Book Title: Jain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Author(s): Mulchandra Jain
Publisher: Jain Sahitya Sammelan Damoha

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Page 191
________________ भैया भगवतीदास १७९ मेरे मित्र! तू बेफिक्र होकर क्या बैठा है देख तेरे पीछे बलवान काम चोर लगा है वह तेरी ज्ञान दौलत छीने लेता है अरे अँधेरा डालकर सब कुछ स्वाहा किए जाता है। भाई जाग। गुरु पुकारते हैं ज्ञान की आखें खोल देख तेरे पास चोर हैं ? अरे वलवान आत्मा अपनी ताकत दिखला तेरे जैसे बलवान के आगे चोर होकर कौन रह सकता है? कैसा उत्तेजक प्रबोधन हैं कैसी क्रांति मई भावना है। जैन धर्म के कल्माण कारी उपदेश का दिग्दर्शन कीजिए। आँख देखै रूप जहां दौड़े तूही लागै तहाँ, सुने जहाँ कान तहाँ तुही सुनै बात है। जीभ रस स्वाद धरै ताको तू विचार करे, नाक सूंघे वात तहाँ तूही विरमात है। फर्स की जु पाठ जाति तहाँ कहो कौन भांति, जहाँ तहाँ तेरो नांव प्रगट विख्यात है। याही देह देवल में केवलि स्वरूप देव, तक कर सेव मन कहाँ दौड़ो जात है ॥ आँख जो कुछ भी रूप देखती है कान जो कुछ भी बात सुनते हैं जीभ जो कुछ भी रस को चखती है नाक जो कुछ भी गंध सूंघती है और शरीर जो कुछ भी आठतरह का स्पर्श लेता है यह सब तेरी ही करामात है। हे आत्मा! इस शरीर मंदिर में तू देव रूप में बैठा है । मन! तू उसी अात्म देव की सेवा क्यों नहीं करता, कहाँ दौड़ा जाता है। ___ जो मिथ्या देवों की सेवा करते हैं वे कैसे पार हो सकते हैं। इसका निप्पन वर्णन सुनिए ।

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