Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 03
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 351
________________ ३४२ श्रीसम्यक्त्वसित्तरी. थाकारागमनी विद्या साधी मृगांकलेखाने घेर गया तेमांप्रथम तो धनमित्र गयो तेने मृगांकलेखायें हांकी काढयो, के अरे तुं कोण ने ? जे रात्रिने वखतें महारा घरमा प्रवेश करे ? नलो हो तो नीकल. नहीं कां महारा शीलने प्रनावें करी जस्म थाश्श! धनमित्रं कर्तुं हे बहेन ! हुँ सागरचंश्नो मित्र बु तहारे घेर सागरचं थावे जे, तेनी वधामणी देवा आव्यो बुं. माटें : ख बांमीने आनंद पाम. एवं कहेतां वार तिहां सागरचं पण आव्यो,ए टले सखीयोनो वर्ग ती गयो अने धनमित्र पण बीजा घरमांज वेठो. हवे सागरचंड अश्रुजलें पोतानो अपराध धोतो थको कहेवा लाग्यो के तुं निरपराधी बतां में तुमने घणुं संतापी ते महारो अपराध तुं दमा क र.जेम विद्या जणीने वीसारी मूकीयें,तेम में तुमने परणीने वीसारी मूकी ते महारो सर्व अपराध तुं वीसारी मूक. अने संतोष आगीने महारी सा थे बोल. ते सांजली मृगांकलेखायें कह्यु ए सर्व महारा पूर्वकर्मनो दोष , तमारो एमां कां वांक नथी. एम कही स्त्री जरतार घणाकालना विरहा नि प्रत्यें सुखजलें करी उलवतां हवा. तिहां स्त्री नार परस्परें रमतां रा त्रि अतिक्रमी, प्रनात थवा लाग्यो, तेवारें सागरचं कर्तुं दुं कटकमां जा नं केम के राजा संचारशे माटे हाजर रहे जोश्ये, मृगांकलेखायें कह्यु के तमे जाबो. महारे ऋतुस्नाननो दिवस ,जो गर्न रह्यो हो, तो पा बलथी सासु ससराने महारे उत्तर श्यो आपवो ? तेने सागरचं स्वनामां कित मुश्किा पापी. मृगांकलेखानो हार लीधो. अने कह्यु के महारा मा तापिता तुऊने पूछे तो था मुश्किा देखाडजे. एवं कही तेनी आंखमाथी यांसु लुही पोतानी आंखें बांसु आणतो सैन्यमांहे गयो. पाबल मृगांकलेखाने उदरें को पुण्यवंत देवतानो जीव आवी उपनो. उदर वृद्धि पामवा लाग्युं. तेवारें पद्मा सार्थवाही सापानी पेठे कोप कर ती पूजवा लागी. ते मृगांकलेखायें सागरचंनी मुश्किा देखाडी तो पण सासु ससरो बेहु कहेवा लाग्यां जे एवां स्त्रीनां कपट अमें घणां जाणी ये बैयें. ते अमारा कुलने विषे कलंक लगाडधुं. माटें हवे तमें घरबाहिर निकलो. एम कहीने जेम निर्धनपुरुष पामेली लक्ष्मीने हांकी काढे, तेम मृगांकलेखाने काढी मूकी तेमनी साथें चित्रलेखा सखी पण निकली. प या सासु तेना पीयरने पण केवरावी मोकल्युं जे तमारी पुत्री कुचरित्र

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