Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 03
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 388
________________ ३७८ जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. बे, तिहां सुस्थित नामें शेठ परमसम्यग्दृष्टि बार व्रतधारी श्रावक रहे बे, तेने घेर एक वातागरो विनयादि गुणें करी संयुक्त कामकाज करवाने नि पुण, सुंदर एवे नामें बे, अने परिणामे पण सुंदर बे. ते एकदा पुण्ययोगें साधुनी संगति पामीने सिद्धांतनां रहस्य प्रत्यें सांजलतो हवो, तेथे गुरु नी पासेंथी व्रत लीधुं जे महारे अष्ट प्रकारी पूजा कस्या विना तथा बती जोगवाइयें साधुने वांद्याविना जमवुं नहीं. ते नियम दृढ यास्तायें पा से बे. ते प्रकृतियें अल्पकपाय वालो देवगुरुने विषे क्तिवंत हतो, तेथी अंतें पंचपरमेष्ठीनुं स्मरण करी समाधि मरण पामी तिशिला नगरीयें त्रि विक्रम नामें राजा तेनी सुमंगला राणीनी कुखने विषे पुत्रपणे यावी पनो. राणीयें पूर्णकलशनुं स्वप्न दीठं, ते स्वप्न राजानी यागल कत्युं. राजा यें कह्युं तुमने उत्तम राज्य धुरंधर पुत्र थाशे, ते सांजली राणी हर्ष पामी. नुक्रमें गर्भ वधते थके राणीने दोहोलो उपनो तेथी दुर्बल थवा ला गी. राजायें दुर्बलतानुं कारण पूब्धुं तेवारें राणीयें कयुं के हुं हाथली उ पर बेसुं, अने तमें उत्रधार था, एवी रीतें हुं गामने चोराशी चढूटे फ रुं तथा नद्याननी क्रीडा करूं, याचकने दान खाएं, दीनजननो उद्धार क रुं एवो मुऊने दोहोलो उपनो े, ते हवें हुं शी रीतें तमोने उत्रधारक क रीने दोहोलो पूर्ण करूं ? राजायें ते दोहोलो पूर्ण कस्यो. " अनुक्रमें पुत्रजन्म थयो राजायें बंदीवान प्रमुख मूक्या, घणो महो त्सव कस्यो, वली ए पुत्र गर्नमां यावे थके एनी माता घरमाथी निकली उद्याने क्रीडा करवा लागी, तेमाटे एनुं निर्गतमुख एवं नाम दीधुं. अनु *में तेपुत्र बालनाव मूकी चंड्मानी पेठें सर्वकलामां प्रवीण थयो. एवामां वैशाली नगरीनो राजा वासव नामें बे, तेनी कामकीर्त्ति नामें पुत्री बे, ते निर्गतमुख कुमरना गुण सांजलीने तेनी उपर अनुरक्त य थकी पोताना माता पिताने कहेवा लागी के हुं निर्गतमुख कुमरनी साथें मारुं पाणिग्रहण करीश. अन्य पुरुष सर्व महारे पिता जाता स्थानकें बे. माटें मुऊने तिहां स्वयंवरा मोकलो, ते पुत्रीनुं वचन सांजली माता पिता पण घणी सकाइ सहित ते पुत्रीने तिहां मोकलतां हवां तें पुत्रीयें प गलकी सांपरायण नामा ब्राह्मणने मोकल्यो, तेणे जर त्रिविक्रम नू पने आशीर्वाद देने कयुं के हे स्वामी ! वैशालिका नगरीनो स्वामी वासव

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