Book Title: Jain Me Chamakta Chand
Author(s): Kesharichand Manekchand Daga
Publisher: Kesharichand Manekchand Daga

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Page 18
________________ रागगजल (तर्ज- मेरे पूज्यजी दर्श दिखा दो मुझे) जगदुर्लभ दर्शन सन्त सखे, सतसंग सुगुण कहि वेद थके। शेर-गुणवान हो, मतिमान हो, मुनि सर्व गुण सम्पन्न हो। तव दर्श के भागी हुए हैं मोरे नैना न्यिहो गुणगावत प्रेमस्नेही लखे ॥ जगदुम॥ शेर-नही जाने किस शुभ कम से भागी हुआ . ऋषिदर्श का। दशन से सब कुच्छ पा लिया फिर क्या ठिकाना हर्ष का। मुनि को सिद्धि सुरेश हमेश लखे ॥ जग दुर्लभ ॥ शेर-विद्याप्रचारक धर्म ग्राहक ब्रह्मचारी नाथ हो। पञ्चमहाव्रत पाल कर मुनि गावे जनगुण गाथ हो। व्रतपालन कठिन को वर्ण सके । जगदुर्लभ ॥ शेर-जोकुच्छ करे प्रचार जग में देश जाति-धर्म हिता ऐसे तपस्वी सज्जन की सहायकरि है ईश नितः होकर सफल सुधारस सार चखे ॥ जगदुर्लभ ॥ ..

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