Book Title: Jain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Author(s): Mulchandra Jain
Publisher: Jain Sahitya Sammelan Damoha

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Page 198
________________ १८६ प्राचीन हिन्दी जैन कवि इन सव प्रश्नों का उत्तर 'सुन वीतराग सेवहु सदा' से निकलता है। इसके तीसरे और दूसरे अक्षर से वीन, चौथे और दूसरे से तन, पांचवें दूसरे से रान, छटवें दूसरे से गन, सातवें दूसरे से सैन, आठवें दूसरे से वन, नवमें दूसरे से होन, दसवें दूसरे से सन और ग्यारवें दूसरे से दान वनकर सब प्रश्नों के उत्तर निकलते हैं। अन्तलापिका (छप्पय ) कहो धर्म कव करे, सदाचित में क्या धरिये। प्रभु प्रति कीजे कहा, दान को कहा उचरिये ॥ अश्रव सो किम जीत, पंच पद को किम गहिए। गुरु शिक्षा किम रहे, इन्द्र जिनको कहा कहिए ॥ सव प्रश्नवेद उत्तर कहत, निज स्वरूप मन में धरो। भैया सुविचक्षन भविक जन, 'सदा दया पूजा करो।' सदा, दया, पूजा, करो, इस पद के चार शब्दों में पहिले चार प्रश्नों का उत्तर मिलता है। सदा, दया, पूजा, करो, अन्त के चार प्रश्नों का उत्तर इन्हीं चार शब्दों को उलटे पढ़ने से निकलता है। (रोक, जापु, याद, दास,) अन्तापिका (छप्पय) मंदिर बनवाओ, मूर्ति, लाव, सैना सिंगारहु, अवुवान ? वासर प्रमाण ? पहुँची नगधारहु । मिश्री मंगवा ? कुमुद लाव, सरसी तन पिक्खहु, तौल लेहु, दत लच्छि देहु, मुनि मुद्रा पिक्खहु । सव अर्थ भेद भैया कहत, दिव्य दृष्टि देखहु खरी, श्राकृत्रिमप्रतिमानिरखत,सु, 'करीनघरीनभरीनधरी।'

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