Book Title: Jain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Author(s): Mulchandra Jain
Publisher: Jain Sahitya Sammelan Damoha

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Page 197
________________ भैया भगवतीदास १८५ नर्क तिर्यच चट पट्ट दे बैठ रहे,.. विपै चोर झट झट्ट पकर पछारे हैं। भी वन कटाय डारे अट्ठ मदं दुटु मारे, मदन के देश जारे क्रोध हुँ संहारे हैं। चढ़त सम्यक्त सूर चढ़त प्रताप पूर, सुख के समूह भूर सिद्ध से निहारे हैं। जिसने वैरियों के झुंड को जलाकर खाक कर दिया, कर्म सुभटों के नगर को उजाड़ डाला, नर्क और तिथंच गति के किवाड़ बंद कर दिए, विपय चोरों को जल्दी २ पकड़कर पछाड़ दिया है, संसार जंगल को काटकर दुष्ट आठ कर्मों को मार डाला, कामदेव का देश जला दिया, और क्रोध को पछाड़ दिया, ऐसे सम्यक्त (सत्य श्रद्धा, ज्ञान, चरित्र) शूरवीर के चढ़ते ही आत्मा के प्रताप का पूर और सुख का समूह बढ़ गया उसने अपने सिद्ध स्वरूप का दर्शन कर लिया। बहिलापिका छप्पय छन्द इसमें ९ प्रश्नों का एक ही उत्तर बड़े मनोहर ढंग से दिया है। कहा सरसुति के कंध, कहो छिन भंगुर को है। ___ 'कानन को कहा नाम, बहुत सों कहियत जो है ॥ भूपति के संग कहा, साधु राजै किह थानक । - लच्छियविरथी कहां, कहा रेसम सम चानक || श्रेयांस राय कीन्हो कहा, सो कीजे भवि सुख प्रदा। सब अर्थ अंत यह तंत 'सुन, वीतराग सेवहु सदा ॥'

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