते हैं । गोरक्षा का भी उपदेश अत्यन्त देते हैं ।

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