Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 03
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 377
________________ श्रीसम्यक्त्वसित्तरी. ३६७ हे ः-(मिन के ) माटी (दंम के ) दंम (चक्क के) चक्र अने (ची वर के० ) चीवर लुगडं इत्यादिकनी (सामग्गिवसा के०) सामग्रीना वश थकी (कुलालुव के०) कुलालवत् एटले कुंजारनी परें अर्थात् जेम कुंजार जे , ते माटी, दंम चक्र अने चीवर प्रमुखनी सामग्री पामीने घट करे , तेमजीव कषायादिकनी सामग्री पामीने कर्मबंध करे ,एत्रीजुं स्थानक कटुं. हवे चोथु स्थानक कहे . ॥ऊ सयं कयाई, परकय जोगे अश्पसंगो न ॥ अकयस्त नति नोगो, अन्नह मुरकेवि सो कऊ ॥ ६३ ॥ अर्थः-(सयंकयाई के०) स्व कृतकर्मप्रत्ये (जुऊ के०) नोगवे ॥ यतः॥ नानुक्तं दीयते कर्म, कल्पको टिशतैरपि ॥ अवश्यमेव नोक्तव्यं, कृतं कर्म गुनागुनम् ॥ १ ॥ अने (प रकयनोगे के०) पररुतकर्मनो जोग मानीयें तो (अश्प्पसंगो के०) अतिप्रसंग दोष आवे तथा तुकार निश्चयनयार्थे जो जीवने अन्यकृत कर्मनुं जोगवतुं मानीयें, तो देवदत्तना जमवाथकी यज्ञदत्तने पण तृप्ति थावी जोश्ये, पण एम तो देखातुं तथी जे जमे बे, तेनेज तृप्ति थती दे खाय बे, पण अन्यने तृप्ति थती नथी मात्रै परकतकर्म नोगवे नहीं. स्वयं कृत कर्मज जोगवे ॥ यतः॥ जीवेणं नंते अत्तकडे उरक परकडे उरके इति अ कयस्सत्ति माटे (अकयस्सनबिनोगो के०) अरुत कर्मनो नोग नथी (अ नह के० ) अन्यथा जो अकतकर्मनो जोग मानीयें तो (मुरकेवि के०) मोदने विषे पण ( सो का के०) ते कर्मनो जोग होय. उडता रोगनी परें जो कर्म पण उडीने वलगीजाय,त्यारे तो सिघना जीवने पण कर्म लागी जाय! तेमाटें स्वयंकत कर्मज आत्मा जोगवे. ए चोथु स्थानक कहुं ॥६३॥ हवे पांचमुं स्थानक मोद ले तेनुं स्वरूप कहे जे. ॥निवाण मरकय पयं, निरुवम सुहसंगयं सिवं अरुयं। जियराग दोस मोहे, हिं नासियंता धुवं यति ॥ ६४॥ अर्थः-(निवाणं के) निर्वा ण एवं (अरकयपयं के० ) अदयपद , शाश्वतुं स्थानक ले, ते एक सि नी अपेक्षायें सादि अनंत के अने सर्वसिवनी अपेक्षायें अनादि अनं त . सिक्ने पतनना अनावथकी पाबो अवतार लेवो नथी माटे अक्ष्य ले वली कहे ? तो के (निरुवमसुहसंगयं के०) निरुपम सुखसंगत बे, ते दुःखगड़ित नथी, तेमाटे निरुपम सुखसंगत कयुं. तथा (सिवं

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