Book Title: Jain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Author(s): Mulchandra Jain
Publisher: Jain Sahitya Sammelan Damoha

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Page 193
________________ भेया भगवतीदास १८१ जैनधर्म धन्य है, जिसमें प्रत्येक प्राणी अपनी आत्म संपत्ति को देख लेता है। जैनधर्म धन्य है, जो मुक्ति का मार्ग दिखलाता है। जैनधर्म धन्य है, जिसके द्वारा जोब कैवल्य पद प्राप्त करता है । जैनधर्म धन्य है, जिससे अनंत सुख प्राप्त किया जाता है। भैया अगवतीदास कहते हैं हे भाई ! ऐसे जैनधर्म को शुद्ध दृष्टि से अपने हृदय में तीनों काल धारण कर और उसी का ध्यान कर। वाईस परिषह-- जैन मुनि वाईस प्रकार की परिपहें सहन करते हैं उसका वर्णन कविवर ने २५ छन्दों में बड़ा सुन्दर किया है। क्षुधा परिपहभूख की ज्वाला कितनी कराल होती है उसको साधु महाराज कैसे अपने वश में करते हैं इसका जोवित वर्णन सुनिए। जगत के जीव जिंह जेर जीत राखे अरु, जाके जोर श्रागे सव जोरावर हारे हैं। मारत मरोरे नहिं छोरे राजा रंक कहूं, . . . आँखिन अँधेरी ज्वर सव दे पछारे हैं। दावा की सी ज्वाला जो जराय डारै छाती छवि, . देवनि को लागै पशु पंछी को विचारे हैं। ऐसी सुधा जोर भैया कहत कहाँ लौ ओर, ताहि जीत मुनिराज ध्यान थिर धारे हैं ।।.

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