Book Title: Jain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Author(s): Mulchandra Jain
Publisher: Jain Sahitya Sammelan Damoha

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Page 149
________________ भैया भगवतीदास .......................................... . . . . ........ ... ....... ... .. वास्तव में सत् काव्य वही है जो भूले हुए पथिकों को सत्मार्ग पर लगादे, तड़पते हुए को सान्त्वना प्रदान करे और जीवन सुधार के मार्ग को प्रशस्त चनादे। आपके काव्य में यह सभी गुण पद पद पर प्राप्त होते हैं। आपने अपनी कविता की रचना केवल जनता को अनुरंजित करने अथवा राजा महाराजाओं को रिझाने के लिए नहीं की है और न आपको किसी प्रकार के पुरष्कार का ही लोभ था आपने लोक कल्याण और आत्मोद्धार के लिए काव्य का आदर्श रक्खा है आपका काव्य प्रदर्शक प्रदीप है उससे आत्म प्रकाश की उज्ज्वल किरणें प्रकाशित होती हैं। आप व्यवहार ज्ञान के अच्छे ज्ञाता थे सर्व साधारण के हृदय को परखे हुए थे और जनता को किस प्रकार उपदेश देना यह आप खूब जानते थे। . आपकी कविता अलंकार और प्रसाद गुण से पूर्ण है। जनता की रुचि और सरलता का आपने काव्य में पूर्ण ध्यान रक्खा है भापा प्रौढ़ और शब्द कोप से भरी हुई है। उर्दू और गुजराती के शब्दों का आपने कहीं कहीं बहुत ही सुन्दर प्रयोग किया है। सरलता आपकी कविता का जीवन है और थोड़े शब्दों में अर्थ का भंडार भर देना यह आपके काव्य की खूबी है। सरसता और सुन्दरता के साथ आत्मज्ञान का आपने इतना मनोहर संबंध जोड़ा है कि वह मानवों के हृदयों को अपनी ओर आकर्पित किए बिना नहीं रहता। आपकी रचनाओं का सुन्दर संग्रह ग्रंथ ब्रह्म विलास है इसमें आपके द्वारा रचित ६७ कविताओं का संग्रह है। इसमें.

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