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भैया भगवतीदास
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मन बतीसी
इसमें मन की चंचलता का ३२ छन्दों में बड़ा सुन्दर वर्णन है । मन के वश किए विना कुछ भी नहीं होता एक छन्द में इसका मनोहर वर्णन देखिए ।
। कहा मुड़ाए मूह से कहा मटुका | कहा नहाए गंग नदी के तट्टका ॥ कहा वचन के सुन कथा के पट्टका ।
जो वस नाहीं तोहि पसेरी अटुका ॥
यदि तेरा ८ पसेरी का मन वश में नहीं है तो हे भाई ? मठ में रहने, सिर घुटाने, गंगा में नहाने और कथा पाठ के पढ़ने से' क्या होता है ? कितने सीधे और सरल शब्द है ।
चेतन कर्म चरित्र
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चैतन्य राजा मिथ्या नींद में कुमति के साथ सोता था । अचानक सुमति देवी वहाँ आती है वह कहती है हे राजा ! तू गफलत में क्यों पड़ा हुआ है तेरे पीछे कर्म चोर लगे हुए हैं तू सावधान हो । वह उसे समझाती है कि तू इन चोरों से छुटकारा पाने के लिए अपने स्वरूप का ध्यान कर। यह हाल देखकर कुमति नाराज होकर अपने पिता मोह के पास जाकर शिकायत करती है मोह चैतन्य से युद्ध करता है और हारकर भाग जाता है। इसका सुन्दर वर्णन कवि ने २९६ छन्दों में किया है कविता सरल और सुबोध है ?
सोबत महत मिथ्यात में, चहुँ गति शय्या पाय । घीती. मिथ्या नींद तह, सुरुचि रही ठहराय ॥