Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 03
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 354
________________ ३४४ जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. एकदा गोकुलनो धणी वसंत नामें ,तेणे तेने दीती,तेवारें कामें पीडित थको नोगनी प्रार्थना करतो हवो. तेणे जेम को दासीनो तिरस्कार क रीयें, तेवो तिरस्कार कस्यो. तेने ललितायें समजाव्यो, जे ए सती डे, आपणा गोकुलमां आवी ,माटें एनो केड तुंमूकी दे. तो पण तेणें विचा युं जे महारे घेर आवी ने माटे महारं कथन मानेज बूटे, एवं निर्धायुं एकदा मृगांकलेखाने बंघमा सूती देखी उपाडीने पोताने घेर लइ गयो. अने विषय जोगववानी प्रार्थना करी तिहां मृगांकलेखायें यद्यपि “बला निगेणं" ए यागार , तो पण पोतानुं शील राख्यु, शील लोपवा दी धुं नहीं. तेना शीलना प्रनावें वसंतने वासी वल्यं, तेहज रात्रियें मरण पामीने उर्गतियें गयो. गोकुलने विषे मृगांकलेखानो शीलमहिमा विस्तार पाम्यो. वसंतना कुटुंबपरिवारें तेने घणुं मान आपीने ललिताने घेर मो कली, पण मार्ग जूली पडी तेथी अरण्यमां निकली गइ. मार्गमा वडवृद नी बायायें ज बेठी थकी कर्मनो परिणाम विचारे . __ कर्मयोगें मकरें नामें तापस तिहां आव्यो, तेणे मृगांकलेखाना सर्व समाचार सांजली आश्रमें लइ जर कुलपतिने आपी. तेणें पोतानी पुत्री करी मानी अने एक तापसनी साथे को महिरनामा ग्रामनी निकट ज मूकी. तिहां ते गामनो सुंदर नामें स्वामी , तेना माणसें तेने पकडीने बागल गणीश माणस बंदीवान डे, तेनी पासें जश् वीशमी एने पण मू की. ते सुंदरने घेर पुत्रनो जन्म थयो ,तेमाटे तेणें दश पुरुष अने दश स्त्री नकाली देवीने चडाववानी मानता करी,तेथी ए वीशे बंदीवानोने दे वीना मरने विषे लाव्या, तिहां सुंदर पोतें यावीने वीश जगने कहे वा लाग्यो जे अमारे घेर पुत्र जन्म थाय, तो नश्कालीदेवीने दश स्त्री त था दश पुरुष, मली वीश माणसनो बलि आपीयें. एवी अमें मानता क री. माटें तमारो हां बलि देवाशे, तेथी जेहने जे इष्ट होय, तेनुं स्मर ण करो. एवं सांजली गणीश माणस तो जयें करी त्रास पामतां बोली शक्यां नहीं परंतु एक मृगांकलेखा बोली जे प्रथम मुजने मारी बलि आ पो. जेम ढुं बीजा माणसनुं मरण महारी नजरें देखें नहीं. मने माहारा मरणनी चिंता नथी, पण गणीश जणना मरणनी चिंता ने. एवं सांजली सुंदर बोल्यो के हे जगिनी ! एकली तुमनेज हुँ मूकुं बुं.

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