Book Title: Jain Me Chamakta Chand
Author(s): Kesharichand Manekchand Daga
Publisher: Kesharichand Manekchand Daga

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Page 11
________________ स्वधर्म के पूर्ण अनुकरणकर्ता तथा परोपकारी दानी पुरूष थे, जिन्हों ने धर्मार्थ औषधालय खोल रक्खा है। इन के सुपुत्र केशरीचंदजी तथा माणकचंदजी सेभी अनेक प्रकार की शुभ आशा हैं । प्रिय सज्जनों कहूँ। तक वर्णन करें यह जो कुछ भी शुभ चाह नाएँ उपरोक्त सज्जनों के उर में वर्तमान हैं, इन सब का प्रभाव श्रीपूज्यजी महाराज का सदुपदेश दृष्टिगोचर होता है। ऐसे सज्जनों की और समात श्रावकों की वृद्धि दिन २ दूनी हो और धर्म की उन्नति करें। अब मैं समस्त जैन भ्राताओं से प्रार्थना करता है कि समय व्यर्थ न खोवो । परस्पर प्रेम रखा। इतना घारनिद्रा में न सोवो । आलस्य को तजकर शुभ कार्य करी। धर्म में तनमन धन लगा दो। विद्याप्रचार करी । जिस सेदेश का उद्धार होवे और कल्याण होवे। जैन धर्म कोई एक छोटी सी बात नहीं है । यह अनादि काल का धर्म है। अपने २ धर्म में दृढ़ रहो, किसी की निंदा न करी । जैन धर्म एक ही है । शुभ कार्य करो, जिस से दुनिया में यश होवे । कारण यह मनुष्य जन्म फिर बार २ नहीं मिलता है। जहाँ तक हो सके एकता रक्खो। प्राचीन काल के झगड़ों की तरफ ध्यान मत देवा । इसतरफ अधिक ध्यान देने से धर्म को हानि पहुँचती है। देश

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