Book Title: Jain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Author(s): Agarchand Nahta, 
Publisher: Abhay Jain Granthalay

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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्पादकीय भारतीय साहित्य में जैन साहित्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है । प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती, मराठी, कन्नड़, तमिल आदि भारत की सभी प्रधान भाषाओं और धर्म, दर्शन, काव्य, कथा, ज्योतिष, वैद्यक प्रादि जीवनोपयोगी प्रत्येक विषय का जैन साहित्य प्रचुर परिमाण में प्राप्त है । ज्यों-ज्यों खोज की जाती है, नित्य नई जानकारी व सामग्री प्रकाश में आती रहती है । प्राप्त जैन साहित्य का विवरण संग्रहीत करने का सबसे महत्वपूर्ण कार्य स्व० मोहनलाल दलीचन्द देसाई वकील - हाईकोर्ट बम्बई ने किया था । उन्होंने 'जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास' और 'जैन गूर्जर कविओो' भाग १-२-३ के नाम से जो ग्रन्थ करीब ३५ वर्ष के निरन्तर और अथक प्रयत्न से तैयार किये थे, वे जैन श्वेताम्बर कॉन्फ्रेन्स बम्बई की ओर से संवत् १६८२ से संवत् २००० के बीच गुजराती में प्रकाशित हुए । इस भगीरथ कार्य को इतनी लगन और परिश्रम से सम्पन्न किया कि आज तक वैसा और किसी के द्वारा नहीं हो पाया । 'जैन गुर्जर कविप्रो' के तीन भागों में लगभग १ हजार कवियों एवं २०० गद्य लेखकों की ३-४ हजार रचनाओं का विवरण ४ हजार से अधिक पृष्ठों में प्रकाशित हुआ है । श्री देसाई के 'कविवर समयसुन्दर' नामक निबंध से प्रेरणा प्राप्त करके हमने (मैं और मेरे भातृ-पुत्र भंवरलाल ने जैन साहित्य के खोज का काम सं. १६८५ से आरम्भ किया और उसी प्रसंग से देसाई से हमारा सम्पर्क बढ़ता गया । जब उनका जैन सूर्जर कवियो का तीसरा भाग छप For Private and Personal Use Only

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